Pollution Control: क्या है गाड़ियों में पॉल्यूशन कंट्रोल मानक भारत स्टेज-4 और BS-6, क्यों PUC सर्टिफिकेट लेना जरूरी, यहां जानिए सबकुछ 

BS Emission Norms: भारत सरकार ने साल 2000 में स्टैंडर्ड यूरोपीय मानदंडों को भारतीय अनुरूप में अपनाते हुए Bharat Stage Emission Standards की शुरुआत की थी, जिसे बीएस ( BS) यानी भारत स्टेज भी कहते हैं. यह गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण के उत्सर्जन का मानक है. 

Smoke Coming Out of Car Silencer (Photo Credit: AI)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 16 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 12:54 AM IST
  • 1 अप्रैल 2020 को BS-6 किया गया था लागू 
  • भारत सरकार का सबसे नया उत्सर्जन कानून है यह

वायु प्रदूषण बढ़ाने में पेट्रोल और डीजल से चलने वाली गाड़ियों को रोल अहम होता है. प्रदूषण को कम करने के लिए सरकार ने कई नियम बनाए हैं. वाहन चालकों को पॉल्यूशन अंडर कंट्रोल सर्टिफिकेट लेना अनिवार्य किया है तो वहीं गाड़ियों में पॉल्यूशन कंट्रोल मानक यानी बीएस भी तय किया है. 

क्या होता है बीएस
भारत सरकार ने साल 2000 में स्टैंडर्ड यूरोपीय मानदंडों को भारतीय अनुरूप में अपनाते हुए Bharat Stage Emission Standards (BSES) की शुरुआत की थी, जिसे बीएस ( BS) यानी भारत स्टेज भी कहते हैं. यह गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण के उत्सर्जन का मानक है. इसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड वाहनों के लिए तय करता है. कई संशोधनों के बाद वर्तमान में इसका छठा स्टेज इस्तेमाल में है. भारत स्टेज उत्सर्जन मानक यूरोपीय मानदंडों पर आधारित हैं, जिन्हें आमतौर पर यूरो 2, यूरो 3 जैसे नाम से लाया गया है. भारत में कई संशोधनों के बाद वर्तमान में इसका छठा स्टेज इस्तेमाल में है.

कब भारत स्टेज का कौन सा स्तर हुआ लागू 
1. भारत स्टेज उत्सर्जन मानक 1 सबसे पहले अप्रैल 2000 को लाया गया था, जो यूरो 1 मानकों पर आधारित था.
2. साल 2001 में भारत स्टेज-2 लागू किया गया था. 
3. साल 2005 में भारत स्टेज-3 लागू किया गया था. 
4. साल 2017 में BS-4 लागू किया गया था. इसके बाद भारत स्टेज-5 का लागू न कर सीधे BS-6 को लागू किया गया था.
5. 1 अप्रैल 2020 को BS-6 लागू किया था. 

क्या है भारत स्टेज-4 
भारत स्टेज-4 (BS-4) उत्सर्जन मानदंड अप्रैल 2017 को पूरे देश में लागू किया गया था. भारत स्टेज-4 को यूरो-4 भी कहा जाता है. इसमें पेट्रोल से चलने वाले यात्री वाहनों में 1.0 ग्राम/किमी के कार्बन मोनोऑक्साइड उत्सर्जन, 0.18 ग्राम/किमी के हाइड्रो कार्बन+नाइट्रोजन ऑक्साइड और डीजल वाले वाहनों में 0.50 ग्राम/किमी का चरम कार्बन मोनोऑक्साइड, 0.25 ग्राम/किमी का नाइट्रस ऑक्साइड और 0.30 ग्राम/किमी का हाइड्रो कार्बन + नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जन स्तर को तय किया गया था. वर्तमान में दिल्ली जैसे शहरों में इस स्टेज की गाड़ियों पर प्रतिबंध लगाया गया है. 

भारत स्टेज-6 के बारे में जानिए 
भारत स्टेज-6 (BS-6) उत्सर्जन मानक 1 अप्रैल 2020 से लागू हुए. यह भारत सरकार का सबसे नया उत्सर्जन कानून है. आपको मालूम हो कि सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार बीएस-6 लागू करने की अधिसूचना वर्ष 2017 में ही जारी कर दी गई थी लेकिन वाहन निर्माता कंपनियों ने अधिसूचना के खिलाफ समय सीमा बढ़ाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था. इसके बाद इसे अप्रैल 2020 में लागू किया गया था. वाहनों के प्रदूषण पर अंकुश लगाने की दिशा में सरकार ने बीएस-5 को छोड़ते हुए सीधे भारत चरण (बीएस) 6 वाहन उत्सर्जन नियमों को लागू करने का फैसला लिया था.

