देश को आजाद हुए 75 साल हो चुके हैं और इसलिए इस बार हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं. हमारे देश को आजाद करवाने के लिए कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुतियां दीं. इनमें ऐसे कई हैं जिनकी योजनाओं के कारण देश को आजादी मिल पाईं. उनमें से एक हैं सुभाष चंद्र बोस. उन्हें याद करते हुए 23 जनवरी को प्रधानमंत्री मोदी ने इंडिया गेट में नेताजी की एक डिजिटल प्रतिमा का अनावरण किया था.
अब महज 10 साल के आरव ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की महान स्मृति में इन जुड़वां राष्ट्रीय अवसरों को मनाने के लिए मोइरंग, मणिपुर से नई दिल्ली तक इस साइकिल यात्रा तय की है. जो उन्हें अपने आदर्श और नायक के रूप में मानते हैं.
आरव ने लगभग 2600 किलोमीटर की यात्रा की तय
नेताजी सुभाष चंद्र बोस और उन तमाम स्वतंत्र सेनानियों को श्रद्धांजलि देने के लिए महज 10 साल के आरव ने 8 राज्यों से होकर लगभग 2600 किलोमीटर की यात्रा तय की है. यह यात्रा दिल्ली में आकर समाप्त हुई है. खास बात यह है कि आरव को इस उपलब्धि के लिए भारतीय सेना द्वारा पुरस्कृत भी किया गया है. उन्हें नेशनल वॉर मेमोरियल में इंडिया आर्मी द्वारा सम्मानित किया गया है.
32 दिनों में हुई यात्रा पूरी की
दरअसल, यह एक मैराथन साइकिल यात्रा थी जिसे आरव ने अपने पिता के साथ कुल 32 दिनों में पूरा किया है. आठ राज्यों से होकर लगभग 2600 किमी की दूरी तय करते हुए इस मैराथन साइकिल यात्रा को पूरा किया गया. इसे मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह, मुख्यमंत्री, ने 14 अप्रैल को आईएनए युद्ध स्मारक, मोइरंग, जिला बिष्णुपुर, मणिपुर से हरी झंडी दिखाकर रवाना किया था. जिसके बाद नेताजी सुभाष चंद्र बोस को श्रद्धांजलि और सम्मान देने के लिए 15 मई को बेटे और पिता दोनों साथ में नई दिल्ली पहुंचे.
14 अप्रैल को हुई थी यात्रा शुरू
आरव और उनके पिता अतुल भारद्वाज का यह सफर 14 अप्रैल 2022 को मणिपुर राज्य की राजधानी इंफाल के पास मोइरंग से शुरू हुआ तह. साइकिल यात्रा मणिपुर, नागालैंड और असम, पश्चिम बंगाल, बिहार यूपी, हरियाणा से होकर गुजरी और 14 मई 2022 को 2500 से अधिक साइकिल चलाकर सोनीपत पहुंची.
गौरतलब है कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में 14 अप्रैल का विशेष महत्व है. इस दिन 1944 में, नेताजी सुभाष बोस के नेतृत्व में इंडियन नेशनल आर्मी (INA) ने मणिपुर के मोइरंग में ब्रिटिश सेना को हराकर मोइरंग में भारतीय तिरंगा फहराया था. 'विजय दिवस' कहे जाने वाले इस दिन को हमारे स्वतंत्रता आंदोलन में एक स्वर्णिम अक्षर दिवस के रूप में याद किया जाता है.
आरव स्वतंत्रता सेनानियों से हैं प्रभावित
आरव बताते हैं कि वे अपने देश के स्वतंत्रता सेनानियों से बेहद प्रभावित हैं. इसलिए वे उन्हीं से प्रेरणा लेकर बड़े होकर देश की सेवा में समर्पित होना चाहते हैं. वे बताते हैं कि उनका लक्ष्य है कि या तो वे भारतीय सेना में शामिल हों या फिर अपने आप को इतना काबिल बनाएं कि स्पोर्टस के क्षेत्र में ओलंपिक में भारत के लिए गोल्ड मेडल जीत सकें.
छठी कक्षा में पढ़ते हैं आरव
आपको बता दें, आरव, रोहिणी के हेरिटेज स्कूल में छठी कक्षा में पढ़ते हैं. इस छोटी सी उम्र में उन्होंने दो बार बद्रीनाथ, दो बार तिरुपति, चार बार वैष्णो देवी और एक बार केदारनाथ और अपने माता-पिता / दादा के साथ कुछ देशों का दौरा किया है. उनके पिता डॉ अतुल भारद्वाज दिल्ली में एक प्रसिद्ध स्पाइन और जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जन हैं. उनकी मां डॉ स्वाति भारद्वाज एक प्रमुख बाल रोग नेफ्रोलॉजिस्ट हैं.