पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव (Uttarakhand Assembly Elections 2022) को लेकर सरगर्मी तेज हो चुकी है. प्रदेश की 70 सीटों पर होने वाले चुनाव के लिए सभी राजनीतिक दल पूरी ताकत झोंक रहे हैं. हालांकि, राजनीति को लेकर इस छोटे से राज्य में भी कई तरह से मिथक हैं, जो अब तक सच साबित हुए हैं. देखना ये होगा कि इस बार ये मिथक टूटेंगे या बरकरार रहेंगे.
सत्ता पर काबिज होने का मिथक
उत्तराखंड में सत्ता पर काबिज होने का मिथक राज्य के गठन होने से ही चला आ रहा है. साल 2000 में उत्तराखंड राज्य गठन के बाद साल 2002 में कांग्रेस पार्टी सत्ता पर काबिज हुई थी. लिहाजा साल 2007 में सत्ता परिर्वतन हुआ और बीजेपी सत्ता में आई. इसके बाद फिर से सत्ता पर काबिज होने का चक्र घूमा और साल 2012 में कांग्रेस ने बाजी मारी. फिर 5 साल बाद यानी 2017 में हुए चुनाव में बीजेपी को एक बार फिर सत्ता में आने का मौका मिला.
ऐसे में अगर उत्तराखंड राज्य की सत्ता में काबिज होने को सिलसिलेवार देखा जाए तो इस बार यानी 2022 में होने वाले चुनाव बीजेपी के लिए तगड़ा झटका और कांग्रेस के लिए सफलता साबित हो सकता है. देखना यह होगा कि विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड में कमल खिलेगा या फिर मिथक के मुताबिक पंजे का वर्चस्व कायम रहेगा?
गंगोत्री विधानसभा सीट को लेकर मिथक
उत्तराखंड की सियासत में गंगोत्री विधानसभा सीट (Gangotri Assembly Seat) राजनीतिक पार्टी के लिए खासा मायने रखती है. राजनीतिक दलों में यह चर्चा है कि जिस भी पार्टी का प्रत्याशी गंगोत्री सीट जीतता है, उत्तराखंड में उसकी ही सरकार बनती है. यह मिथक आज से नहीं बल्कि दशकों से चला आ रहा है. यही वजह है कि सभी दल इस सीट से अपने सबसे कद्दावर नेता को रण में उतारते हैं.
आजादी के बाद से लेकर पिछले चुनाव (2017) तक इस सीट पर जिस भी पार्टी का प्रत्याशी जीतकर आया, सूबे में उसकी ही सरकार बनी है. उत्तर प्रदेश का हिस्सा रहने से लेकर उत्तराखंड बनने तक उत्तरकाशी की गंगोत्री सीट का इतिहास इस मिथक को और ज्यादा मजबूत बना देता है. यही कारण है कि गंगोत्री विधानसभा सीट को सबसे खास और हॉट सीट माना जाता है.
उत्तराखंड बनने के बाद इस सीट के मिथक पर एक नजर
साल | पार्टी | विधायक | सरकार |
2002 | कांग्रेस | विजय पाल सजवाण | कांग्रेस |
2007 | बीजेपी | गोपाल रावत | बीजेपी |
2012 | कांग्रेस | विजय पाल सजवाण | कांग्रेस |
2017 | बीजेपी | गोपाल रावत | बीजेपी |
जो शिक्षा मंत्री बनेगा वह दोबारा विधायक नहीं बनेगा !
उत्तराखंड राज्य में एक और मिथक है कि सरकार में जो भी नेता शिक्षा मंत्री बनेगा वह दोबारा विधायक नहीं बनेगा. दरअसल, वर्ष 2000 में बीजेपी सरकार में तीरथ सिंह रावत शिक्षा मंत्री बने, लेकिन 2002 के चुनाव में वह विधानसभा नहीं पहुंच पाए. इसके बाद वर्ष 2002 में एनडी तिवारी सरकार में नरेंद्र सिंह भंडारी शिक्षा मंत्री बने, लेकिन वर्ष 2007 के चुनाव में वह चुनाव हार गए.
वर्ष 2007 में बीजेपी की तरफ से गोविंद सिंह बिष्ट और खजान दास शिक्षा मंत्री बने पर 2012 के चुनाव में वह भी हार गए. वर्ष 2012 में फिर कांग्रेस सरकार सत्ता में आई और देवप्रयाग से विधायक रहे मंत्री प्रसाद नैथानी को शिक्षा मंत्री बनाया गया, लेकिन शिक्षा मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी भी यह मिथक नहीं तोड़ पाए, जबकि उन्होंने दावा किया था कि वह इस मिथक को तोड़कर ही रहेंगे.
2022 के चुनाव में मिथक टूटेगा या इतिहास बना रहेगा. यह देखना दिलचस्प होगा. हालांकि, राजनीति जानकारों की मानें तो यह एक संयोग भी हो सकता है लेकिन, सभी दल इन मिथकों को ध्यान में रखकर ही अपने दाव चलते आ रहे हैं.
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