कुछ तो था उसके होठों में,
पर न जाने क्यों शर्माती थी,
एक दिन वो खुलकर हंसी,
तो पता चला कि मोहतरमा तम्बाकू खाती थी.
इश्क़ के नशे में बेकाबू ना बनना,
इश्क़ के नशे में बेकाबू ना बनना,
बाबा बन जाना पर
किसी का बाबू ना बनना.
नज़र मिले तो उसे "इज़हार" कहते हैं,
रात को नींद ना आए, तो उसे "प्यार" कहते हैं,
और जो इन चक्करों में ना पड़े,
उसी को "समझदार" कहते हैं.
इतना मजबूर ना कर बात बनाने लग जाए,
हम तेरे सिर की क़सम झूठी खाने लग जायें,
मैं अगर सुना दूं अपनी जवानी के क़िस्से,
ये जो लौंडे हैं मेरे पांव दबाने लग जायें.
कैसे मुमकिन था किसी दवा से इलाज ग़ालिब,
इश्क का रोग था मां की चप्पल से ही आराम आया.