उत्तराखंड के हल्द्वानी में रेलवे की 29 एकड़ जमीन से अतिक्रमण हटाने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार और रेलवे को नोटिस जारी करते हुए वहाँ रह रहे लोगों के पुनर्वास की योजना तैयार करने के भी निर्देश दिए हैं.
हल्द्वानी अतिक्रमण मामले में उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को सुनवाई हुई. जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस. ओक की बेंच ने सुनवाई की. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे से पूछा कि लोग कई सालों से वहां रह रहे हैं. उनके पुनर्वास के लिए आप क्या योजना ला रहे हैं? आपने केवल 7 दिनों का समय दिया और कह रहे हैं खाली करो. यह मानवीय मामला है. अब इस मामले में 7 फरवरी को सुनवाई होगी.
अतिक्रमण वाले इलाके में लगभग 50,000 निवासियों का भाग्य, जिनमें से 90% मुस्लिम हैं, उत्तराखंड के सबसे बड़े विध्वंस के लिए प्रशासन के साथ अधर में लटका हुआ है. हाईकोर्ट के फैसले के बाद स्थानीय प्रशासन अतिक्रमण हटाने की तैयारियों में जुटा हुआ था. अतिक्रमण हटाओ अभियान 5 जनवरी से ही शुरू किया जाना था, लेकिन मामला के सुप्रीम कोर्ट में जाने से इसे रोक दिया गया.
फिलहाल टाल दिया अतिक्रमण
स्थानीय निवासियों का कहना है कि 78 एकड़ क्षेत्र में पांच वार्ड हैं और लगभग 25,000 मतदाता हैं. बुजुर्ग, गर्भवती महिलाओं और बच्चों की संख्या 15,000 के करीब है. 20 दिसंबर के हाईकोर्ट के आदेश के बाद समाचार पत्रों में नोटिस जारी किए गए थे, जिनमें लोगों को 9 जनवरी तक अपना घरेलू सामान हटाने का निर्देश दिया गया था. प्रशासन ने 10 एडीएम और 30 एसडीएम-रैंक के अधिकारियों को प्रक्रिया की निगरानी करने का निर्देश दिया है. अतिक्रमण का कार्य फिलहाल 10 जनवरी 2023 तक के लिए टाल दिया गया है. उत्तराखंड के हल्द्वानी में हजारों लोग उच्च न्यायालय के आदेश के आधार पर बेदखली नोटिस दिए जाने के बाद अपने घरों की सुरक्षा के लिए सड़कों पर उतर आए हैं.
लोग कर रहे विरोध
हल्द्वानी में बनभूलपुरा क्षेत्र के निवासी उत्तराखंड उच्च न्यायालय के 20 दिसंबर के आदेश के खिलाफ 28 दिसंबर को विरोध में बैठे थे, जिसमें कहा गया था कि जिस जमीन पर वे रह रहे हैं वह रेलवे की संपत्ति है. अदालत ने रेलवे और स्थानीय अधिकारियों को "कब्जाधारियों" को एक सप्ताह का नोटिस देने के बाद अतिक्रमण हटाने का निर्देश दिया. हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के पास अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले 4,000 से अधिक परिवार, जिनमें बहुसंख्यक मुस्लिम हैं, अब अपने घरों से निकाले जाने के खतरे का सामना कर रहे हैं. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि अतिक्रमण हटाने से वे बेघर हो जाएंगे और उनके स्कूल जाने वाले बच्चों का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा. इस क्षेत्र में चार सरकारी स्कूल, 11 निजी स्कूल, एक बैंक, दो ओवरहेड पानी के टैंक, 10 मस्जिद और चार मंदिर हैं. इसके अलावा दशकों पहले बनी दुकानें भी हैं.
अब तक क्या-क्या हो चुका है?
1. 20 दिसंबर को उत्तराखंड हाई कोर्ट ने रेलवे और स्थानीय अधिकारियों को रेलवे की जमीन पर कब्जा करने वालों को एक हफ्ते का नोटिस देकर अतिक्रमण हटाने और जमीन खाली करने को कहने का आदेश दिया.
2. अगर अतिक्रमणकारियों ने जमीन खाली नहीं की, तो अदालत ने पुलिस और अर्धसैनिक बलों सहित अधिकारियों द्वारा "कब्जे वाली जमीन पर जबरन कब्जा" करने का आदेश दिया. कोर्ट के आदेश में यह भी कहा गया है कि लागत की वसूली उन अतिक्रमणकारियों से की जानी चाहिए जो एक सप्ताह के नोटिस के बावजूद जमीन खाली नहीं करते हैं.
3. भूमि से अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया शुरू होने से पहले बनभूलपुरा क्षेत्र के निवासियों को अपने लाइसेंसी हथियार प्रशासन को जमा करने के लिए कहा गया है.
4. हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है. हल्द्वानी से कांग्रेस विधायक सुमित हृदयेश के नेतृत्व में क्षेत्र के निवासियों ने उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. शीर्ष अदालत इस मामले की सुनवाई 5 जनवरी को करेगी.
5. जमात-ए-इस्लामी हिंद के एक बयान के मुताबिक, रेलवे ने 78 एकड़ जमीन में रहने वाले लोगों को बेदखली का नोटिस दिया है, जबकि विवादित जमीन 29 एकड़ थी. यह भी कहा कि उच्च न्यायालय का आदेश क्षेत्र में रहने वाले 50,000 से अधिक लोगों को प्रभावित करने वाला है.
6. विरोध करने वाले निवासियों के समर्थन में विपक्षी दल उतर आए हैं. कांग्रेस सचिव काजी निजामुद्दीन ने कहा, "वे 70 साल से इलाके में रह रहे हैं. यहां एक मस्जिद, मंदिर, ओवरहेड पानी की टंकी, एक पीएचसी, 1970 में बिछाई गई सीवर लाइन, दो इंटर कॉलेज और एक प्राथमिक स्कूल है." उन्होंने कहा, "हम प्रधानमंत्री, रेल मंत्रालय और मुख्यमंत्री से इस मामले में मानवीय दृष्टिकोण अपनाने और तथाकथित अतिक्रमण हटाने को रोकने की अपील करते हैं."
7. AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सरकार के इस कदम की आलोचना की है. उन्होंने सवाल किया, ''जब इलाके में तीन सरकारी इंटर कॉलेज हैं तो यह अतिक्रमण कैसे हो सकता है?''