क्या है भारत का First Past the Post सिस्टम… जिसके हिसाब से वोटिंग के बाद बनती हैं सरकारें, ब्रिटेन से किया गया था इसे एडॉप्ट

फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट (FPTP) काफी आसान-सा इलेक्टोरल सिस्टम है, जिसमें जिस उम्मीदवार को सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं, वह जीतता है, भले ही उसे आधे से ज्यादा वोट न मिले हों. इसी के हिसाब से भारत में कोई भी सरकार बनती है.

First Past the Post System (Representative Image/Canva)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 08 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 11:52 AM IST
  • जिसे ज्यादा वोट वो बनाता है सरकार 
  • FPTP पिछले सात दशकों से देश में सरकारें बना रहा है

हरियाणा और जम्मू कश्मीर को नई सरकार मिलने जा रही है. जम्मू और कश्मीर में 10 साल बाद विधानसभा चुनाव में वोटिंग हुई है. यहां आखिरी चुनाव 2014 में हुए थे. केंद्र शासित प्रदेश के रूप में और अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद ये पहला चुनाव है. हालांकि, केवल वोटिंग तक ही ये चुनाव खत्म नहीं हो जाता है. इसके बाद सरकार बनने की प्रक्रिया होती है. भारत में सरकार बनने का अपना एक सिस्टम है-जिसे फर्स्ट-पोस्ट-द-पास्ट सिस्टम कहा जाता है.

जिसे ज्यादा वोट वो बनाता है सरकार 
पहले आम चुनाव (1951-52) से ही फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट (FPTP) इलेक्शन सिस्टम का उपयोग किया है. ये सिस्टम पिछले सात दशकों से देश में सरकारें बना रहा है. फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट (FPTP) काफी आसान-सा इलेक्टोरल सिस्टम है, जिसमें जिस उम्मीदवार को सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं, वह जीतता है, भले ही उसे आधे से ज्यादा वोट न मिले हों. यानि उम्मीदवार को अगर किसी निर्वाचन क्षेत्र में सबसे ज्यादा वोट मिले हैं तो वह जीत जाता है, चाहे उसे 50% से अधिक वोट न मिले हों. जिस उम्मीदवार को सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं, वह “पोस्ट को पहले पार” (फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट) कर जाता है और विजेता घोषित होता है.

आइए इसे एक आसान से उदाहरण से समझते हैं:

मान लीजिए कि एक निर्वाचन क्षेत्र X है, जिसमें 100 मतदाता हैं. अब, तीन उम्मीदवार इस सीट के लिए चुनाव लड़ रहे हैं:

-उम्मीदवार A को 37 वोट मिलते हैं.

-उम्मीदवार B को 36 वोट मिलते हैं.

-उम्मीदवार C को 27 वोट मिलते हैं.

इस स्थिति में, भले ही उम्मीदवार A को आधे से ज्यादा वोट (कम से कम 51 वोट) नहीं मिले हों, फिर भी वह चुनाव जीतता है क्योंकि उसे उम्मीदवार B और C से ज्यादा वोट मिले हैं.

लेकिन यहां एक महत्वपूर्ण बात यह है कि उम्मीदवार A को केवल 37 प्रतिशत वोट मिले हैं. इसका मतलब है कि 63 प्रतिशत मतदाताओं ने उम्मीदवार A को नहीं चुना, लेकिन फिर भी A के पास सबसे ज्यादा वोट होने के कारण वह पूरे निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करेगा. 

यह एक समस्या पैदा कर सकता है. भले ही उम्मीदवार A को केवल 37 लोगों का समर्थन मिला हो, वह अब पूरे 100 मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करेगा, जिसका मतलब है कि उन 63 मतदाताओं की आवाज, जिन्होंने उम्मीदवार B या उम्मीदवार C को चुना था, अनसुनी रह सकती है.

भारत ने FPTP क्यों चुना?
जब भारत को 1947 में आजादी मिली और संविधान तैयार होना शुरू हुआ, तो संविधान निर्माताओं को देश की जरूरतों के हिसाब से एक चुनाव प्रणाली का चयन करना था. भारतीय संविधान का ड्राफ्ट तैयार करने वाली संविधान सभा ने अलग-अलग चुनाव प्रणालियों पर विचार किया, और आखिर में FPTP को अपनाया.  

फोटो- canva

FPTP सिस्टम को चुनने के कई बड़े कारण थे. FPTP दूसरों की तुलना में काफी सरल और सीधा माना गया. भारत की आबादी में पढ़े लिखे और बिना पढ़े लिखे दोनों शामिल थे…ऐसे में एक सिस्टम चाहिए था जो आसान हो और हर तरह के वोटर्स उसे समझ सकें. 

भारत ने ब्रिटेन से FPTP सिस्टम को अपनाया. संविधान सभा के कई सदस्य, जिनमें डॉ. बी.आर. अंबेडकर भी शामिल थे, एक ऐसा सिस्टम चाहते थे जो सभी को समझ आए. FPTP को एक ऐसे सिस्टम के रूप में देखा गया जो मजबूत और स्थिर सरकारों को सुनिश्चित कर सकता था.

भारतीय चुनावों के कुछ उदाहरण
पिछले चुनावों से उदाहरणों से देखें, तो 2007 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में, बहुजन समाज पार्टी (BSP) का नेतृत्व मायावती ने किया था और उनकी पार्टी ने 403 सीटों में से 206 सीटें जीतीं, जबकि उन्हें केवल 30% के आस-पास वोट मिले थे. इस चुनाव परिणाम में मायावती ने सरकार बनाई थी. 

वहीं 2014 के आम चुनाव में, भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक ऐतिहासिक जीत हासिल की थी. बीजेपी ने 543 सीटों में से 282 सीटें जीतीं, जो 1984 के बाद पहली बार था जब एक पार्टी ने लोकसभा में स्पष्ट बहुमत हासिल किया. हालांकि, भाजपा को केवल 31% कुल वोट मिले थे.

अब देखना ये होगा कि आखिर हरियाणा और जम्मू कश्मीर में कौन सरकार बनाता है और कितने प्रतिशत से.

 

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