World Press freedom day : भारत के वो अखबार जिन्होंने हिला दी थी अंग्रेजी हुकूमत, पहली बार हुआ था प्रेस की ताकत का एहसास

सबसे पहले साल 1991 में दक्षिण अफ्रीका के पत्रकारों ने प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाने की मांग की थी. यह उन पत्रकारों के लिए भी याद का दिन है, जिन्होंने एक कहानी की खोज में अपनी जान गंवाई.

ये अखबार थे अंग्रेजी हुकूमत को तमाचा
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 03 मई 2022,
  • अपडेटेड 11:13 AM IST
  • कहानी की खोज में कई पत्रकारों ने गंवाई थी जान
  • बंगाल गजट ने हिलाकर रख दी थी अंग्रेजों की हुकूमत

3 मई प्रेस की स्वतंत्रता के लिए एक बड़ा दिन माना जाता है. इसलिए आज वर्ल्ड प्रेस डे के रूप में मनाया जाता है. यह उन पत्रकारों के लिए भी याद का दिन है, जिन्होंने एक कहानी की खोज में अपनी जान गंवाई. आज का दिन पत्रकारों, फोटो-पत्रकारों और मीडिया से जुड़े सभी लोगों के साथ एकजुटता दिखाने का दिन है. आइए हम अखबारों के बारे में आपको बताते हैं, जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत हिलाकर रख दी थी. 

सबसे पहले साल 1991 में दक्षिण अफ्रीका के पत्रकारों ने प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाने की मांग की थी. इसके 2 साल बाद 3 मई 1993 को संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने पहली बार विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाने का फैसला किया. प्रेस का कार्य लोगों तक सच पहुंचा कर उन्हें जागरुक करना है. 

5 अखबार जिन्होंने हिला दी थी अंग्रेजी हुकूमत

बंगाल गजट

भारत के पहले समाचार पत्र की स्थापना साल 1780 में हुई थी, जिससे पहली बार प्रेस की स्वतंत्रता का अनुमान लगाया गया था. इसका नाम 'बंगाल गजट' था, जिसकी शुरुआत जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने की थी. इसकी मदद से कई लोगों की सच्चाई सामने आई थी और इससे लोगों के मन में एक डर बैठने लगा था, जिसके कारण अंग्रेज सरकार को इससे नफरत होने लगी थी. यही कारण था की आने वाले समय में इसे बंद कर दिया गया और लोगों की आवाज दबाने की कोशिश की गई. 

उदन्त मार्तण्ड

यह एक प्रयोग के रूप में छापा गया था. इस साप्ताहिक समाचार पत्र के पहले अंक की 500 प्रतियां छापी गईं. हालांकि, हिंदी में न होने के कारण इसे ज्यादा लोग नहीं पढ़ पाते थे लेकिन, इससे अंग्रेजी हुकूमत पर काफी प्रभाव पड़ा था. पैसों की तंगी की वजह से 'उदन्त मार्तण्ड' बंद करना पड़ा था. 

प्रताप

 गणेश शंकर विद्यार्थी ने कानपुर से 9 नवंबर 1913 को को प्रताप अखबार की शुरुआत की. जिससे चारों तरफ अग्रेजों के खिलाफ क्रांति का रंग चढ़ गया था. इसमें वह सच्चाई लिखी जाती थी, जिसका कहीं से कहीं तक किसी को अंदाजा नहीं होता था. हालांकि, एक समय बाद इसे बंद कर दिया गया. 

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