बंगाल का यह हिंदू परिवार 50 सालों से कर रहा है मस्जिद की देखभाल

ऐसे समय में जब हम समुदायों के बीच मतभेद, विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच संघर्ष और देश के विभिन्न हिस्सों में सांप्रदायिक तनाव की खबरें सुनते हैं तो ऐसे समय में पश्चिम बंगाल की कहानी समावेशिता के प्रतीक के रूप में सामने आती है. साल 1964 में पूर्वी पाकिस्तान से बोस परिवार उत्तर 24 परगना आया था और खुलना में जमीन का अदान प्रदान किया था.

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gnttv.com
  • पश्चिम बंगाल,
  • 04 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 6:45 PM IST
  • रमज़ान में मिलकर तोड़ते हैं रोज़ा
  • रमज़ान में मिलकर तोड़ते हैं रोज़ा

ऐसे समय में जब हम समुदायों के बीच मतभेद, विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच संघर्ष और देश के विभिन्न हिस्सों में सांप्रदायिक तनाव की खबरें सुनते हैं तो ऐसे समय में पश्चिम बंगाल की कहानी समावेशिता के प्रतीक के रूप में सामने आती है. साल 1964 में पूर्वी पाकिस्तान से बोस परिवार उत्तर 24 परगना आया था और खुलना में जमीन का अदान प्रदान किया था. जब तत्कालीन बोस संरक्षक, ईश्वर निरोद बोस ने बारासात में गियासुद्दीन मोरोल के साथ जमीन की अदला-बदली की, तो उन्होंने पाया कि जमीन एक छोटी सी मस्जिद है.

इंडिया टुडे से बात करते हुए ईश्वर निरोद बोस के बेटे 74 वर्षीय दीपक बोस ने बताया कि बोस परिवार ने मस्जिद पर कब्जा कर लिया और इसकी मरम्मत करवाई. इसके बाद 1964 से लेकर अब तक वो इसकी देखभाल कर रहे हैं.

मां ने जलाया सबसे पहला दीया
बोस ने इंडिया टुडे से कहा, "खुलना में फैले दंगों के समय मैं 14 साल का था जब हम खुलना, फिर पूर्वी पाकिस्तान से बारासात  आए थे. कानून के अनुसार, हमने खुलना में अपने साथ जियासुद्दीन मोरोल नाम के एक जमींदार के साथ वर्ग फुट के क्षेत्र में अदला-बदली की. जो जमीन मेरे पिता ने यहां अधिग्रहण की थी वो एक छोटी मस्जिद थी." वर्तमान में बोस परिवार के मुखिया कुलपति दीपक बोस ने मस्जिद की देखभाल का श्रेय अपनी मां को दिया.

रमज़ान में मिलकर तोड़ते हैं रोज़ा
बोस ने कहा, "मेरे माता-पिता काफी उदार स्वभाव के थे, उनका मानना ​​था कि पूजा की जगह एक पवित्र स्थान है और इसका सम्मान किया जाना चाहिए. मेरी मां ने इस मस्जिद में सबसे पहले दीया जलाया था." बोस परिवार की तीसरी पीढ़ी ने अब मस्जिद की देखभाल का जिम्मा संभाल लिया है और रमज़ान के दौरान बोस परिवार मुसलिम भाइयों के साथ मिलकर रोज़ा तोड़ता है. 

रमज़ान में मिलकर तोड़ते हैं रोज़ा
पार्थ बोस ने कहा, "मेरे दादा और मेरे पिता के बाद मेरी पीढ़ी हमारी मस्जिद की देखभाल कर रही है. हम यह देखकर खुश हैं कि हमारी अगली पीढ़ी इस मस्जिद की देखभाल के लिए आगे आने के लिए उत्सुक हैं. मेरी बेटी मुझसे कहती है कि मस्जिद की शान बनाए रखने के लिए जो कुछ होगा वो करेगी." मस्जिद के इमाम अख्तर अली ने दावा किया कि मूल मस्जिद लगभग 500 साल पुरानी थी.

आने वाली पीढ़ियां भी करेंगी देखभाल
इमाम ने बताया,"बोस परिवार ने इस जगह पर कब्जा कर लिया और मस्जिद का पुनर्निर्माण किया. पहले यह खराब स्थिति में थी, जब यह गियासुद्दीन मोरोल की थी जो इस समय बांग्लादेश में हैं. यह लगभग 500 साल पुरानी है और बोस परिवार ने इसकी बहुत अच्छी देखभाल की थी." दीपक बोस से बात करते हुए, इंडिया टुडे ने पूछा कि क्या उन्हें पिछले 50 वर्षों में कभी समस्याओं का सामना करना पड़ा, क्योंकि वह मस्जिद की देखभाल कर रहे हैं या क्या वह मस्जिद को किसी धार्मिक निकाय को बेच देंगे?

इसके जवाब में बोस ने कहा, "मेरे पिता ने इसकी देखभाल की, फिर मैं, अब मेरा बेटा इसकी देखभाल कर रहे हैं. मुझे उम्मीद है कि हमारी आने वाली पीढ़ियां भी ऐसा ही करेंगी. हम सभी अलग-अलग नामों से भगवान की पूजा करते हैं, लेकिन भगवान एक ही हैं." 

(सूर्याग्नि रॉय की रिपोर्ट)

 

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