किसी भी देश का प्रथम नागरिक उस देश के राष्ट्रपति को माना जाता है. ऐसे में, भारत देश की पहली नागरिक हैं हमारी राष्ट्रपति, द्रौपदी मुर्मू. आज #स्त्री_शक्ति में हम आपको बता रहे हैं द्रौपदी मुर्मू के एक आदिवासी गांव से राष्ट्रपति भवन पहुंचने तक के सफर के बारे में. द्रौपदी मुर्मू दुनिया की हर उस स्त्री के लिए शक्ति और प्रेरणा का स्वरूप हैं जो समाज की हर बड़ी से बड़ी चुनौती का सामना करके खुद के दम पर अपनी पहचान बनाने का विश्वास रखती है.
पिछड़े गांव में बीता बचपन
द्रौपदी मुर्मू ओडिशा के एक किसान परिवार में पुति टुडू के रूप में जन्मीं. उनके स्कूल शिक्षक ने उनका नाम बदलकर द्रौपदी रख दिया. वह संथाल समुदाय से आती हैं, जो भारत की तीसरी सबसे बड़ी अनुसूचित जनजाति है, गोंड और भील क्रमशः पहले और दूसरे स्थान पर हैं. उनका मूल निवास ओडिशा के रायरंगपुर के बैदापोसी क्षेत्र में उपरबेड़ा गांव था. सबसे सुदूर और सबसे अविकसित जिलों से आने के कारण, सुविधाओं की कमी, गरीबी - कई बाधाएं द्रौपदी की राह का पत्थर बनीं. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी.
द्रौपदी को कक्षा 7 से आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए अपना गांव छोड़ना पड़ा. अपने रिश्तेदार की मदद से उन्होंने जैसे-तैसे भुवनेश्वर में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की. बाद में, उन्होंने रमा देवी महिला कॉलेज, भुवनेश्वर से कला स्नातक की डिग्री हासिल की. 1979 में स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद, द्रौपदी ने ओडिशा सरकार के सिंचाई और बिजली विभाग में जूनियर असिस्टेंट के रूप में काम करना शुरू किया. हालांकि, शादी के बाद वह रायरंगपुर चली गईं, जहां उन्होंने श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर में एक शिक्षक के रूप में काम किया.
ऐसे शुरू हुई राजनीति की यात्रा
यह वह साल था जब देश अपनी आजादी का 50वां साल मना रहा था. द्रौपदी ने राजकिशोर दास के प्रोत्साहन से एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और 1997 में रायरंगपुर नगर पंचायत के लिए पार्षद के रूप में चुनी गईं. उन्होंने रायरंगपुर विधानसभा क्षेत्र से विधानसभा का चुनाव जीता और 2000 और 2009 के बीच दो कार्यकाल तक सेवा की. उस समय बीजेपी और बीजेडी ने गठबंधन कर ओडिशा में सरकार बनाई थी.
द्रौपदी ने वाणिज्य और परिवहन के लिए स्वतंत्र प्रभार के साथ मंत्री के रूप में कार्यभार संभाला और 2000 से 2002 तक कार्यालय में कार्य किया. बाद में, 2002-2004 तक, उन्होंने मत्स्य पालन और पशु संसाधन विकास राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया. हालांकि, वह 2009 में मयूरभंज लोकसभा क्षेत्र से लोकसभा चुनाव हार गईं, लेकिन 2013 में भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी (एसटी मोर्चा) के लिए चुनी गईं और 2015 तक जिला अध्यक्ष के रूप में कार्य किया.
अपनों को खोया पर नहीं खोया हौसला
द्रौपदी मुर्मू के निजी जीवन की बात करें तो उन्होंने अपने परिवार को बहुत जल्दी खो दिया. उनके पति श्याम चरण मुर्मू नाम के एक बैंकर थे, जिनका 2014 में निधन हो गया. उनके 3 बच्चे थे- 2 बेटे और 1 बेटी. दुर्भाग्यवश, उनके दोनों पुत्रों की मृत्यु हो गई. 2009 और 2015 के बीच, 7 साल की अवधि में, उन्होंने अपने पति, दो लड़कों, मां और भाई को खो दिया. द्रौपदी की जगह कोई और होता तो शायद जिंदगी से नाता ही तोड़ लेता लेकिन उन्होंने जिंदगी को जिंदादिली से जिया.
उन्होंने अपनी जिंदगी को लोगों के लिए समर्पित कर दिया. कभी समाजसेवी के तौर पर तो कभी राजनेता के तौर पर, उन्होंने पूरे दिल से लोगों की सेवा की. ओडिशा विधानसभा ने द्रौपदी को सर्वश्रेष्ठ विधायक होने के लिए नीलकंठ पुरस्कार से सम्मानित किया. विधानसभा के सदस्य के रूप में, द्रौपदी ने कुछ उल्लेखनीय योगदान दिए.
वह महिलाओं के अधिकारों की प्रवक्ता रही हैं और उन्होंने सीमांत समुदायों के अधिकारों की रक्षा के लिए आवाज उठाई. उनके द्वारा शुरू की गई नीतियों और कार्यक्रमों ने महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता को बढ़ावा दिया. कई मौकों पर उन्होंने अपने मन की बात कहते हुए कहा, "महिलाओं का सशक्तिकरण उनकी और पूरे समाज की मुक्ति की कुंजी है." द्रौपदी शिक्षा की भी समर्थक रही हैं और उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि शिक्षा तक पहुंच प्रदान करने के लिए नए स्कूल और कॉलेज स्थापित किए जाएं.
झारखंड की पहली महिला राज्यपाल
द्रौपदी मुर्मू झारखंड की राज्यपाल का पद संभालने वाली पहली महिला बनीं. उन्होंने 18 मई 2015 को राज्यपाल के रूप में शपथ ली और छह साल की अवधि, जुलाई 2021 तक पद पर रहीं. एक राज्यपाल के रूप में, द्रौपदी ने विशेषकर हाशिए पर रहने वाले लोगों को शिक्षा का बेहतर अवसर प्रदान करने के लिए बनाई गई नीतियों और पहलों को प्रोत्साहित किया. उन्होंने महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए नीतियों और कार्यक्रमों का भी समर्थन किया है. उन्होंने महिलाओं के अधिक प्रतिनिधित्व को प्रोत्साहित किया और लैंगिक समानता पर जोर दिया.
द्रौपदी मुर्मू- भारत की प्रथम नागरिक
भारतीय जनता पार्टी ने 2022 में भारत के राष्ट्रपति पद के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के उम्मीदवार के रूप में द्रौपदी मुर्मू को चुना. 64 वर्षीय द्रौपदी 64% से अधिक वैध वोटों के साथ भारत की 15वीं राष्ट्रपति बनीं. इस प्रकार वह आज़ादी के बाद जन्म लेने वाली पहली राष्ट्रपति और भारत की दूसरी महिला राष्ट्रपति बनीं. उन्होंने पूर्वी भारत के सुदूर क्षेत्र से आने वाली पहली आदिवासी राष्ट्रपति के रूप में भी इतिहास रचा. इस मौके पर उन्होंने कहा था, “राष्ट्रपति पद तक पहुंचना मेरी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है; यह भारत के हर गरीब की उपलब्धि है.'' इस मुकाम को पाने के बाद भी वह जमीनी स्तर पर लोगों से जुड़ी हुई हैं और लोगों के लिए काम कर रही हैं.