Ken Betwa River Link Project: क्या है केन-बेतवा लिंक परियोजना, 65 लाख लोगों की बुझेगी प्यास, 11 हेक्टेयर जमीन को मिलेगा पानी

मध्य प्रदेश के खजुराहो में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केन-बेतवा लिंक परियोजना का शिलान्यास किया. इस परियोजना का उद्देश्य उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 13 जिलों में पानी की कमी को पूरा करना है.

Ken Betwa river link project
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 26 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 12:38 PM IST
  • केन-बेतवा रिवर लिंक परियोजना का हुआ शिलान्यास
  • दो चरणों में पूरा होगा रिवर लिंकिंग प्रोजेक्ट

पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की 100वीं जयंती पर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के लोगों को एक खास सौगात मिली है. मध्य प्रदेश के खजुराहो में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केन-बेतवा लिंक परियोजना का शिलान्यास किया. इस परियोजना का मकसद केन और बेतवा नदी को जोड़कर समृद्धि का एक नया अध्याय लिखा जाना है. हालांकि, इस प्रोजेक्ट की डिटेल्स से पहले हम आपको बताएंगे कि आखिर रिवर इंटरलिंकिंग होती क्या है और इसकी ज़रूरत क्यों पड़ती है. 

क्या होती है रिवर इंटरलिंकिंग
दरअसल रिवर इंटरलिंकिंग परियोजना का आधार इस उद्देश्य से जुड़ा है कि जल संसाधन से जुड़े कम और ज़्यादा के भेद को मिटाया जा सका. रिवर इंटरलिंकिंग में साल भर बहने वाली नदी को नहर के ज़रिए किसी ऐसी नदी से जोड़ दिया जाता है, जो बारिश के 4 महीनों के अलावा आम तौर पर साल भर सूखी रहती हो. यानी इस पूरी प्रक्रिया से कहीं बाढ़ और कहीं सूखे के प्रभाव को कम करके एक प्राकृतिक संतुलन बनाया जा सकता है. भारत में पहले भी छोटे पैमाने पर नदियों को जोड़ा जाता रहा है लेकिन इतने बड़े स्तर पर ये पहली बार हो रहा है. 

खजुराहो में केन और बेतवा नदी को जोड़ने की योजना का शिलान्यास हुआ. केन और बेतवा, यमुना नदी की सहायक नदियां हैं, जिनका उद्गम तो मध्य प्रदेश में होता है लेकिन दोनों ही अपनी-अपनी यात्रा पूरी कर उत्तर प्रदेश में यमुना नदी से जा मिलती हैं. केन नदी एमपी के कटनी में विंध्याचल से निकलकर पन्ना, छतरपुर और खुजराहो से बहती हुई यूपी के बांदा में यमुना से मिलती है. वहीं, बेतवा नदी एमपी के रायसेन में विंध्य पर्वतमाला से निकल विदिशा, टीकमगढ़, झांसी और ललितपुर के रास्ते हमीरपुर पहुंच यमुना में विलीन हो जाती है. 

केन-बेतवा रिवर लिंक प्रोजेक्ट 
इन दोनों नदियों में से केन नदी का 85 फीसदी कैचमेंट एरिया मध्य प्रदेश में है. केन-बेतवा लिंक परियोजना में केन नदी के पानी को बेतवा में भेजे जाने की योजना है. इस परियोजना को दो चरणों में पूरा किया जाएगा. 

पहले चरण में मध्य प्रदेश के छतरपुर ज़िले में मौजूद दौधन गांव में केन नदी पर 77 मीटर ऊंचा और 2031 मीटर लंबा दौधन बांध बनाया जाएगा. केन नदी में आए 2800 मिलियन क्यूबिक मीटर से ज़्यादा बाढ़ के पानी को इसी बांध के ज़रिए रोका जाएगा. दौधन बांध में इकट्ठा किए गए केन के इस अतिरिक्त पानी को बेतवा में भेजने के लिए 221 किमी लंबी लिंक नहर का निर्माण किया जाएगा. दौधन बांध पर ही 78 मेगावाट क्षमता के दो पावर प्लांट बनाने की भी योजना है. 

दूसरे चरण उर नदी पर लोअर उर बांध, बीना कॉम्पलेक्स और कोठा बैराज तैयार किया जाएगा. इस प्रोजेक्ट के स्केल को आप इस तरह समझिए कि एक क्यूबिक मीटर में एक हज़ार लीटर पानी होता है और इस पूरी योजना के ज़रिए केन नदी से बेतवा में 591 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी ट्रांसफ़र करने की योजना है. इस प्रोजेक्ट का सीधे तौर पर लाभ मिलेगा पानी की कमी से जूझते बुंदेलखंड के 13 ज़िलों को.

इन जिलों को मिलेगा फायदा 
केन-बेतवा लिंक परियोजना जहां मध्य प्रदेश के पन्ना, टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, दमोह, दतिया, विदिशा, शिवपुरी और रायसेन के लिए ज़िंदगी की धारा लेकर आएगी. उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड में बांदा, महोबा, झांसी, और ललितपुर के लिए यह परियोजना जीवनदायिनी साबित होगी. केन-बेतवा लिंक परियोजना से हर साल करीब 65 लाख लोगों को पीने का पानी मिलेगा. वहीं, कुल 11 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई का इंतज़ाम होगा. जिसमें से एमपी में करीब 5.59 लाख हेक्टेयर और यूपी में 2.52 लाख हेक्टेयर क्षेत्र आएगा. साथ ही, दौधन बांध पर बन रहे पनबिजली प्रोजेक्ट से हर साल 103 मेगावाट बिजली का उत्पादन करने भी योजना है. 

यानी एक बड़ी जनसंख्या को साल भर पीने के पानी की उपलब्धता, बाढ़ और सूखे की समस्या से निजात मिलेगी. इसके अलावा, ज़मीन में पानी का लेवल बढ़ना और बिजली का उत्पादन तो इस परियोजना के वे फ़ायदे हैं जो प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देते हैं. लेकिन इनके अलावा, कृषि सिंचित क्षेत्र बढ़ने से होने वाली आर्थिक समृद्धि, नहरों का विकास और उसके चलते वाटर ट्रांसपोर्ट का मार्ग खुलना और नए पर्यटन स्थलों के उभरने जैसे फ़ायदे भी हो सकते हैं. यानी कुल मिलाकर यह परियोजना बड़े पैमाने पर न केवल बुंदेलखंड की प्यास बुझाएगी बल्कि इससे मिली सिंचाई की सौगात से बुंदेलखंड की भूमि में हरियाली भी लहलहाएगी. इस पूरी परियोजना की कुल लागत बनती है 44,605 करोड़ रुपये. जिसका 90 फ़ीसदी भार केंद्र सरकार और बाकी 10 फ़ीसदी दोनों राज्यों की सरकार को मिलकर उठाना है. 

हर साल एक तिहाई भारत भयंकर सूखे की मार झेलता है. हर साल इसी देश में औसतन 4 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में रहने वाले लोगों की ज़िंदगी बाढ़ की विनाशलीला में तितर-बितर हो जाती है. लेकिन अब बाढ़ और सूखे की आपदाओं से बचाव किया जाना संभव हो सकेगा. इसके लिए देश में नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजना बहुत कारगर साबित होगी. अगर ये प्रयोग सफल हुआ तो कई और नदियों को जोड़ने की परियोजना को जमीन पर उतारने के लिए केंद्र सरकार अपने कदम बढ़ा देगी. 

 

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