जब किसी के सपनों को पूरा करने की बात आती है तो वो हर वो कोशिश करता है जिससे उसे पा सके. यह सब खून-पसीना है जिसके परिणामस्वरूप महत्वाकांक्षाएं और आकांक्षाएं पूरी होती हैं. ऐसा ही एक ऐतिहासिक कदम सुप्रीम कोर्ट ने उठाया. सुप्रीम कोर्ट में पहली बार मूक-बधिर वकील ने अपना पहला केस लड़ा. एक सुनवाई के दौरान एडवोकेट सारा सनी ने साइन लैंग्वेज की मदद से अपना पक्ष जज साहब के सामने रखा.
भारत की न्यायिक प्रणाली में ऐसा पहला न्यायालय देखा गया जहां सुनने में असमर्थ एक वकील ने अपना मामला पेश किया. वर्चुअल प्रोसीडिंग में इंडियन साइन लैंग्वेज इंटरप्रेटर सौरव रॉय चौधरी की मदद से एडवोकेट सारा ने हिस्सा लिया. सारा के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ से एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड सचित ऐन ने अपील की थी कि ट्रांसलेटर को अनुमति दी जाए ताकि सारा कोर्ट की कार्यवाही को समझ सकें.
कौन हैं वकील सारा
केरल के कोट्टायम की रहने वाली सारा एक बधिर वकील हैं जो बेंगलुरु में रहती हैं. वह अब एक प्रैक्टिसिंग वकील और ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क की सक्रिय सदस्य हैं. वह ऐसे परिवार से आती है जिसने हर सुख-दुख में उसका साथ दिया. सारा की एक जुड़वां बहन मारिया भी हैं. दोनों बहनों ने उसी शहर के ज्योतिनिवास कॉलेज से बी.कॉम की पढ़ाई की है. पूरा किया. जबकि मैरी ने अपने पिता के करियर को आगे बढ़ाने के लिए केरल के ज्योति निवास कॉलेज से पढ़ाई की और पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए चार्टर्ड अकाउंटेंट बनीं. सारा को हमेशा पता था कि उसकी किस्मत कहां है.
सनी ने कहा, ''यह मेरे लिए एक सपने के सच होने जैसा अनुभव था. मेरे मन में हमारे देश की न्यायपालिका की सर्वोच्च अदालत में किसी मामले की पैरवी करने की बड़ी इच्छा थी, जिसकी मैंने इतनी जल्दी उम्मीद नहीं की थी. वह भी भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश की उपस्थिति में पूरी हुई. इससे मुझे अधिक आत्मविश्वास और हिम्मत मिलती है. मैं उन अन्य लोगों के लिए एक आदर्श बनना चाहता हूं जो विशेष रूप से सक्षम हैं.''सारा एक समय में एक कानून को समझने के लिए अपने तरीके से काम कर रही है. उनका उद्देश्य संविधान, विकलांगता कानून और मानवाधिकार कानून की गहराई को समझना है ताकि कई अन्य लोगों को अपने सपनों को पूरा करने और बहुत सम्मान के साथ जीवन जीने में सक्षम होने में मदद मिल सके.
न्यायाधीशों को भी होना चाहिए सांकेतिक ज्ञान
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने इंटरप्रेटर की स्पीड की तारीफ भी की. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तारीफ करते हुए कहा कि जिस स्पीड से इंटरप्रेटर साइन लैंग्वेज समझा रहे थे वो काबिल ए तारीफ है. सारा के लिए, एक इंटरप्रेटर की उपस्थिति अनिवार्य थी. एक सांकेतिक भाषा को कोई भी इंटरप्रेटर केवल लगभग एक घंटे तक ही समझा सकता है, इसलिए दो इंटरप्रेटर होने चाहिए. लेकिन 22 सितंबर को मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने विकलांग व्यक्तियों (पीडब्ल्यूडी) के अधिकारों से संबंधित एक मामले में सांकेतिक भाषा इंटरप्रेटर सौरव रॉय चौधरी के माध्यम से बाधित वकील सारा सनी की सुनवाई की. सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता आदीश सी अग्रवाल ने कहा कि न्यायपालिका को इन स्थितियों से निपटने के लिए तैयार होने की जरूरत है. उन्होंने कहा,“यहां तक कि न्यायाधीशों को भी सांकेतिक भाषा का कम से कम बुनियादी ज्ञान होना आवश्यक है, ताकि संकेत व्याख्याकार जानबूझकर या अनजाने में अदालत को गुमराह या गुमराह न करें. न्यायाधीशों को विशेषज्ञ होने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन कम से कम उन्हें बुनियादी ज्ञान होना चाहिए. ”
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