India-Nepal Relation: जानें प्रचंड के नेपाल का पीएम बनने के बाद भारत संग रिश्तों पर क्या पड़ सकता है असर ?

पूर्व प्रधानमंत्री और नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा और सीपीएन-माओइस्ट सेंटर के अध्यक्ष पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड के बीच पीएम पद को लेकर सहमति नहीं बन सकी. प्रचंड ने केपी शर्मा ओली के साथ मिलकर सरकार बना ली है.

पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड (फोटो ट्विटर)
मिथिलेश कुमार सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 26 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 11:15 AM IST
  • पुष्प कमल दहल ने अपने विद्रोह के आठ साल भारत में बिताए थे
  • केपी शर्मा ओली चीन के ज्यादा करीबी रहे हैं
  • शेर बहादुर देउबा को भारत का माना जाता है दोस्त 

नेपाल में हुए चुनाव के बाद पूर्व प्रधानमंत्री और नेपाली कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देउबा सरकार नहीं बना सके. पिछली सरकार में सहयोगी रहे सीपीएन-माओइस्ट सेंटर के अध्यक्ष पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड ने अपने पुराने साथी केपी शर्मा ओली के साथ मिलकर सरकार बना ली और नेपाल के नए पीएम बन गए. आज हम बता रहे है कि प्रचंड के पीएम बनने के बाद भारत के साथ रिश्तों पर क्या असर पड़ सकता है ?

चीनी नेता माओत्से का गहरा प्रभाव 
पुष्प कमल दहल माओवादी आंदोलन से उभरे नेता हैं. उनपर शुरू से ही चीनी नेता माओत्से का गहरा प्रभाव रहा है. नेपाल में जब लोकतंत्र बहाल हुई तो प्रचंड चीनी सरकार के करीब हो गए. हालांकि, चीन के करीब होने से भी उन्हें नेपाल में ज्यादा दिनों तक सत्ता नहीं मिल पाई. 2015 में संविधान लागू होने के बाद से अब तक नेपाल में पांच बार प्रधानमंत्री बदले जा चुके हैं. पुष्प कमल दहल ने अपने विद्रोह के आठ साल भारत में बिताए थे. इसके अलावा वे कम्युनिस्ट पार्टी की विचारधारा से जुड़े रहे हैं. वहीं, केपी शर्मा ओली भी कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े रहे हैं. इसका असर दोनों देशों के रिश्तों पर पड़ सकता है. दो साल पहले जब केपी शर्मा ओली नेपाल की सत्ता संभाल रहे थे उस समय वे चीन के साथ बीआरआई समझौता करने में दिलचस्पी दिखा रहे थे. अब प्रचंड की नई सरकार में केपी शर्मा ओली की पार्टी की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है. ऐसे में प्रचंड सरकार में उनका दखल भी ज्यादा रहेगा.भारत के साथ रिश्तों में खटास आने की संभावना है.

देउबा के प्रधानमंत्री रहते भारत के साथ संबंध अच्छे रहे 
शेर बहादुर देउबा को भारत का दोस्त माना जाता है, जबकि केपी शर्मा ओली चीन के ज्यादा करीबी रहे हैं. केपी ओली की सरकार में प्रचंड का भी समर्थन था. 2021 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी ओली की वजह से भारत और नेपाल के बीच विवाद हुआ तो प्रचंड ने उनसे समर्थन वापस लेने का ऐलान कर दिया. उस समय नेपाल में चीनी राजदूत प्रचंड को मनाने के लिए खूब सक्रिय रहीं, लेकिन प्रचंड नहीं मानें और देउबा को समर्थन दे दिया. देउबा के प्रधानमंत्री रहते भारत के साथ संबंध अच्छे रहे हैं. अब फिर प्रचंड ने देउबा का साथ छोड़ दिया है. पुष्प कमल दहल तीसरी बार नेपाल के पीएम बनने जा रहे हैं.

माओवादी विद्रोह का किया था नेतृत्व  
पुष्प कमल दहल ने नेपाल में माओवादी विद्रोह का ना केवल नेतृत्व किया था बल्कि हिमालयी देश के राजशाही शासन को समाप्त कर देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था शुरू की थी. लोकतांत्रिक नेपाल के पहले प्रधानमंत्री बने थे. वह 2008-09 और फिर 2016-17 तक दो बार देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं. 1996 में जब नेपाल में राजशाही के खात्मे के लिए विद्रोही अभियान शुरू हुआ तो विद्रोह के 10 वर्षों के दौरान प्रचंड अंडरग्राउंड रहे. उस दौरान आठ  साल उन्होंने भारत में बिताए थे. 

 

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