Explainer: Uttarakhand के UCC Bill का उत्तराधिकार और विरासत पर पड़ेगा क्या असर, किस धर्म में होगा क्या बदलाव

उत्तराखंड में Uniform Civil Code Bill सदन से पास हो गया है और इस बिल के लागू होने के बाद राज्य में संपत्ति, विरासत और उत्तराधिकार के अधिकारों में काफी बदलाव होगा.

Uttarakhand UCC Bill
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 08 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 2:51 PM IST

उत्तराखंड (Uttarakhand) विधानसभा में पारित हुए समान नागरिक संहिता (UCC) विधेयक 2024 में उत्तराधिकार और विरासत पर एक बड़ा सेक्शन है. इस मुद्दे पर विधेयक के प्रावधान सभी समुदायों को अलग-अलग स्तर तक प्रभावित करते हैं. लेकिन कैसे, यह समझने के लिए आपको UCC Bill के पहले क्या स्थिति है और बाद में क्या होगी, यह जानना जरूरी है. 

वर्तमान में क्या हैं नियम 
आपको बता दें कि वर्तमान में उत्तराधिकार से जुड़े अधिकारों को भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम (Indian Succession Act), 1925; हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act ), 1956; और असंहिताबद्ध मुस्लिम पर्सनल लॉ (Muslim Personal Law) शासित करते हैं. 

विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act), 1954 के तहत जिन लोगों की शादी होती है, उनकी विरासत ISA के तहत मिलती है. हालांकि, जो दो हिंदू लोग SMA के तहत शादी कर रहे हैं, उन्हें विरासत अधिकार HSA के हिसाब से मिलेंगे. जो लोग अपने संबंधित व्यक्तिगत कानूनों के तहत शादी करते हैं, उनके लिए उत्तराधिकार का व्यक्तिगत कानून लागू होता है. लेकिन अब उत्तराखंड यूसीसी विधेयक 2024 कानून लागू होने के बाद इन कानूनों में बदलाव होगा. 

उत्तराखंड समान नागरिक संहिता 2024 सभी व्यक्तियों पर लागू होगी चाहे उनका धर्म कुछ भी हो. यूसीसी विधेयक में उत्तराधिकार की योजना ISA के समान है. अगर किसी की मृत्यु हो गई है और उन्होंने वसीयत नहीं छोड़ी है, उनके लिए यूसीसी विधेयक के तहत क्लास I के उत्तराधिकारी पति/पत्नी, बच्चे और मृतक के माता-पिता और अगर मृतक के किसी बच्चे की मृत्यु उससे पहले ही हो गई हो, तो उसके बच्चे होंगे. इन सभी को मृत व्यक्ति की संपत्ति में बराबर हिस्सा मिलेगा. इन उत्तराधिकारियों की अनुपस्थिति में, संपत्ति अन्य उत्तराधिकारियों जैसे मृतक के भाई और बहन और उनके बच्चों को विरासत में मिलेगी. यदि ये निर्दिष्ट उत्तराधिकारी मौजूद नहीं हैं, तो संपत्ति निकटतम रिश्तेदारों को विरासत में मिलेगी. 

मुस्लिम समुदाय के लिए क्या बदलेगा
मुसलमानों के लिए वसीयतनामा उत्तराधिकार Muslim Personal Law यानी शरीयत के अनुसार होता है. कोई भी व्यक्ति वसीयत के माध्यम से अपनी संपत्ति का केवल 1/3 हिस्सा ही वसीयत कर सकता है. शेष संपत्ति उत्तराधिकार की निर्धारित योजना से बंटती है  यानी कि बाकी संपत्ति मृतक के परिवार के सदस्यों को मिलती है. लेकिन यूसीसी विधेयक में वसीयतनामा उत्तराधिकार पर यह सीमा नहीं होगी. यह सीमा आम तौर पर उत्तराधिकारियों को बेदखल होने से बचाती है, और इसके हटने से विशेष रूप से महिलाओं और समलैंगिक व्यक्तियों जैसे कमजोर समूहों को उनके लिंग और सेक्सुअलिटी के कारण विरासत से बेदखल होने का खतरा हो सकता है.

वर्तमान में मुसलमानों के लिए, क्लास I के उत्तराधिकारियों में मां, दादी, पति, पत्नियां, बेटे की बेटी आदि शामिल हैं, और कुरान उनके लिए विशिष्ट हिस्सेदारी निर्धारित करती है. शेष संपत्ति सावधानीपूर्वक निर्धारित नियमों के माध्यम से अन्य उत्तराधिकारियों को दे दी जाती है. ऐसा ही एक नियम यह है कि समान पद वाली महिला उत्तराधिकारियों को समान पद वाले पुरुष रिश्तेदारों का आधा हिस्सा मिलता है. इस प्रकार, बेटी को बेटे के कारण आधा हिस्सा मिलता है. लेकिन यह नियम यूसीसी विधेयक के साथ बदल जाएगा- जिसमें ऐसे दोनों पक्षों को समान रूप से विरासत मिलेगी. 

