हरियाणा की कई खापों, महिला संगठनों और संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने गुरुवार को नई दिल्ली के जंतर मंतर पर पहलवानों के विरोध में शामिल होने की घोषणा की. पहलवानों ने भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए हैं और खाप नेताओं से समर्थन मांगा है.
खाप नेताओं ने भी महिला पहलवानों का समर्थन करते हुए उनके साथ विरोध में शामिल होने की बात कही है. आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश से जयंत चौधरी, नरेश टिकैत जैसे बड़े नेता भी पहलवानों के समर्थन में उतरे हैं. और अब हरियाणा से खाप पंचायतों का सपोर्ट पहलवानों के हौसले बढ़ा देगा क्योंकि खाप पंचायतों का न सिर्फ राज्य बल्कि राजनीति नें भी रुतबा है.
आज हम आपको बता रहे हैं खाप पंचायत और इसके इतिहास के बारे में.
क्या होती है खाप पंचायत
खाप पंचायत हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ हिस्सों में मिलती हैं. दरअसल, ये पारंपरिक पंचायते हैं जिन्हें एक गोत्र या फिर एक बिरादरी के लोग, कई गोत्रों के लोग या एक गोत्र के कई गांव मिलकर बना सकते हैं. खाप एक गोत्र के पांच गांवों की हो सकती है या फिर 50 से भी ज्यादा गांवों की हो सकती है. हालांकि, खाप पंचायतों को कोई भी अधिकारिक या सरकारी स्वीकृति नहीं मिली हुई है.
द प्रिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, खाप पंचायत अपने इलाके में कुछ नियम-कानुनों को बनाए रखने के लिए जानी जाती है. ये नियम-कानून भी उनके ही बानए होते हैं जैसे कि गांव में कोई लड़ाई-झगड़ा होता है खाप इसे सुलझाती है. किसी परिवार में कलह है तो भी बहुत बार खाप को बुलाया जाता है. हर एक खाप का एक मुखिया होता है और दूसरे कुछ लोग विभिन्न पदों पर होते हैं जो उन्हें फैसलों में सपोर्ट करते हैं.
खाप पंचायतें मुख्य रूप से तीन काम करती हैं: पहला, सदस्यों के बीच विवादों को निपटाने का, दूसरा, यह धार्मिक विश्वास के रक्षक के रूप में कार्य करती थी और तीसरा, पंचायत पर खाप क्षेत्र को बाहरी आक्रमण से बचाने की जिम्मेदारी थी. परंपरागत रूप से छोटे मुद्दों पर खाप पंचायतों द्वारा चर्चा की जाती है लेकिन अगर कोई बड़ी समस्या है तो एक 'सर्व खाप पंचायत (बहु-गोत्र परिषद)' बुलाई जाती है.
क्या है खाप इतिहास
वैसे तो आजतक खाप के उद्भव के बारे में कोई भी निश्चित तौर पर नहीं कह सकता है. लेकिन माना जाता है कि खाप का सिद्धांत उस समय से प्रचलन में है जब लोग घुम्मक्कड़ जिंदगी जीते थे. बड़े-बड़े समुदायों में लोग एक से दूसरी जगह जाकर रहने लगते थे और वहां गांव बसा लेते थे. गांव के बुजुर्गों में से किसी एक मुखिया बनाया जाता था और कुछ उनके साथ पंच होते थे जो फैसलों में उनकी मदद करते थे.
बताया जाता है कि खाप शब्द का प्रयोग पहली बार 1890-91 में जोधपुर की जनगणना रिपोर्ट में किया गया था, जो धर्म और जाति पर आधारित थी. हालांकि, खापों पर अधिक प्रामाणिक डेटा उपलब्ध नहीं है. विशेषज्ञों के अनुसार, खाप शब्द संभवतः शक भाषा के शब्द खतप से लिया गया है, जिसका अर्थ है एक विशेष कबीले द्वारा बसा हुआ क्षेत्र.
पहले खाप की राजनीतिक इकाई को 84 गांवों के समूह के रूप में परिभाषित किया गया है. हालांकि, खाप पंचायत का कोई परिभाषित ढांचा नहीं है.. इसकी कोई औपचारिक सदस्यता नहीं है और न ही इसे बनाने के लिए कोई वैकल्पिक सिद्धांत है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि पहले खाप पंचायतों में जाटों की दबदबा नहीं होता था.
दूसरी जातियां भी होती हैं खाप में शामिल
खाप पंचायत को लेकर अक्सर मान्यता रहती है कि खाप पंचायत सिर्फ जाटों की होती है. लेकिन ऐसा नहीं है. खाप पंचायत अधितकर गोत्र आधारित होती है. ऐसे में, अलग-अलग जातियों के लोग खाप का हिस्सा होते हैं. हालांकि, ज्यादातर ऊंची जातियों को ही खाप में शामिल होने और बोलने की इजाजत मिलती है.
कुछ रिसर्च पेपर्स के मुताबिक, साल 1950 में पश्चिमी यूपी के मुजफ्फरनगर जिले के सोरेम में आजादी के बाद हुई पहली सर्व खाप पंचायत में बीनरा निवास गांव के चौधरी जवान सिंह गुर्जर इसके प्रधान थे, गांव पुनियाला के ठाकुर यशपाल सिंह उप-प्रधान थे, जबकि गांव सोरेम के चौधरी काबुल सिंह इसके मंत्री थे. तीन पदाधिकारियों में, चौधरी काबुल सिंह एकमात्र जाट थे. लेकिन आजकल खाप पंचायतों को सीधा जाटों से जोड़ा जाता है क्योंकि पिछले कुछ सालों में जाटों का दबदबा पंचायतों में बढ़ा है.