सैकड़ों साल से दिल्ली की पहचान का हिस्सा रही कुतुब मीनार पर रार छिड़ी हुई है. कुतुब मीनार ने अपने वजूद में आने के बाद जाने कितने ही दौर देखे हैं. लेकिन इस मीनार की ज़िंदगी में ये दावेदारियों का दौर है. वो दौर जब कुतुब मीनार को लेकर दो पक्ष अपनी-अपनी दावेदारियां पेश कर रहे हैं. कुतुब मीनार से जुड़ा सैकड़ों साल पुराना इतिहास खंगाला जा रहा है. कुतुब मीनार के दरो-दीवार को बारीकी से जांचा-परखा जा रहा है. ताकि 2022 में इस मीनार की पहचान को पुख्ता तौर पर तय किया जा सके. लेकिन कुतुब मीनार तो अपनी पहचान की कहानी खुद बयान करती है. दक्षिणी दिल्ली के महरौली इलाके में मौजूद ये मीनार शुरुआत से भारत की प्रमुख ऐतिहासिक इमारतों में से एक है.
कुतुब मीनार को जानिए-
करीब 238 फीट की ऊंचाई वाला कुतुब मीनार भारत का सबसे ऊंचा पत्थरों का स्तंभ है. इसके शीर्ष का डायमीटर लगभग 9 फीट है. तो इसकी नींव का डायमीटर 46.9 फीट है. कुतुब मीनार में कुल 379 सीढ़ियां हैं. इसकी चौथी और पांचवीं मंज़िल पर बालकनी मौजूद है. पूरी मीनार को लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर से तैयार किया गया है. कुतुब मीनार इसके आसपास मौजूद कई दूसरे स्मारकों से घिरा हुआ है और इस पूरे परिसर को कुतुब मीनार परिसर कहते हैं.
कुतुब मीनार का निर्माण-
इतिहास कहता है कि कुतुब मीनार 12वीं सदी के अंत और तेरहवीं सदी की शुरुआत में वजूद में आया था. माना जाता है कि कुतुब मीनार का निर्माण 1199 से 1220 के दौरान कराया गया था. कुतुब मीनार को बनाने की शुरुआत कुतुबुद्दीन-ऐबक ने की थी और उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने इसका निर्मण पूरा करवाया था. कुतुबुद्दीन ऐबक, मोहम्मद गोरी का पसंदीदा गुलाम और सेनापति था. गोरी ऐबक को दिल्ली और अजमेर का शासन सौंपकर वापस लौट गया था. 1206 में गोरी की मौत के बाद ऐबक आज़ाद शासक बन गया और उसने दिल्ली सल्तनत की स्थापना की और साथ ही कुतुब मीनार का निर्माण भी करवाया.
कुतुब मीनार को नुकसान-
बताया जाता है कि 14वीं और 15वीं सदी में बिजली गिरने और भूकंप से कुतुब मीनार को नुकसान पहुंचा था. जिसके बाद फिरोज शाह तुगलक ने मीनार की शीर्ष दो मंजिलों की मरम्मत करवाई थी. जबकि 1505 में सिकंदर लोदी ने बड़े पैमाने पर कुतुब मीनार की मरम्मत कराई थी और इसकी ऊपरी दो मंजिलों का विस्तार करवाया था. 1803 में आए एक भूकंप से कुतुब मीनार को फिर से नुकसान पहुंचा. तब साल 1814 में इसके प्रभावित हिस्सों को ब्रिटिश-इंडियन आर्मी के मेजर रॉबर्ट स्मिथ ने रिपेयर कराया था.
विष्णु स्तंभ होने का दावा-
लेकिन हाल ही में हिंदू संगठनों ने इस इतिहास को नकार दिया और विवाद उठा तो कुतुब मीनार की पहचान की एक नई कहानी निकलकर सामने आई. हिंदू संगठन युनाइटेड हिंदू फ्रंट ने ये दावा कर दिया कि कुतुब मीनार विष्णु मंदिर के ऊपर बनी है और इसलिए इसका नाम बदल कर विष्णु स्तंभ रखा जाना चाहिए. साथ ही ये दावा किया गया कि कुतुब मीनार को 27 जैन और हिंदू मंदिरों को तोड़कर बनाया गया था, परिसर में मौजूद हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों का जीर्णोद्वार होना चाहिए और हिंदुओं को परिसर में पूजा करने की इजाज़त मिलनी चाहिए. मामले ने तूल तब पकड़ा, जब 10 मई को बिना किसी इजाज़त के महाकाल मानव सेना के कार्यकर्ताओं ने कुतुब मीनार परिसर में हनुमान चालीसा का पाठ शुरू कर दिया.
मीनार परिसर में मस्जिद-
कुतुब मीनार परिसर में मौजूद कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का निर्माण भी कुतुबुद्दीन ऐबक ने कराया था. बताया जाता है कि इस मस्जिद में सदियों पुराने मंदिरों का भी एक बड़ा हिस्सा शामिल है. देवी-देवताओं की मूर्तियां और मंदिर की वास्तुकला अभी भी आंगन के चारों ओर के खंभों और दीवारों पर स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं.
