Ratan Tata: रतन टाटा का पार्थिव शरीर नहीं छोड़ा गया गिद्धों के लिए... नहीं ले जाया गया टॉवर ऑफ साइलेंस... पारसी धर्म से क्यों नहीं हुआ अंतिम संस्कार... जानें इसकी बड़ी वजह

Ratan Tata Last Rites: पारसी समुदाय के लोग न तो हिन्दुओं और सिखों की तरह शव को जलाते हैं और न ही ईसाईयों और इस्लाम धर्म के लोगों की तरह दफनाते हैं. वे शव को टावर ऑफ साइलेंस के ऊपर रखकर आकाश को सौंप देते हैं. हालांकि रतन टाटा के पार्थिव शरीर को इलेक्ट्रिक अग्निदाह से अंतिम संस्कार किया गया. 

Ratan Tata Funeral (Photo: PTI)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 11 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 4:48 PM IST
  • शव को जलाना या दफनाना प्रकृति को दूषित करना मानते हैं पारसी समुदाय के लोग
  • टावर ऑफ साइलेंस के ऊपर शव को रखकर सौंप देते हैं आकाश को 

Rata Tata Funeral: दिग्गज बिजनेसमैन रतन टाटा (Ratan Tata) के निधन के बाद गुरुवार को मुंबई के वर्ली श्मशान घाट में पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया. रतन टाटा बीमारी के चलते ब्रीच कैंडी अस्पताल में लंबे समय से एडमिट थे.

उन्होंने 86 साल की उम्र में बुधवार रात को दुनिया को अलविदा कहा. रतन टाटा पारसी समुदाय से संबंध रखते थे. इसके बावजूद उनका अंतिम संस्कार पारसी रीति-रिवाजों से नहीं किया गया है. इलेक्ट्रिक अग्निदाह से उनका अंतिम संस्कार किया गया. आइए जानते हैं आखिर ऐसा क्यों किया गया और पारसी समुदाय में अंतिम संस्कार का क्या नियम है?

पारसी धर्म में ऐसे होता है अंतिम संस्कार
पारसी समुदाय (Parsi community) के लोग अंतिम संस्कार एक दम अलग तरीके से करते हैं. वे न तो हिन्दुओं और सिखों की तरह शव को जलाते हैं और न ही ईसाईयों और इस्लाम धर्म के लोगों की तरह दफनाते हैं. ये मृत्यु के बाद शव को टावर ऑफ साइलेंस के ऊपर रखकर आकाश को सौंप देते हैं. पारसी समुदाय के लोग पर्यावरण प्रेमी माने जाते हैं. उनका मानना है कि मरने के बाद भी मनुष्य का शरीर प्रकृति के काम आ सकता है, इसलिए वे शव को गिद्धों के हवाले कर देते हैं.

क्या है टॉवर ऑफ साइलेंस
पारसी समुदाय में टावर ऑफ साइलेंस (Tower of Silence) को दखमा कहा जाता है. यह एक गोलाकार ढांचा होता है. इसके ऊपर ले जाकर शव को सूरज की धूप में रख दिया जाता है. इसके बाद गिद्ध, चील और कौए शव को आकर खा जाते हैं. गिद्धों का शवों को खाना भी पारसी समुदाय के रिवाज का ही एक हिस्सा है. इस अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को दोखमेनाशिनी कहा जाता है. टॉवर ऑफ साइलेंस आमतौर पर पहाड़ी इलाके में होती है. पारसी धर्म में किसी शव को जलाना या दफनाना प्रकृति को दूषित करना माना जाता है. 

पारसी धर्म के लोग मृत शरीर को मानते हैं अशुद्ध 
पारसी धर्म के लोग मृत शरीर को अशुद्ध मानते हैं. पारसी लोग पर्यावरण प्रेमी होते हैं इसलिए वह शरीर को नहीं जलाते हैं क्योंकि इससे अग्नि तत्व अपवित्र हो जाता है. पारसियों में शवों को दफनाया भी नहीं जाता है क्योंकि इससे धरती प्रदूषित हो जाती है. पारसी शवों को नदी में बहाकर भी अंतिम संस्कार नहीं कर सकते हैं क्योंकि इससे जल तत्व प्रदूषित होता है.

पारसी धर्म में पृथ्वी, जल, अग्नि तत्व को बहुत ही पवित्र माना गया है. परंपरावादी पारसियों का कहना है कि शवों को जलाकर अंतिम संस्कार करना धार्मिक नजर से सही नहीं है. पारसी समुदाय का मानना है कि प्रकृति ने हमारे शरीर की रचना की है, इसलिए इस शरीर को वापस से प्रकृति को सौंप देना चाहिए.उनका मानना है कि मरने के बाद भी मनुष्य का शरीर प्रकृति के काम आ सकता है, इसलिए वे शव को गिद्धों के हवाले कर देते हैं.

अग्निदाह से हुआ अंतिम संस्कार
रतन टाटा के पार्थिव शरीर को वर्ली स्थित इलेक्ट्रिक अग्निदाह ले जाया गया. वहां पर अंतिम संस्कार अग्निदाह से हुआ है. ऐसा हिंदू धर्म में होता है. हालांकि इससे पहले रतन टाटा के पार्थिव शरीर को प्रार्थना कक्षा में रखा गया था. फिर पारसी धर्म के मुताबिक उनके पार्थिव शरीर पर गेह-सारनू पढ़ा गया.

अन्य सभी प्रक्रियाओं में पारसी धर्म का पालन किया गया लेकिन दखमा की जगह इलेक्ट्रॉनिक तरीके से उनके पार्थिव शरीर का अग्निदाह से अंतिम संस्कार किया गया. जिस तरह से रतन टाटा का अंतिम संस्कार इलेक्ट्रिक अग्निदाह के द्वारा किया गया. ठीक उसी तरह टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री का भी अंतिम संस्कार पारसी रीति-रिवाज के द्वारा न होकर इलेक्ट्रिक अग्निदाह में किया गया था. साइरस मिस्त्री की मृत्यु 4 सितंबर 2022 को महाराष्ट्र के पालघर में रोड एक्सीडेंट में हुई थी.

क्यों नहीं किया गया पारसी समुदाय की तरह अंतिम संस्कार 
अब आप सोच रहे हैं कि क्यों नहीं रतन टाटा के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार पारसी समुदाय की तरह किया गया. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि कोरोना काल में शवों के दाह संस्कार को लेकर नियम बदले गए थे. इसके तहत शव को खुले में नहीं रखा जा सकता. साल 2020 में कोरोना महामारी के दौरान पारसी समुदाय के अंतिम संस्कार की पारंपरिक विधियों में बदलाव आया.

महामारी के कारण शवों को खुले में रखने और टॉवर ऑफ साइलेंस में अंतिम संस्कार करने पर रोक लगा दी गई थी. इसके अलावा चील और गिद्ध जैसे पक्षियों की कमी और टॉवर ऑफ साइलेंस के लिए उचित स्थान का न होना भी पारसी अंतिम संस्कार की प्रक्रियाओं में बदलाव का कारण बने. 

 

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