Frothing in Yamuna: Chhath Puja के वक्त हर साल यमुना में कहां से आ जाता है झाग, क्या हैं इसके नुकसान और कैसे मिलेगा छुटकारा... जानिए सब कुछ

यमुना में हर साल दिखने वाले इस झाग को 'फ्रोथिंग' कहा जाता है. देखने में भले ही यह झाग हानिकारक न लगे लेकिन यमुना में उतरने वाले लोगों को यह कई तरह की बीमारियां दे सकता है. सवाल उठता है कि पवित्र मानी जाने वाली यमुना में यह झाग आता कहां से है?

हर साल छठ के समय ही क्यों आता है यमुना में झाग? (Photo/Getty Images)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 19 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 1:30 PM IST

पांच से आठ नवंबर के बीच दुनियाभर में लोग बिहार का लोकप्रिय पर्व 'छठ' (Chhath Puja 2024) मनाएंगे. दिल्ली-एनसीआर (Delhi NCR) में जब भी लोग यह त्योहार मनाते हैं तो यमुना में तैरते हुए झाग (Foam in Yamuna) की तस्वीरें अकसर वायरल होती हैं. सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु इस झाग के बीच से गुजरते हुए यमुना में डुबकी लगाते हैं और सूर्य की अराधना करते हैं. 

कइयों को तो यह झाग इतना मनमोहक लगता है कि वे इसके साथ तस्वीरें भी खिंचवाने लगते हैं. दिखने में खूबसूरत यह झाग भले ही हानिकारक न लगे लेकिन यमुना में उतरने वाले लोगों को यह कई तरह की बीमारियां दे सकता है. सवाल उठता है कि पवित्र मानी जाने वाली यमुना में यह झाग आता कहां से है. और इसका इलाज क्या है.

कहां से आया यमुना में झाग?
गंगा की पूरक नदी यमुना का झाग हर साल ही छठ पर्व के करीब चर्चा का विषय बन जाता है. दरअसल यमुना के किनारे दिल्ली-एनसीआर (Delhi-NCR) बसा हुआ है. यमुना की सफाई के लिए तैयार की गई कमिटी की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश की चौथी सबसे लंबी नदी यमुना का सिर्फ दो प्रतिशत हिस्सा ही राजधानी से होकर गुजरता है लेकिन यह नदी के 76 प्रतिशत प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है. 

घनी आबादी वाला राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र इस नदी में यह 'झाग' (Frothing) बनाने के लिए दो तरह से योगदान देता है. पहला तो अपने नालों के पानी के जरिए, और दूसरा घरों-फैक्ट्रियों से निकलने वाली गंदगी के जरिए. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट बताती है कि जो नाले सीवरेज नेटवर्क (Sewerage Network) से नहीं जुड़े हैं, उनका मैला पानी साफ हुए बिना ही यमुना में मिल जाता है. यह यमुना को गंदा करने में अहम भूमिका निभाता है. 
 

कई लोगों के लिए यमुना छठ पूजा करने का एकमात्र विकल्प है.

इसके अलावा रिपोर्ट सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) में जल कार्यक्रम की सीनियर प्रोगाम मैनेजर सुष्मिता सेनगुप्ता के हवाले से बताती हैं कि घरों और फैक्ट्रियों में इस्तेमाल होने वाले डिटरजेंट (Detergent) नदी में फॉस्फेट बनाते हैं. यही फॉस्फेट झाग का सबसे प्रमुख कारण है. 

छठ के समय ही क्यों बनता है सबसे ज्यादा झाग?
ऐसे में एक सवाल यह भी उठता है कि जब घरों और फैक्ट्रियों से सालभर गंदगी यमुना में जाती है तो झाग छठ के समय ही क्यों सबसे ज्यादा नुमाया होता है? एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि साल के इस समय नदी कमजोर अवस्था में होती है. पानी ज्यादा नहीं होता और न ही बहाव ज्यादा होता है. 

ऐसे में सारी गंदगी पानी में नहीं घुल पाती और झाग बन जाता है. रिपोर्ट दिल्ली जल बोर्ड (DJB) के एक अधिकारी के हवाले से बताती है कि ओखला के पास बैराज में हलचल के कारण गंदगी झाग में तब्दील होती है. सीएनएन की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस झाग में फॉस्फेट के अलावा अमोनिया भी भारी मात्रा में होता है. यह सांस और स्किन से जुड़ी बीमारियों का कारण बन सकता है. 

कैसे होगी यमुना साफ?
यमुना में सालहा-साल जमने वाले झाग के कारण को पहचानने के लिए अप्रैल 2024 में टेरी (The Energy and Resources Institute) और दिल्ली जल बोर्ड ने इस झाग पर रिसर्च करने का फैसला किया था. अगस्त 2024 में सामने आई इस रिसर्च की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि यमुना में ह्यचींथ (Water Hyacinth) नाम के पौधे और बायोमास की मौजूदगी इस झाग को ट्रिगर कर रही है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट रिसर्च के हवाले से कहती है, "कालिंदी कुंज में अचानक झाग बनने में योगदान देने वाले प्राथमिक कारकों में कीचड़ तल की गड़बड़ी. बढ़े हुए पानी के बहाव के कारण (ओखला) बैराज में अचानक बढ़ी हलचल और बारिश के पानी से बढ़ने वाले कार्बनिक पदार्थों का अतिरिक्त भार शामिल है." 

आसान शब्दों में कहें तो मानसून आते ही यमुना में पानी का स्तर बढ़ने लगता है. ऐसे में ओखला बैराज का दरवाजा नंबर 23, 25 और 26 खोल दिया जाता है जिससे पानी का बहाव करीब 20 गुणा बढ़ जाता है. यह अतिरिक्त पानी यमुना के तल में मरे हुए ह्यचींथ में हलचल पैदा करता है. रिसर्च के अनुसार इन मरे हुए पौधों में यह खासियत होती है कि हलचल होने पर यह झाग को स्थिरता प्रदान करता है. 

इसलिए दिल्ली जल बोर्ड फिलहाल इस पौधे की मौजूदगी वाले क्षेत्रों को साफ करने पर ध्यान दे रहा है. जल बोर्ड के अनुसार यह 'फ्रोथिंग' ओखला बैराज के एक किलोमीटर आगे तक फैल गई है. जल बोर्ड फिलहाल इससे निपटने के लिए एंटी-फ्रोथिंग लिक्विड (Anti-Frothing Liquid) का इस्तेमाल करेगा. फिलहाल अधिकारी यह सुनिश्चित करने के लिए स्थिति पर बारीकी से नजर रख रहे हैं कि उठाए गए कदम समस्या के समाधान में प्रभावी हैं. 

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