Humidity: क्या है ह्यूमिडिटी, अगर यह 80 फीसदी है तो क्या है इसका मतलब, बरसात में क्या होता है इसका असर, जानें सबकुछ

हवा में नमी के लेवल को ह्यूमिडिटी (आर्द्रता) कहा जाता है. जब उमस बढ़ती है तो ज्यादा गर्मी लगती है, पसीना ज्यादा आता है. दो थर्मामीटर से तापमान का आंकलन किया जाता है. ड्राई बल्ब उपकरण से हवा का तापमान मापा जाता है. जबकि वेट बल्ब थर्मामीटर से हवा में ह्यूमिडिटी रिकॉर्ड की जाती है. वेट बल्ब रीडिंग प्रोसेस में थर्मामीटर को कपड़े में लपेट कर तापमान लिया जाता है. सामान्य तौर पर यह तापमान खुले हवा के तापमान से कम होता है. वेट बल्ब की रीडिंग को फील्स लाइक कहा जाता है.

A woman splashes water on her face to get some respite from the heat during a hot and humid day (Photo/PTI)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 18 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 5:42 PM IST

बरसात का मौसम है. देशभर में मानसून एक्टिव है. इसके बावजूद दिल्ली-एनसीआर समेत देश के कई इलाकों में लोग गर्मी और उमस से परेशान हैं. हालांकि मौसम विभाग के मुताबिक आने वाले दिनों में कई इलाकों में बारिश हो सकती है और उमस से राहत मिल सकती है. इस मौसम में जब भी बारिश होती है, उसके कुछ देर बाद उमस यानी ह्यूमिडिटी बढ़ जाती है. ह्यूमिडिटी बढ़ने से पसीना आने लगता है. चलिए आपको बताते हैं कि ह्यूमिडिटी क्या है और इसके बढ़ने का क्या मतलब होता है.

क्या है ह्यूमिडिटी-
ह्यूमिडिटी यानी आर्द्रता हवा में नमी के लेवल को कहा जाता है. जब ह्यूमिडिटी बढ़ती है तो ज्यादा गर्मी लगती है, पसीना आता है. तापमान ह्यूमिडिटी को प्रभावित करता है. जब कड़ी धूप होती है तो जमीन में मौजूद नमी भाप बनकर उठती है. वातावरण में फैली इस भाप को ही उमस कहा जाता है. जब भाप वाली हवा बॉडी से टकराती है तो ह्यूमिडिटी का अहसास होता है.

ह्यूमिडिटी को कैसे मापा जाता है-
मौसम विभाग दो थर्मामीटर से तापमान का आंकलन करते हैं. ड्राई बल्ब उपकरण से हवा का तापमान मापा जाता है. जबकि वेट बल्ब थर्मामीटर से हवा में ह्यूमिडिटी रिकॉर्ड की जाती है. वेट बल्ब रीडिंग प्रोसेस में थर्मामीटर को कपड़े में लपेट कर तापमान लिया जाता है. सामान्य तौर पर यह तापमान खुले हवा के तापमान से कम होता है. वेट बल्ब की रीडिंग को फील्स लाइक कहा जाता है.

80 फीसदी ह्यूमिडिटी का क्या है मतलब-
अगर कमरे में 80 फीसदी ह्यूमिडिटी है तो इसका मतलब है कि कमरे में नमी हाई लेवल का है. इसके कई प्रभाव हो सकते हैं. इससे आपको चिपचिपा महसूस होगा और कमरे में रहने में आपको असुविधा होगी. हवा में अधिक नमी से फफूंद को बढ़ावा मिलता है, जो सेहत के लिए हानिकारक होते हैं. जब हवा में नमी ज्यादा होती है तो गर्मी ज्यादा लगती है. अगर हवा का सामान्य तापमान कम भी रहे और ह्यूमिडिटी 80 फीसदी हो तो इंसान को ज्यादा गर्मी महसूस होती है.

बरसात में ह्यूमिडिटी का असर-
हमारी बॉडी का सामान्य तापमान 37 डिग्री सेल्सियस होता है. अलग-अलग तापमान पर हमारी बॉडी पसीना निकालकर बॉडी को ठंडा रखने में मदद करता है. पसीने से बॉडी को ठंडा रखने की प्रक्रिया सूखे हालात में ठीक ढंग से काम करती है. लेकिन उमस वाली जगहों पर पसीना बॉडी को ठंडा रखने का प्रोसेस काम नहीं करता है. जब उमस बढ़ती है तो पसीने से भाप बनने की प्रक्रिया धीमी रहेगी, इसका असर हमारी बॉडी पर पड़ता है. अगर गर्मी और उमस बहुत ज्यादा होती है तो बॉडी के अंग काम करना बंद कर देते हैं. ऐसी स्थिति में लोगों की भी मौत हो सकती है.

उमस भरी गर्मी में घर से बाहर कम निकलना चाहिए. खेतों में काम करने वाले मजदूरों पर उमस का ज्यादा असर होने का खतरा रहता है. इस समय बच्चों और बुजुर्गों की सेहत का ध्यान रखने की जरूरत होती है.

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