कुतुब मीनार के नाम पर भी दावे-
वैसे आपको बता दें कि सिर्फ़ कुतुब मीनार के वजूद को लेकर ही नहीं बल्कि उसके नाम को लेकर भी इतिहास में अलग-अलग दावे हैं. यह धारणा प्रचलित रही है कि कि कुतुब मीनार का नाम उस कुतुबद्दीन ऐबक के नाम पर रखा गया है, जिसने इसका निर्माण शुरू किया था. लेकिन वास्तव में इतिहास में पुख्ता तौर पर कहीं इसका ज़िक्र नहीं है. एक दावा ये भी है कि इसका नाम मशहूर मुस्लिम सूफी संत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर पड़ा है. तो वहीं कुछ इतिहासकारों का कहना है कि कुतुब या कुटुब मीनार नाम ब्रिटिश पीरियड में प्रचलित हुआ था. यानि नाम और निर्माण से लेकर कुतुब मीनार से जुड़े तमाम पहलुओं पर आज सवाल उठ रहे हैं.
विक्रमादित्य ने बनवाया था मीनार- दावा
जैसे-जैसे मामला आगे बढ़ता गया कुतुब मीनार को लेकर तमाम तरह के दावे सामने आते चले गए. और हर दावा इतिहास की किताबों में अब तक बताई गई कुतुब मीनार की कहानी को नकार रहा था. विष्णु स्तंभ और मंदिरों के अवशेष पर मस्जिद होने के दावे के बाद एक और थ्योरी सामने आई. जिसमें कहा गया कि कुतुब मीनार एक सन टावर है, जिसे 5वीं शताब्दी में गुप्त साम्राज्य के विक्रमादित्य ने बनवाया था. दावे में कहा गया कि मीनार में 25 इंच का झुकाव है. ऐसा इसलिए है क्योंकि इसे सूर्य का अध्ययन करने के लिए बनाया गया था. 21 जून को जब सूर्य आकाश में जगह बदलता है तो भी कुतुब मीनार की उस जगह पर आधे घंटे तक छाया नहीं पड़ती. मीनार के दरवाजे नॉर्थ फेसिंग हैं, ताकि इससे रात में ध्रुव तारा देखा जा सके.
लौह स्तंभ पर दावा-
कुतुब मीनार परिसर में मौजूद लौह स्तंभ को लेकर दूसरा दावा किया गया है. दरअसल इस लोहे के खंभे का इतिहास भी बहुत रोचक है. इस लौह स्तंभ की लंबाई 23.8 फीट है, जिनमें से 3.8 फीट जमीन के अंदर है. जबकि इसका वजन 600 किलो से ज्यादा है. बाताया जाता है कि इस स्तंभ का निर्माण चंद्रगुप्त द्वितीय ने 375 से 415 ईस्वी के दौरान करवाया था. करीब 1600 सालों बाद भी इस लौह स्तंभ में जंग नहीं लगी है. इतिहास में ज़िक्र मिलता है कि इस स्तंभ को मध्य प्रदेश के विदिशा में उदयगिरी गुफाओं के बाहर लगाया गया था, जहां से 11वीं शताब्दी में तोमर राजा अनंगपाल इसे महरौली ले आए थे. हालांकि कुछ इतिहासकार दावा करते हैं कि इस स्तंभ को मुस्लिम शासकों ने लगवाया था. उनका मानना है कि मुस्लिम शासकों ने इस स्तंभ को अपनी विजय के प्रतीक के तौर पर कुतुब मीनार परिसर में लगवाया था.
परिसर से गणेश मूर्ति हटाने पर रोक-
वैसे आपको बता दें कि इस वर्ल्ड हेरिटेज साइट को लेकर विवादों का सिलसिला अब लंबा हो चुका है. इस साल अप्रैल में नेशनल म्यूजियम अथॉरिटी यानी NMA ने ASI को कुतुब कॉम्प्लेक्स से गणेश जी की दो मूर्तियों को हटाने और नेशनल म्यूजियम में उनके लिए सम्मानजनक जगह खोजने के लिए कहा था. इसके बाद यह विवाद अदालत तक भी पहुंच गया. अदालत ने मामले में आदेश दिया कि फिलहाल कोई कार्रवाई न करते हुए मामले की सुनवाई तक कॉम्प्लेक्स से मूर्तियां नहीं हटाई जाएं.
इसके अलावा विश्व हिंदू परिषद भी 73 मीटर ऊंची मीनार के विष्णु स्तंभ होने का दावा कर चुका है.
इसके अलावा मामले को लेकर इसी साल फरवरी एक और याचिक दायर की गई. जिसमें कहा गया कि इस बात में कोई विवाद नहीं है कि यहां मंदिरों को नष्ट किया गया है. इसलिए उन्हें यहां पूजा करने का अधिकार दिया जाए. याचिका में ये भी कहा गया है कि इस मस्जिद में पिछले 800 सालों से नमाज नहीं अदा की गई है.
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