उत्तरकाशी टनल हादसे में सुरंग के अंदर 9 दिनों से 41 लोग फंसे हुए हैं. उत्तरकाशी के सिलक्यारा गांव में एक निर्माणाधीन सुरंग घंस गई थी जिसके बाद से उसके अंदर मजदूर फंस गए. मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने का काम अभी भी जारी है. इसके लिए टनल के अंदर सुराख किया जा रहा है. इस दौरान सीमा सड़क संगठन (BRO) के जनरल रिजर्व इंजीनियर फोर्स (GREF)की महिला मजदूरों ने रविवार को सिल्कयारा सुरंग में फंसे मजदूरों को बचाने के महत्वपूर्ण मिशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार बीआरओ की महिला श्रमिकों ने सिल्कयारा सुरंग के ऊपर एक मिशन में पहाड़ी की चोटी तक जाने के लिए 1.5 किमी लंबे ट्रैक का निर्माण किया. महिलाएं रविवार सुबह करीब 8:50 बजे यहां का नजारा देखने लायक था. जीआरईएफ की महिला श्रमिकों का एक समूह जिसमें महिलाएं भी शामिल थीं कंधों और हाथों पर फावड़े लेकर अपने मिशन को पूरा करने में लगा हुआ था.
हर महिला की अलग कहानी
पिछले एक दशक से जीआरईएफ की सदस्य 39 वर्षीय उत्तरा देवी ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि उन्हें साइट पर आने का आदेश मिला जिसके बाद वो सुबह 3 बजे ही वहां पहुंच गईं. उन्होंने कहा कि हम अपना काम खत्म किए बिना यहां से वापस नहीं जाएंगे और यहां फंसे हर एक सदस्य को बचाने का हर संभव प्रयास करेंगे. साल 2013 में उत्तरा देवी के पति व्यारे लाल की मृत्यु हो गई थी.
एक अन्य महिलाकर्मी सुमन देवी ने कहा, ''हमें किसी भी परिस्थिति में सभी बाधाओं पर विजय पाने के लिए प्रशिक्षित किया गया है. हम अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. जब तक हम यहां अपना काम पूरा नहीं कर लेते हम हार नहीं मानेंगे. सुमन के पति अरविंद कुमार की पिछले साल दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई थी. उन्होंने कहा कि अगर वो इन जिंदगियों को बचा पाईं तो उन्हें बहुत खुशी होगी.
इसी तरह गीता देवी की उम्र 43 साल है और वो दो बच्चों की मां हैं. उन्हें जीआरईएफ में काम करते 15 साल से अधिक समय हो चुका है. गीता देवी ने कहा, "पहाड़ों पर चढ़ना और सड़कें बनाना कठिन नहीं है. हम मिशन मोड में काम करते हैं और यही कुंजी है."मनेरी साइट से ऑपरेशन में शामिल होने वाली एक अन्य जीआरईएफ महिला कविता सिंह ने कहा, "हमने 1.5 किमी से अधिक लंबी सड़क बनाई है, और अब केवल मशीन लाने की जरूरत है." वहीं अंतरराष्ट्रीय टनलिंग विशेषज्ञ अर्नोल्ड डिक्स भी इस मिशन का हिस्सा हैं.