Women Reservation Bill: 27 साल, 8 सरकारें, और राज्यसभा के 186 वोट, जानिए क्या है महिला आरक्षण बिल का इतिहास और राजनीति

Women Reservation Bill: साल 2010 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के दौरान राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल को पारित किया गया था, लेकिन आज भी यह बिल लोकसभा की मंजूरी का इंतजार कर रहा है.

Women Reservation Bill
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 19 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 9:41 AM IST
  • लगभग तीन दशकों से पेंडिंग है बिल
  • पहली बार 1996 में लोकसभा में पेश किया था यह बिल

सोमवार को जैसे ही संसद का विशेष सत्र शुरू हुआ, कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने महिला आरक्षण विधेयक या बिल को सदन से पारित करने की पार्टी की मांग दोहराई. यह विधेयक लगभग तीन दशकों से पेंडिंग है. पिछले सप्ताह हुई सर्वदलीय बैठक में सत्तारूढ़ और विपक्षी दोनों गठबंधनों के दलों का समर्थन मिल इस बिल को मिला है. 

सूत्रों के मुताबिक, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की एक महत्वपूर्ण बैठक में प्रस्तावित महिला आरक्षण विधेयक को मंजूरी दे दी गई है. दिलचस्प बात यह है कि यह बिल 2010 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के दौरान राज्यसभा में पारित किया गया था, लेकिन कभी लागू नहीं हुआ. 

महिला आरक्षण विधेयक या बिल क्या है?
सरल शब्दों में, महिला आरक्षण बिल में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत या एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रस्ताव है. बिल में 33 प्रतिशत कोटा के भीतर एससी, एसटी और एंग्लो-इंडियन के लिए उप-आरक्षण का भी प्रस्ताव है. बिल में प्रस्तावित है कि हर एक आम चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को रोटेट किया जाना चाहिए. 

बिल पहली बार कब लाया गया था?
यह कानून पहली बार देवेगौड़ा के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार ने 12 सितंबर, 1996 को 81वें संशोधन विधेयक के रूप में लोकसभा में पेश किया था. हालांकि, विधेयक सदन में पारित होने में विफल रहा और लोकसभा के विघटन के साथ यह समाप्त हो गया. दो साल बाद, अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने 1998 में 12वीं लोकसभा में विधेयक को आगे बढ़ाया. कानून के एक मजबूत समर्थक, वाजपेयी ने 1998 में अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का उल्लेख किया था. 

हालांकि, इस बार भी बिल को समर्थन नहीं मिला और यह फिर से ख़त्म हो गया. बाद में इसे 1999, 2002 और 2003 में वाजपेयी सरकार के तहत फिर से पेश किया गया, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. लगभग पांच साल बाद, मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए-1 सरकार के दौरान इस विधेयक ने फिर से कुछ जोर पकड़ा. यह कानून 6 मई, 2008 को राज्यसभा में दोबारा पेश किया गया और 9 मई, 2008 को स्थायी समिति को भेजा गया. 

स्थायी समिति ने 17 दिसंबर 2009 को अपनी रिपोर्ट पेश की. इसे फरवरी 2010 में केंद्रीय मंत्रिमंडल से मंजूरी मिल गई. महिला आरक्षण विधेयक अंततः 9 मार्च, 2010 को 186-1 वोटों के साथ राज्यसभा में पारित हो गया. हालांकि, इसे कभी भी लोकसभा में विचार के लिए नहीं रखा गया और 2014 में लोकसभा के विघटन के साथ यह समाप्त हो गया. उस समय, राजद और समाजवादी पार्टी ने बिल का सख्ती से विरोध किया क्योंकि उन्होंने महिलाओं के लिए जाति-वार आरक्षण की मांग की थी. 

क्या भारत में महिलाओं के लिए राजनीतिक आरक्षण है?
भारत में पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण है. यह संविधान के अनुच्छेद 243D के माध्यम से दिया गया है. साल 1992 में, 73वां संवैधानिक संशोधन अधिनियम पारित किया गया, जिसके तहत पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए 33.3 प्रतिशत आरक्षण अनिवार्य किया गया. 

इस ऐतिहासिक संशोधन के कारण 14.5 लाख से ज्यादा महिलाओं को नेतृत्व करते हुए और स्थानीय शासन का हिस्सा बनते हुए देखा गया. आज, कम से कम 21 राज्यों ने पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया है. ये राज्य हैं - आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल.

संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व क्या है?
17वीं लोकसभा में अब तक सबसे अधिक 82 महिला  (उपचुनाव सहित) सांसद हैं. यह कुल लोकसभा सदस्य संख्या का लगभग 15.21 प्रतिशत है. 2022 में सरकार के आंकड़ों के अनुसार, राज्यसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व लगभग 14 प्रतिशत है. 2014 में, यानी 16वीं लोकसभा में, 68 महिला सांसद थीं, जो सदन की कुल ताकत का 11.87 प्रतिशत थीं. 

2019 के लोकसभा चुनाव के अनुसार, 47.27 करोड़ पुरुष और 43.78 करोड़ महिला मतदाता हैं. 2019 के चुनावों में, महिला मतदाताओं की भागीदारी 67.18 प्रतिशत थी, जो पुरुषों की भागीदारी 67.01 प्रतिशत से ज्यादा थी. 

क्या है वर्तमान स्टेट्स
सूत्रों के मुताबिक, संसद के विशेष सत्र के पहले दिन सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कैबिनेट बैठक की, जहां इस बिल को मंजूरी दे दी गई. कांग्रेस, भारत राष्ट्र समिति और बीजू जनता दल सहित कई राजनीतिक दल इस विधेयक को मंजूरी देने की मांग कर रहे हैं. विधेयक पर विचार और पारित कराने के लिए सरकार को संसद के प्रत्येक सदन में दो-तिहाई समर्थन की जरूरत होगी.


 

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