बीएस-6, बीएस-5 से कहीं ज्यादा सख्त उत्सर्जन नियम है. बीएस-5 और बीएस-6 ईंधन में जहरीले सल्फर की मात्रा बराबर होती है. जहां बीएस-4 ईंधन में 50 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) सल्फर होता है, वहीं बीएस-5 और बीएस-6 दोनों तरह के ईंधनों में सल्फर की मात्रा 10 पीपीएम ही होती है. इसलिए सरकार ने बीएस-4 के बाद सीधे बीएस-6 लाने का फैसला किया. बीएस (भारत स्टेज) को जब भी अपग्रेड किया जाता है तो वाहनों से धुएं के रूप में होने वाले प्रदूषण पर काफी हद तक रोक लगाई जाती है. इस समय भारत में प्रदूषण काफी ज्यादा रहता है जबकि देश की राजधानी दिल्ली की हवा सबसे खतरनाक है, ऐसे में बीएस-6 को अपनाना बड़ी जरूरत बन गया है. भारत स्टेज-6 मानक का उद्देश्य वायु प्रदूषण को कम करना और स्वच्छ वातावरण सुनिश्चित करना है.

क्या होता है वाहन उत्सर्जन मानक 
भारत में गाड़ियों के फ्यूल से निकलने वाले पॉल्यूशन को कंट्रोल करने के लिए मापदंड तय किए गए हैं. इन्हें उत्सर्जन मानक या एमिशन नॉर्म्स कहा जाता है. इन नियमों का पालन करना सभी ऑटोमोबाइल कंपनियों के लिए जरूरी है. गाड़ियों का प्रोडक्शन करते समय,इंजन में एक इंटरनल इक्युपमेंट का इस्तेमाल किया जाता है.

क्या है पीयूसी 
गाड़ियों के चलने पर जो धुआं निकलता है, वह पर्यावरण के लिए नुकसानदेह होता है. पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए इस तरह के निकलने वाले प्रदूषण को लेकर एक मानक तय किया गया है. उसी मानक के मुताबिक आपकी गाड़ी से धुआं निकलन रहा है कि नहीं इसकी पुष्टि करने के लिए एक  टेस्ट (Pollution Test) किया जाता है. इस टेस्ट के बाद जो सर्टिफिकेट जारी किया जाता है, उसे पॉल्यूशन कंट्रोल सर्टिफिकेट (पीयूसी) कहते हैं. भारत में मोटर या इंजन वाली सभी गाड़ियों के लिए यह अनिवार्य है. वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण कारक तत्वों जैसे कार्बन डाईऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड के लिए उनकी नियमित जांच की जाती है जिसके बाद पीयूसी दिया जाता है. जब आप नई कार खरीदते हैं तो पीयूसी उसके साथ दिया जाता है, जो अधिकतम 1 साल तक के लिए वैध होता है. 

इसके बाद आपको तय समय में जांच करवाकर पीयूसी सर्टिफिकेट लेना होता है. आम तौर पर पीयूसी की वैधता 6 महीने की होती है. पॉल्यूशन कंट्रोल सर्टिफिकेट के सारे नियम मोटर वाहन अधिनियम, 1993 की धारा 190 के तहत आते हैं. मोटर वाहन अधिनियम, 1993 की धारा 190 (2) के तहत गाड़ी चलाते समय यदि आपके पास पीयूसी सर्टिफिकेट नहीं है या यह एक्सपायर हो चुका है तो आपको छह महीने तक की जेल या 10000 रुपए तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं. इसके अलावा, दोषी ड्राइवरों को तीन महीने के लिए ड्राइविंग लाइसेंस रखने से अयोग्य घोषित भी कर दिया जाएगा. PUC पूरे देश में वैध होता है. यदि आप किसी दूसरे शहर में जा रहे हैं तब भी आपको नया पीयूसी करवाने की ज़रूरत नहीं है. दो पहिया, तीन पहिया या चार पहिया किसी भी तरह के मोटर व्हीकल के लिए पीयूसी सर्टिफिकेट जरूरी है. बैटरी से चलने वाली कार, ई-रिक्शा और बैटरी से चलने वाली स्कूटी/बाइक के लिए PUC लेना जरूरी नहीं होता है.


 

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