ज्ञानवापी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद सोमवार को वाराणसी जिला कोर्ट में सुनवाई हुई. जिला जज अजय कुमार विश्वेश की अदालत में 45 मिनट तक सुनवाई हुई. इस दौरान कोर्ट में 23 लोग मौजूद रहे. इस दौरान कोर्ट में एक 86 साल फैसले का जिक्र आया. हिंदू पक्ष की तरफ से ब्रिटिश राज के एक फैसले का हवाला दिया गया. इस फैसले से इस मामले में हिंदू के पक्ष को मजबूती मिल सकती है. चलिए हम आपको उस फैसले के बारे में बताते हैं, जिसमें ब्रिटिश कोर्ट ने ज्ञानवापी पर मुस्लिम पक्ष के दावे को खारिज कर दिया गया था.
86 साल पुराने फैसले का हवाला-
ज्ञानवापी मस्जिद मामले में एक 86 साल पुराने फैसले का हवाला दिया जा रहा है. इस संबंध में मस्जिद में सर्वे की मांग करने वाली 5 महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट में जो हलफनामा दाखिल किया है. उसमें दावा किया गया है कि जिस जमीन पर ज्ञानवापी मस्जिद बनी हुई है. वो जमीन मस्जिद की न होकर काशी विशवनाथ मंदिर की जमीन है. इन महिलाओं ने अपने दावे में 86 साल पुराने एक ट्रायल कोर्ट के फैसले का जिक्र किया है.
क्या था फैसला-
ब्रिटिश राज के दौरान साल 1936 में ट्रायल कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की एक अर्जी पर ज्ञानवापी मस्जिद की जमीन को वक्फ की संपत्ति मानने से इनकार कर दिया था. फैसले के पक्ष में तर्क देते हुए अदालत ने कहा था कि ज्ञानवापी मस्जिद के कभी भी वक्फ संपत्ति होने का प्रमाण नहीं मिलता है. इसलिए मुस्लिम कभी इसके मस्जिद होने का दावा नहीं कर सकते.
फैसले को लेकर हिंदू पक्ष का दावा-
हिंदू पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए गए अपने एफिडेविट में कहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद आदि विश्वेवर मंदिर को गिरा कर बनाई गई थी. हिंदू पक्ष का दावा है कि 86 साल पहले इस संबंध में 16 लोगों की गवाही भी कराई गई और उन्होंने वहां मंदिर होने का दावा किया था. सुप्रीम कोर्ट में हिंदू पक्ष ने कहा है कि मंदिर की जमीन पर बनी कोई भी इमारत सिर्फ ढांचा ही हो सकती है, उसे मस्जिद नहीं कहा जा सकता.
माना जा रहा है कि यह तर्क भविष्य में केस की सुनवाई के लिए एक बड़ा आधार साबित हो सकता है. हिंदू पक्ष ने दावा किया है कि औरंगजेब ने मंदिर पूरी तरह से विध्वंस नहीं किया था. मंदिर के शेष भाग पर हिंदू पूजा करते रहे थे.
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