समान नागरिक संहिता पर अपनी 2018 की रिपोर्ट में विधि आयोग (Law Commission) ने वास्तव में सिफारिश की थी कि हिंदुओं के लिए भी, इस तरह के उत्तराधिकार से बचाने के लिए विधवा, अविवाहित बेटियों और अन्य आश्रितों के लिए कुछ हिस्सा आरक्षित किया जाना चाहिए. 

हिंदुओं के उत्तराधिकार अधिकारों पर पड़ेगा क्या असर 
हिंदू कानून संयुक्त परिवारों की अवधारणा को मान्यता देता है, और स्व-अर्जित संपत्ति और पैतृक संपत्ति के बीच अंतर करता है. संयुक्त परिवार में एक मुख्य समूह सहदायिक होता है, जिसमें तीसरी पीढ़ी तक के पुरुष और महिला वंशज शामिल होते हैं. उनका संयुक्त परिवार की संपत्ति, यानी पैतृक संपत्ति में जन्म से ही अधिकार होता है. एक सहदायिक की मृत्यु पर, जो शेयर उस व्यक्ति के उत्तराधिकारियों को ट्रांसफर होते हैं, वे उनकी अलग संपत्ति के रूप में निहित हो जाते हैं. 

2005 में HSA में संशोधन के माध्यम से, बेटियों को सहदायिक बनाया गया. सहदायिक संपत्ति की एक प्रमुख विशेषता यह है कि इसे पिता सहित किसी भी सहदायिक द्वारा वसीयत के जरिए बेचा या निपटाया नहीं जा सकता है. यह सहदायिक संपत्ति में बेटियों के लिए गारंटीड हिस्सेदारी सुनिश्चित करता है. उत्तराखंड यूसीसी बिल उन सभी मौजूदा कानूनों को निरस्त करता है जो इसके साथ असंगत हैं, और धर्म की परवाह किए बिना सभी व्यक्तियों पर उत्तराधिकार की समान योजना लागू करता है.

बिल में सहदायिक अधिकारों का कोई उल्लेख नहीं है. इस प्रकार, उत्तराधिकार की एक ही योजना अब हिंदुओं के लिए पैतृक और स्व-अर्जित संपत्ति दोनों पर लागू होगी. सहदायिकी प्रणाली से मिलने वाली सीमित सुरक्षा अब उपलब्ध नहीं होगी. 

अगर कोई पुरुष या महिला अपनी वसीयत नहीं छोड़कर गया है तो HSA के तहत, उनकी संपत्ति का बंटवारा अलग-अलग तरीके से होता है. पुरुष के लिए, केटेगरी I के उत्तराधिकारी बच्चे, मां, पति/पत्नी और ऐसी संतान के बच्चे हैं जिनकी मृत्यू मृतक से पहले हो चुकी है. इसके अलावा, पिता, भाई-बहन, सौतेली मां, आदि, केटेगरी II के उत्तराधिकारी हैं, और केटेगरी I के उत्तराधिकारियों के न होने पर ही केटेगरी II के उत्तराधिकारियों को विरकासत मिल सकती है. इस प्रकार, मां पिता को विरासत से पूरी तरह विरासत से बाहर कर देती है. 

बात महिला के केस में करे तो महिलाओं के लिए भी केटेगरी  I के उत्तराधिकारी बच्चे, पति और ऐसी संतान के बच्चे हैं जिनकी मृत्यू मृतक से पहले हो चुकी है. हालांकि, पति के उत्तराधिकारी, जैसे ससुर आदि दूसरी केटेगरी में आते हैं.  महिला के अपने रिश्तेदार, जैसे उसके पिता और माता, केवल इन उत्तराधिकारियों के न होने पर ही विरासत ले सकते हैं. 

लेकिन यूसीसी विधेयक में ऐसा नहीं है. यूसीसी के तहत मृतक के लिंग की परवाह किए बिना उत्तराधिकार की समान योजना से विरासत बांटी जाएगी. एक और महत्वपूर्ण बदलाव यह है कि यूसीसी विधेयक के तहत पिता और माता दोनों अपने बच्चों की संपत्ति में समान उत्तराधिकारी हैं. 

साथ ही, यूसीसी विधेयक हिंदू अविभाजित परिवारों (HUFs) को एक केटेगरी के रूप में संबोधित नहीं करता है. HUF को एक व्यापारिक इकाई के रूप में कानूनी दर्जा दिया गया है. आयकर अधिनियम, 1961 के तहत कराधान के प्रयोजनों के लिए उन्हें एक अलग इकाई के रूप में माना जाता है, और कुछ छूट मिलती हैं. विधि आयोग ने अपनी 2018 रिपोर्ट में कहा था कि एचयूएफ प्रणाली का इस्तेमाल टैक्स से बचने के लिए किया जा सकता है. 

 

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