चंद साल नहीं सदियों पुराना है 'आदर्श चुनाव आचार संहिता' का इतिहास, आज से कहीं ज्यादा सख्त थे नियम, 1250 साल पुराने मंदिर में हैं सबूत

अगर यह पूछा जाए कि चुनावों के लिए आचार संहिता की शुरुआत कब से हुई तो कोई भी यही कहेगा कि भारत के पहले आम चुनाव के लिए शायद नियम बनाये गए होंगे. और आम चुनाव तो शायद अंग्रेजों के जमाने से शुरू हुए थे. लेकिन अगर इतिहास को सही से खंगाला जाए तो आपको पता चलेगा कि हमारे देश में आचार संहिता का प्रावधान सदियों पुराना है.

Vaikunda Perumal Temple, Uthiramerur
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 26 जनवरी 2022,
  • अपडेटेड 3:17 PM IST
  • 1100 साल पहले से है आदर्श चुनाव आचार संहिता
  • तमिलनाडु के मंदिर में मौजूद हैं सबूत

अक्सर चुनाव के समय पर हम एक शब्द सुनते हैं ‘आचार संहिता.’ बहुत बार लोगों को नहीं पता होता है कि आखिर इस शब्द का क्या मतलब है और चुनाव के लिए इसका क्या महत्व है. दरअसल, देश में चुनाव आयोग द्वारा कुछ नियम बनाए जाते हैं ताकि चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से हों. 

चुनाव आयोग के इन्हीं नियमों को आचार संहिता कहते हैं. लोकसभा/विधानसभा चुनाव के दौरान इन नियमों का पालन करना सरकार, नेता और राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी होती है. जैसे ही चुनाव आयोग चुनावों के कार्यक्रम की घोषणा करता है तो आचार संहिता लागू हो जाती है और प्रक्रिया पूरी होने बाद समाप्त होती है. 

चंद सालों नहीं बल्कि सदियों पुराना है इतिहास: 

अब अगर यह पूछा जाए कि चुनावों के लिए आचार संहिता की शुरुआत कब से हुई तो कोई भी यही कहेगा कि भारत के पहले आम चुनाव के लिए शायद नियम बनाये गए होंगे. और आम चुनाव तो शायद अंग्रेजों के जमाने से शुरू हुए थे. 

लेकिन अगर इतिहास को सही से खंगाला जाए तो आपको पता चलेगा कि हमारे देश में आचार संहिता का प्रावधान सदियों पुराना है. जी हाँ लगभग 1200 साल पुराना तो बिल्कुल है. और इस बात का प्रमाण है तमिलनाडु में कांचीपुरम से लगभग 30 किमी दूर स्थित कस्बे उथीरामेरुर में वैकुंठा पेरूमल (विष्णु) मंदिर.

मंदिर के चबूतरों पर अंकित है राज्यादेश: 

उथीरामेरुर का इतिहास लगभग 1250 साल पुराना है और इसे देश के प्राचीनतम तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है. और इसी कस्बे के प्रसिद्द वैकुंठा पेरूमल (विष्णु) मंदिर के चबूतरे की दीवारों पर 920 ईस्वी के आसपास चोल वंश का राज्यादेश दर्ज है. 

इन राज्यादेश में जो प्रावधान लिखे गए हैं, उनमें से कई का पालन हमारी आज की आदर्श चुनाव संहिता में भी होता है. बताते हैं कि सदियों पहले उथीरामेरुर के 30 वार्डों से 30 जनप्रतिनिधियों का चुनाव बैलेट सिस्टम से करवाया जाता है. 

एक निश्चित दिन पर बच्चों, महिलाओं सहित सभी लोग ग्राम सभा मंडप में उपस्थित होते थे. कहते हैं कि सिर्फ बीमार और तीर्थ यात्रा पर गए लोगों को छूट थी. ताड़ के पत्तों पर प्रत्याशियों के नाम लिखकर एक मटके में डाल दिए जाते थे. इसके बाद देखा जाता था कि सबसे ज्यादा किसके नाम के ताड़ पत्र हैं. 

और उसे ही विजेता की घोषित करते थे. किसी भी वर्ग के लोग चुनाव में भाग ले सकते थे और फिर 30 निर्वाचित लोगों में से योग्यता के अनुसार अलग समिति बनाई जाती थीं जैसे सिंचाई तालाब, बाग, परिवहन, स्वर्ण परीक्षण व व्यापार, कृषि, सूखा राहत आदि के लिए. 

क्या थी उस जमाने की आचार संहिता: 

मंदिर के चबूतरों पर अंकित राज्यादेश के मुताबिक उस समय कार्यकाल एक साल होता था. अगर कोई पद पर रहते हुए घूसखोरी करता या अन्य कोई अपराध करता था तो उन्हें बीच में ही कार्यकाल से हटाया जा सकता था. इसे आप ‘राइट टू रिकॉल’ प्रक्रिया की तरह समझ सकते हैं. 

ये थे नियम: 

  • प्रत्याशी का शिक्षित और ईमानदार होना सबसे बड़ी योग्यता थी.
  • घूसखोरी व व्यभिचार को बर्दाश्त नहीं किया जाता था. 
  • चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु 35 व अधिकतम 70 साल थी. 
  • प्रत्याशी का ईमानदारी से कमाना और कर देना अनिवार्य था.
  • एक प्रत्याशी तीन साल के अंतराल के बाद ही दूसरी बार चुनाव में खड़ा हो सकता था और जायद से ज्यादा 5 बार चुनाव में भाग ले सकता था. 
  • आय-खर्च, संपत्ति का ब्योरा देने वाले को ही चुनाव में भाग लेने की अनुमति थी. 
  • पद पर रहते हुए रिशवर लेने वाले या भ्रष्टाचार करने पर परिवार व सभी रिश्तेदार ताउम्र चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हो जाते थे. 
  • दुष्कर्म करने वाला या व्यभिचार करने वाला 7 पीढ़ियों तक चुनाव नहीं लड़ सकता था.
  • अवैध संबंध रखना, हत्या, मदिरापान, चोरी, अतिक्रमण, ठगी पर भी ताउम्र अयोग्य घोषित कर दिया जाता था. 

बताया जाता है कि 1988 में रैव गांधी इस मंदिर में दर्शन के लिए आये थे और तब एक पुजारी ने उन्हें इन राज्यादेश को अनुवाद करके बताया था. राजीव गांधी इससे बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने इस सिस्टम को समझने के लिए अधिकारी भी भेजे थे. मंदिर के चबूतरे के चारों ओर 25 राज्यादेश दर्ज हैं. आज भी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी इस मंदिर में आशीर्वाद लेने आते हैं. 

 

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