केंद्र सरकार ने हाई कोर्ट में जज के तौर पर वकील सौरभ कृपाल के नाम की सिफारिश नामंजूर कर दिया है. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम से सौरभ कृपाल के नाम पर एक बार फिर विचार करने के लिए कहा है. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के जजों के रूप में नियुक्ति के लिए भेजे गए कई नाम भी पुनर्विचार के लिए कॉलेजियम को वापस भेज दिए हैं. केंद्र सरकार ने ये फाइलें 25 नवंबर को वापस भेजी हैं.
लेकिन यहां सबसे दिलचस्प मामला है सौरभ कृपाल का. क्योंकि उनका नाम 2017 के बाद से कई बार केंद्र सरकार की तरफ से नामंजूर किया जा चुका है और उनकी पदोन्नति में देरी हुई है. आपको बता दें कि सौरभ कृपाल, भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश बी एन कृपाल के बेटे हैं. जस्टिस बी एन कृपाल 6 मई 2002 से 8 नवंबर 2002 तक देश के मुख्य न्यायाधीश रहे हैं.
समलैंगिक है सौरभ
अपनी पदोन्नति में देरी के बारे में बात करते हुए, सौरभ कृपाल ने पिछले दिनों मीडिया को बताया था कि उनके सेक्सुअल ओरिएंटेशन के कारण उनकी पदोन्नति में देरी हुई है. क्योंकि सौरभ कृपाल एक समलैंगिक के रूप में सामने आए. इसलिए उनके नाम की सिफरिश पर केंद्र ने आपत्ति जताई है.
सीनियर एडवोकेट सौरभ कृपाल LGBTQ+ एक्टिविस्ट और लेखक हैं. साल 2021 में वह देश के पहले समलैंगिक सीनियर एडवोकेट होने के लिए चर्चा में आए. सौरभ ने दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से फिज़िक्स की पढ़ाई की. उसके बाद, सौरभ कानून की पढ़ाई करने के लिए स्कॉलरशिप पर ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय गए और बाद में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की.
सेक्शन 377 को हटाने में दिया योगदान
1990 के दशक में भारत वापस आने से पहले सौरभ ने कुछ समय के लिए जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र के साथ भी काम किया. भारत लौटने के बाद से, सौरभ दिल्ली हाई कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे हैं और उन्होंने कई महत्वपूर्ण मामलों में बहस की है, जिनमें से अधिकांश संवैधानिक, बिजनेस, दीवानी और आपराधिक मामले थे.
सौरभ कृपाल ने पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी के चैंबर में जूनियर एडवोकेट के तौर पर भी काम किया. दिल्ली उच्च न्यायालय के 31 न्यायाधीशों के सर्वसम्मत निर्णय के बाद मार्च 2021 में सौरभ कृपाल को सीनियर एडवोकेट के रूप में प्रमोट किया गया. सौरभ कृपाल ने भारत में एलजीबीटीक्यू अधिकारों की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. वह उस केस का हिस्सा थे जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया और समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया.
बन सकते हैं देश के पहले समलैंगिक जज
सौरभ कृपाल का नाम कई बार सरकार को दिल्ली हाईकोर्ट में स्थायी जज के रूप में नियुक्ति के लिए कई बार भेजा गया. लेकिन सरकार ने पहले भी और अब फिर से सिफारिश प्रक्रिया को रोक दिया. सूत्रों के मुताबिक, सौरभ कृपाल के नाम पर आपत्ति की वजह उनके विदेशी मूल के पार्टनर हैं. सौरभ स्वघोषित समलैंगिक हैं. सरकार को आपत्ति इस पर नहीं बल्कि उनके विदेशी साथी को लेकर है जो उनके साथ ही रहता है.
दरअसल, सौरभ कृपाल लंबे समय से एक स्विस नागरिक के साथ रिलेशनशिप में हैं. उनके पार्टनर निकोलस जर्मेन स्विट्ज़रलैंड के ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट हैं और स्विस फेडरल डिपार्टमेंट और फॉरेन अफेयर्स में काम करते हैं. केंद्र का कहना है कि उनके पार्टनर का विदेशी मूल का होना देश के लिए सुरक्षा जोखिम हो सकता है.
हालांकि, सौरभ इस तर्क को खारिज करते हैं और उनका कहना है कि उनके सेक्शुअल ओरिएंटेशन के कारण ही उन्हें पदोन्नति नहीं दी जा रही है. हालांकि मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर के प्रावधानों के तहत अगर कॉलेजियम की ओर से दोबारा नाम केंद्र को भेजा जाता है तो सरकार को इसे क्लियर करना होगा और अगर उनके नाम को मंजूरी मिल जाती है तो सौरभ कृपाल देश के पहले समलैंगिक जज बन जाएंगे.
सरकार बनाम न्यायपालिका
इधर सरकार ने पुनर्विचार के लिए 20 फाइलें वापस कॉलेजियम को भेजी, उधर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी भी फूटी. केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट में जज के तौर पर नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम से प्रस्तावित 20 नामों की फाइल वापस कॉलेजियम को भेज दी है. सरकार ने इन नामों पर आपत्ति जताते हुए जजों की नियुक्ति की फाइल पुनर्विचार के लिए वापस भेजी है.
इन 20 फाइलों में 9 वो नाम हैं जिनकी सिफारिश कॉलेजियम ने दोहराई थी. लेकिन 11 वो हैं जिनकी पहली बार सिफारिश की गई है. सरकार ने 25 नवंबर को ये फाइलें वापस भेजी हैं.
इसके अगले दिन संविधान दिवस पर सुप्रीम कोर्ट जजों का कानून मंत्री का आमना सामना भी हुआ. प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी सुप्रीम कोर्ट परिसर में आए. अगले दिन कानून मंत्री किरण रेजिजू का बयान आया जिस पर अगले दिन जस्टिस संजय किशन कौल ने टिप्पणियां की.