हर साल सितंबर के दूसरे रविवार के दिन ग्रैंडपेरेंट्स डे मनाया जाता है. इस साल यह 10 सिंतबर के दिन सेलिब्रेट किया जा रहा है. इस दिन को बच्चों के जीवन में दादा-दादी के योगदान की सराहना करने के रूप में भी देखा जा सकता है. यह दिन खासतौर पर अपने दादा-दादी और नाना-नानी को याद करने और उन्हें अपना प्यार और समर्थन देने के लिए मनाया जाता है. आइए आज जानते हैं इस डे को मनाने की शुरुआत कैसे हुई और बढ़ती उम्र में दादा-दादी डिमेंशिया के शिकार ने हों, इसके लिए कैसे रखें उनका ख्याल?
ग्रैंडपेरेंट्स डे का इतिहास
ग्रैंडपेरेंट्स डे की अवधारणा संयुक्त राज्य अमेरिका में उत्पन्न हुई थी. इसकी शुरुआत वेस्ट वर्जीनिया की एक गृहिणी मैरियन मैकक्वाडे ने की थी, जो अपने पोते-पोतियों को अपने ग्रैंडपेरेंट्स की ओर से प्रदान की जाने वाली ज्ञान और विरासत का लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहती थीं. वो पीढ़ियों के बीच संबंधों को मजबूत करने की भी आशा रखतीं थी. उनके प्रयासों के कारण 1978 में राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने ग्रैंडपेरेंट्स डे को राष्ट्रीय अवकाश के रूप में घोषित किया. भारत में ग्रैंडपेरेंट्स डे ने पिछले कुछ वर्षों में लोकप्रियता हासिल की है. सबसे पहले एज यूके नाम की एक चैरिटी ने 1990 में ग्रैंड पैरेंट्स डे मनाया.
अपनी जिंदगी की शिक्षाएं बच्चों को देते हैं
दादा-दादी के साथ बच्चों का एक अलग ही प्यार होता है. बच्चे अपने ग्रैंडपेरेंट्स के साथ दिल से जुड़े होते हैं. खासकर ऐसे बच्चे जिनको अपने दादा-दादी का प्यार मिले वह जिंदगी को और भी अच्छे से जी पाते हैं क्योंकि वह अपनी जिंदगी की शिक्षाएं बच्चों को भी देते हैं. जब पेरेंट्स अपने काम में व्यस्त होते हैं तो उस समय दादा-दादी ही होते हैं जो बच्चों की अच्छे से देखभाल करते हैं. हाल ही में सामने आए शोध में भी इस बात का खुलासा हुआ है कि दादा-दादी के साथ इमोशनल रुप से जुड़ने से बच्चों में उदास होने का खतरा कम होता है.
जीवन की परेशानियों से लड़ने की देते हैं सीख
शोध में इस बात का खुलासा भी हुआ है कि दादा-दादी के साथ बच्चों के यदि अच्छे रिश्ते हो तो इससे उन्हें जीवन की दर्दनाक परेशानियों से निपटने में मदद मिलती है. इस शोध में 1500 से ज्यादा बच्चे शामिल किए गए थे. इस शोध में साबित हुआ कि यदि माता-पिता नियमित रुप से अपने बच्चों के जीवन में दादा-दादी को शामिल करते हैं तो बच्चों का अपने ग्रैंड पेरेंट्स के साथ एक इमोशनल बॉन्ड विकसित होता है.
बढ़ता है बच्चों में आत्मविश्वास
जब बच्चे अपने दादा-दादी के साथ होते हैं तो वह प्यार, आत्मविश्वास जैसी कई सारी चीजें सीखते हैं. इससे वह हर स्थिति को भी आासानी से हैंडल कर पाते हैं और उनके अंदर आत्मविश्वास भी बढ़ता है. बच्चे इससे अपने आपको साहसी महसूस करने लगते हैं.
बढ़ती उम्र के साथ बढ़ जाता है डिमेंशिया का खतरा
बढ़ती उम्र में अक्सर लोगों को डिमेंशिया का सामना करना पड़ता है. डिमेंशिया एक तरह की मानसिक समस्या है, जिसमें व्यक्ति की याद्दाश्त, सोच, तर्क और रोजमर्रा की गतिविधियों को करने की क्षमता घट जाती है. यह कोई बीमारी नहीं है, बल्कि एक लक्षणों के समूह का नाम है, जो मस्तिष्क की हानि से जुड़ा है. आमतौर पर लोग इसे भूलने की बीमारी के नाम से भी जानते हैं. यह किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकती हैं, लेकिन उम्र के साथ खतरा बढ़ता जाता है
डिमेंशिया के लक्षण
1. याद्दाश्त कमजोर होना.
2. बात करने में कठिनाई.
3. तर्क और निर्णय लेने में मुश्किल.
4. मूड और व्यवहार में बदलाव.
5. सोचने में कठिनाई होना.
6. छोटी-छोटी समस्याओं को न सुलझा पाना.
7. भटकाव और कन्फ्यूजन.
डिमेंशिया से निपटने के लिए अपनाएं ये टिप्स
1. यदि आप डिमेंशिया में अपने दादा-दादी या नाना-नानी को सपोर्ट करना चाहते हैं, तो सबसे पहले इस स्थिति के बारे में खुद को शिक्षित करें. इसके बारे में सही तरीके से समझने पर आपको बेहतर देखभाल और मदद करने में आसानी होगी.
2. दादा-दादी को आराम और सुरक्षा की भावना महसूस कराने के लिए उनकी एक नियमित दिनचर्या बनाए रखें. पहले से तय चीजें उनकी चिंता को कम कर सकती है.
3. डिमेंशिया के कारण आपके ग्रैंडपेरेंट बार-बार एक ही सवाल कर सकते हैं या फिर कन्फ्यू हो सकते हैं, ऐसे में धैर्य बनाए रखें और प्यार से उन्हें जवाब दें, भले ही आपने एक ही सवाल का उत्तर कई बार दिया हो.
4. इस बात का ध्यान रखें कि जहां आपके ग्रैंडपेरेंट्स रह रहे हैं, वह स्थान सुरक्षित और खतरों से मुक्त हो.
5. ग्रैंडपेरेंट्स से बात करते समय साफ और सरल भाषा का इस्तेमाल करें. आंखों से संपर्क बनाए रखें. उनकी बातों को ध्यान से सुनें और जल्दबाजी में बातचीत करने से बचें.
6. ऐसी एक्टिविटीज करें, जिसे वह पसंद करते हैं. आप चाहें तो उनके पहेलियां पूछ सकते हैं, गाने गा सकते हैं या कोई पुरानी अच्छी बात याद कर सकते हैं.
7. अपने ग्रैंडपेरेंट्स को परिवार और दोस्तों के साथ मेलजोल बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करें. अकेलेपन से डिमेंशिया के लक्षण बिगड़ सकते हैं, इसलिए उन्हें अक्सर बातचीत में व्यस्त रखें.
8. यह सुनिश्चित करें कि वे डॉक्टर की ओर से दी गई सभी दवाएं लें. वह समय से दवाई ले सकें, इसके लिए अलार्म सेट करें.
9. आपको अपने दादा-दादी या नाना-नानी के व्यवहार में कोई महत्वपूर्ण बदलाव नजर आ रहे हैं, तो किसी विशेषज्ञ से परामर्श लें. सही समय पर इलाज कराएं.