लोकसभा से त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय बिल 2025 को मंजूरी मिल गई है. इस यूनिवर्सिटी से हर साल 8 लाख प्रशिक्षित पेशेवर निकलेंगे. यह यूनिवर्सिटी गुजरात के आणंद में बनेगा. त्रिभुवन दास पटेल के नाम पर यूनिवर्सिटी बनाने के बिल पर कई सांसदों ने सवाल उठाया. अब सवाल उठ रहा है कि आखिर जिसके नाम पर सहकारी यूनिवर्सिटी बनाई जा रही है, वो त्रिभुवन दास पटेल कौन थे? आखिर उनके नाम पर सहकारी यूनिवर्सिटी क्यों बनाई जा रही है? चलिए इन सवालो के जवाब जानते हैं.
त्रिभुवन दास के नाम पर यूनिवर्सिटी क्यों?
संसद में सांसद के सवाल का जवाब देते हुए अमित शाह ने कहा कि अमूल की स्थापना त्रिभुवन भाई पटेल ने की थी. वर्गीज कुरियन को अमूल में नौकरी देने का काम त्रिभुवन पटेल ने किया था. उन्होंने कहा कि कुरियन साहब को दुग्ध उत्पादन पर अध्ययन के लिए डेनमार्क भेजने का काम भी त्रिभुवन पटेल ने किया था. इसलिए यूनिवर्सिटी का नाम उनके नाम पर होगा.
कौन थे त्रिभुवन दास पटेल?
त्रिभुवन दास पटेल एक स्वतंत्रता सेनानी और सहकारिता आंदोलन के बड़े नेता थे. उन्होंने आणंद में अमूल की स्थापना की थी. इससे देश में श्वेत क्रांति की शुरुआत हुई. उनका जन्म आणंद में एक अमीर फैमिली में 22 अक्तूबर 1933 को हुआ था.
त्रिभुवनदास पटेल राजनीतिज्ञ के साथ एक वकील भी थे. आजादी की लड़ाई में वो कई बार जेल भी गए थे. आजादी के बाद कैरा जिले के डेयरी किसानों के लीडर बन गए. उस समय आणंद में पोलसन डेयरी का कब्जा था. वो किसानों से कम कीमत पर दूध खरीदते थे. ये डेयरी किसानों को दूसरे वेंडर को दूध बेचने भी नहीं देती थी. इसके खिलाफ साल 1946 में किसानों ने आंदोलन किया. इसके बाद त्रिभुवनदास पटेल की अगुवाई में को-ऑपरेटिव सोसाइटी बनाने की बात हुई, जो किसानों के दूध का उचित मूल्य दे.
अमूल की शुरुआत की थी-
त्रिभुवन दास पटेल ने 14 दिसंबर 1946 को गुजरात के आणंद में कैरा जिला दुग्ध उत्पादक संघ की स्थापना की. बाद में ये अमूल के नाम से फेमस हुआ. बाद में त्रिभुवन दास पटेल ने आणंद में अमूल के प्लांट के लिए जमीन भी दान दी थी. अमूल की शुरुआत 247 लीटर दूध के साथ 2 गांवों से की गई थी.
कुरियन को 600 रुपए की सैलरी पर समिति से जोड़ा-
वर्गीज कुरियन ने विदेश में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी. त्रिभुवन दास उनसे सलाह लेते थे. कुरियन ने कैरा सहकारी समिति की पुरानी मशीनों की मरम्मत भी की. बाद में त्रिभुवन दास ने वर्गीज कुरियन को 600 रुपए सैलरी पर समिति में जॉइन कराया. इसके बाद वर्गीज कुरियन फिर अमूल छोड़कर नहीं जा पाए.
त्रिभुवनदास पटेल ने वर्गीज़ कुरियन को साल 1950 में कैरा जिला सहकारिता दुग्ध उत्पादक संघ का महाप्रबंधक बनाया. कैरा डेयरी ने छोटे-छोटे किसानों से 1-1, 2-2 लीटर दूध इकट्ठा करके उसकी आपूर्ति बॉम्बे मिल्क स्कीम शुरू की तो और किसान एकजुट होने लगे.
कुरियन ने पटेल की तारीफ की-
कुरियर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि भारत में दुग्ध सहकारिता समितियों पर राजनेताओं और नौकरशाहों ने कब्ज़ा कर रखा था. त्रिभुवनदास पटेल ने जो परम्परा कायम की थी, उसका निर्वहन करते हुए हमने आणंद की सभी सहकारी समितियों को इस बुराई से बचाया था. त्रिभुवनदास जी के सम्पर्क में आने के बाद मैंने सरकारी नौकरी नहीं की, मैं किसानों का सेवक बन गया.
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