नानी पालकीवाला: बचपन में हकलाते थे, बड़े होकर बने ऐसे वकील कि दलीलें सुन हिल जाती थीं सुप्रीम कोर्ट और संसद की दीवारें

नानाभोय ‘नानी’ अर्देशिर पालकीवाला का नाम आज की पीढ़ी ने शायद ही सुना हो. लेकिन एक जमाना था जब उन्हें सुनने के लिए आम से आम लोग भी कोर्टरूम में जमा हो जाया करते थे. नानी पालकीवाला एक मशहूर भारतीय वकील थे जिन्होंने संविधान में आम नागरिकों के मौलिक अधिकारों की न सिर्फ चर्चा की बल्कि उन्हें बचाये रखने में भी योगदान दिया. 

Nani Palkhivala (Credits: HT)
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 16 जनवरी 2022,
  • अपडेटेड 4:24 PM IST
  • 16 जनवरी, 1920 को बॉम्बे (अब मुंबई) में हुआ था जन्म
  • सरकार के खिलाफ लड़े कई मुकदमे
  • पालकीवाला से बजट समझने के लिए इकट्ठा होते थे लोग

नानाभोय ‘नानी’ अर्देशिर पालकीवाला का नाम आज की पीढ़ी ने शायद ही सुना हो. लेकिन एक जमाना था जब उन्हें सुनने के लिए आम से आम लोग भी कोर्टरूम में जमा हो जाया करते थे. नानी पालकीवाला एक मशहूर भारतीय वकील थे जिन्होंने संविधान में आम नागरिकों के मौलिक अधिकारों की न सिर्फ चर्चा की बल्कि उन्हें बचाये रखने में भी योगदान दिया. 

पालकीवाला का जन्म 16 जनवरी, 1920 को बॉम्बे (अब मुंबई) में एक पारसी परिवार में हुआ था. पढ़ाई में दिलचस्पी रखने वाले पालकीवाला युवावस्था में हकलाते थे. तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि हकलाने वाला यह बच्चा एक दिन महान वकील बनेगा और ऐसी दलीलें पेश करेगा कि सुप्रीम कोर्ट से लेकर संसद तक की दीवारें हिल जाएंगी.

उनके मुकदमों के लिए भर जाता था कोर्टरूम: 

पालकीवाला ने सेंट जेवियर्स कॉलेज से इंग्लिश में मास्टर्स की. लेकिन इसके बाद उन्हें लेक्चररकी नौकरी नहीं मिली तो उन्होंने बॉम्बे के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज में कानून की पढ़ाई के लिए आवेदन दिया. अपनी डिग्री पूरी करने के बाद वह साल 1946 में बार में शामिल हो गये. 

उन्होंने प्रसिद्ध जमशेदजी बेहरामजी कंगा के साथ काम करना शुरू किया और बतौर असिस्टेंट उनका पहला केस ‘नुसरवान जी बलसारा बनाम स्टेट ऑफ़ बॉम्बे’ था. जिसमें बॉम्बे शराबबंदी कानून को चुनौती दी गयी थी. साल 1950 तक उन्होंने खुद अपने मुकदमों की पैरवी करना शुरू कर दिया था. 

पालकीवाला हमेशा लोगों के हितों में मुकदमे लड़ते थे. उनका लक्ष्य संविधान और लोगों के अधिकारों की रक्षा रहा. 
‘नानी पालकीवाला: ए रोल मॉडल’ के लेखक मेजर जनरल निलेन्द्र कुमार के अनुसार, पालकीवाला ने अपने करियर में 140 महत्वपूर्ण मुकदमे लड़े थे. टैक्स और कॉर्पोरेट मामलों में नानी पालकीवाला को महारत हासिल थी, पर वे हमेशा ही जनता की आवाज़ बने. 

कहते हैं कि अपने मुकदमों में वह ऐसी दलीलें देते थे कि उन्हें सुनने के लिए कोर्टरूम भर जाता था. 

सरकार के खिलाफ जाने से नहीं चूके: 

कई मुकदमों में पालकीवाला ने सरकार की खिलाफत की और आम लोगों के अधिकारों की रक्षा की. उनसे मुकदमों में हारने के बाद सरकार के पास संविधान में संशोधन कराने के अलावा और कोई विकल्प नहीं रह जाता था. साल 1970 में उन्होंने एक महत्वपूर्ण मुकदमा ‘आरसी कूपर बनाम केंद्र सरकार’ लड़ा था. 

इसमें इंदिरा गांधी सरकार द्वारा बैंकों के राष्ट्रीयकरण को चुनौती दी गई थी. नानी पालकीवाला ने इंदिरा सरकार द्वारा पारित बिल के ख़िलाफ़ पैरवी कर जीत पाई. कोर्ट में हारने के बाद सरकार ने संविधान में संशोधन कर दिया. नानी पालकीवाला के लिए ‘केशवानंद भारती बनाम केरल सरकार’ मुकदमा शायद उनकी ज़िंदगी का सबसे महत्वपूर्ण मुकदमा था. 

इसे भारतीय संविधान की रूह को अक्षुण रखने वाला सबसे महान मामला कहा जाता है. इस मुकदमे को पालकीवाला ने ‘सरकार संविधान में बदलाव कर सकती है, पर इसकी आत्मा के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की जा सकती’ की आधारशिला पर लड़ा था. 

बजट विशेषज्ञ थे पालकीवाला: 

लोग न सिर्फ़ मुकदमों में उनकी दलील या बहस सुनने जाते थे, बल्कि लोग बजट भी पालकीवाला से सुनना पसंद करते थे. अक्सर कहा जाता था कि बजट पर दो ही भाषण सुने जाने चाहिए- एक वित्त मंत्री का बजट पेश करते हुए और दूसरा नानी पालकीवाला का उसकी व्याख्या करते हुए. उनके व्याख्यान इतने लोग सुनते थे कि मुंबई में स्टेडियम बुक किए जाते थे. 

अमेरिका में दिया यादगार भाषण: 

साल 1977 से लेकर 1979 तक नानी पालकीवाला अमेरिका में भारतीय राजदूत रहे. एक बार उन्होंने अपने भाषण में कहा था, “भारत एक ग़रीब देश है, हमारी ग़रीबी भी एक ताक़त है जो हमारे राष्ट्रीय स्वप्न को पूरा करने में सक्षम है। इतिहास गवाह है कि अमीरी ने मुल्क तबाह किये हैं, कोई भी देश ग़रीबी में बर्बाद नहीं हुआ… हमारी सभ्यता 5000 साल पुरानी है. भारतीयों के जीन इस तरह के हैं जो उन्हें बड़े से बड़ा कार्य करने के काबिल बनाते हैं.”

वह अमेरिका में इतने लोकप्रिय हुए कि वहां के बड़े-बड़े विश्वविद्यालय उन्हें लेक्चर देने के लिए आमंत्रित करते थे. साल 1998 में उन्हें ‘पद्मविभुषण’ से नवाज़ा गया था. 


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