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Father of Modern Art: पोस्टकार्ड और माचिस के डब्बे से लेकर कैलेंडर तक में मिलती हैं इनकी बनाई पेंटिंग, राजा रवि वर्मा राजघरानों से लेकर गरीब घरों तक में छोड़ चुके अपनी छाप

अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 28 अप्रैल 2023,
  • Updated 4:19 PM IST
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राजा रवि वर्मा को भारत के सबसे महान पेंटर और आर्टिस्ट के रूप में जाना जाता है. उन्हें भारतीय कला को पूरी दुनिया में ले जाने के लिए भी जाना जाता है. जहां यूरोपीय और दूसरे कला प्रेमियों ने उनकी पेंटिंग की तकनीक की प्रशंसा की, वहीं भारत के आम लोगों ने उनकी सादगी के लिए उनके काम को खूब सराहा. 
 

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राजा रवि वर्मा ने अपनी पेंटिंग के जरिए दक्षिण भारतीय महिलाओं की सुंदरता को दिखाया, जिसकी सभी ने प्रशंसा की. हिंदू देवी-देवताओं का उनका चित्रण निचली जातियों के कई लोगों के लिए पूजा सामग्री बन गया. उस समय, इन लोगों को अक्सर मंदिरों में प्रवेश करने से मना किया जाता था और इस प्रकार उन्होंने राजा रवि वर्मा के काम की प्रशंसा की. 

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उन्होंने कलात्मक ज्ञान में सुधार करने और भारतीय लोगों के बीच कला के महत्व को फैलाने में भी कामयाबी हासिल की. उन्होंने सस्ती लिथोग्राफ बनाकर ऐसा किया. ये सभी गरीबों के लिए भी सुलभ थी. यही कारण है कि आम लोगों के घरों में राजा रवि वर्मा एक घरेलू नाम बन गए, और उन्होंने जल्द ही सभी के दिलों पर कब्जा कर लिया.

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1870 में, उन्हें एक पेंटिंग के लिए अपना पहला कमीशन देने की पेशकश की गई. ये कालीकट कोर्ट के एक उप-न्यायाधीश किजाक्के पलत कृष्णन मेनन का पारिवारिक चित्र था. इस पेंटिंग से ही उनके आधिकारिक करियर की शुरुआत हुई. 

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उनके लिथोग्राफ ने फाइन आर्ट के साथ आम लोगों की भागीदारी को बढ़ाया और आम लोगों को भी इसके प्रति जागरूक किया. इसके अलावा, राजा रवि वर्मा को हिंदू देवताओं के उनके धार्मिक चित्रण और भारतीय महाकाव्य कविता और पुराणों के काम को काफी प्रशंसा मिली.

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राजा रवि वर्मा तत्कालीन परप्पनड, मलप्पुरम जिले के शाही परिवार से ताल्लुक रखते थे. वर्तमान केरल राज्य के त्रावणकोर के शाही परिवार से उनके संबंध थे. बाद में उनके जीवन में, उनकी दो पोतियों को उस शाही परिवार में गोद लिया गया था. 
 

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रवि वर्मा की बनाई छवियों को लोकप्रिय रूप से पोस्टकार्ड के रूप में इस्तेमाल किया गया, कैलेंडर में, विज्ञापनों में शामिल किया गया. इतना ही नहीं बल्कि माचिस के लेबल, कपड़े के रूप में भी उनकी पेंटिंग बनी गई. इसने कलाकारों की कई पीढ़ियों को प्रभावित किया. 
 

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रवि वर्मा को 1893 में शिकागो में विश्व कोलंबियाई प्रदर्शनी में आमंत्रित किया गया था, जहां स्वामी विवेकानंद ने अपना अब तक का प्रसिद्ध भाषण दिया था. रवि वर्मा ने वहां अपने दस चित्रों का प्रदर्शन किया था. 
 

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वायसराय लॉर्ड कर्जन ने भी इस पराक्रम को पहचानते हुए उन्हें जनहित में उनकी सेवा के लिए कैसर-ए-हिंद स्वर्ण पदक से सम्मानित किया था. 


 

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1894 में, राजा रवि ने रवि वर्मा फाइन आर्ट्स लिथोग्राफिक प्रेस की स्थापना की. इसने भारत में रंगीन लिथोग्राफ की प्रिंटिंग को लेकर एक आंदोलन की शुरुआत की. इसी वजह से आम घरों में इस तरह की पेंटिंग अपना रास्ता बना पाईं.  (फोटो क्रेडिट: राजा रवि वर्मा हेरिटेज फाउंडेशन)