यह कहानी है एक ऐसे नौजवान की जिसके ऊपर पुलिस वाले के कत्ल का इलज़ाम था. इलज़ाम साबित होने पर उसे फांसी की सजा हो सकती थी. और तो और जब अदालत में उसके ऊपर केस चल रहा था तब उसे सलाखों के पीछे उत्पीड़न का भी सामना करना पड़ा. उसके पास दो रास्ते थे. पहला यह की वह अपने साथ ज़्यादती करने वाले पुलिस वालों को मारकर अपना बदला पूरा करे.
दूसरा यह कि वह पुलिस वालों को मारे जरूर लेकिन कानूनी तरीके से. उसने दूसरा रास्ता चुना. उसने तय किया कि वह अपना मुकदमा खुद लड़ेगा और वो अब वकील बन गया. अमित चौधरी की कहानी एक ऐसे नौजवान की है जिसने पुलिस के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़कर खुद को निर्दोष साबित किया. यह कहानी न्याय और साहस की मिसाल है.
जब अमित पर आया झूठा इलज़ाम
बागपत के रहने वाले अमित की कहानी तब शुरू हुई जब वह 2011 में दिगंबर जैन कॉलेज में बीए सेकंड ईयर के छात्र थे. उसका सपना इंडियन आर्मी में जाने का था. 12 अक्टूबर 2011 को अमित अपनी बहन से मिलने शामली के पास एक गांव पहुंचा. उसी रात गांव में यूपी पुलिस और एक इनामी गैंगस्टर के बीच एनकाउंटर हुआ जिसमें एक पुलिसवाले की मौत हो गई.
एक लाख का यह इनामी गैंगस्टर सुमित केल था. अगली सुबह पुलिस उस गांव पहुंची और हर उस नौजवान से पूछताछ की, जिसपर उसे शक था. तभी पुलिस को मालूम हुआ कि अमित की बहन का एक देवर सुमित की गैंग का सदस्य है. यहां पुलिस को मालूम हुआ कि एनकाउंटर वाली रात यहां एक युवक आया था जो अगली सुबह घर छोड़कर जा चुका था. यहां से अमित की जिन्दगी बदल गई.
फिर हुई गिरफ्तारी...
पुलिस ने बिना किसी तफ्तीश के मान लिया कि अमित भी एनकाउंटर में शामिल गैंगस्टर का एक गुर्गा है. पुलिस अमित के घर पहुंचीं तो मालूम हुआ कि वह उस वक्त वहां मौजूद नहीं था. सो पुलिस उसके पिता और उसके भाई को उठाकर अपने साथ ले गई. जब अमित को यह पता चला कि उसके पिता और भाई को ले जाने के बाद पुलिस उसे भी ढूंढ रही है, तो वह घबरा गया.
आखिर अमित ने 24 अक्टूबर को खुद मुजफ्फरनगर पुलिस स्टेशन जाकर अपनी गिरफ्तारी दी. यहां से सुमित की मुश्किलें कम नहीं हुईं, बल्की और भी ज्यादा बढ़ गईं. पुलिस ने उसे 10 दिनों तक हिरासत में रखा और थर्ड डिग्री टॉर्चर दिया. साथ ही पुलिस ने उसकी गिरफ्तारी भी नहीं दिखाई.
जेल में ही किया वकील बनने का फैसला
पुलिस ने अमित को यहां इतना टॉर्चर किया कि एक बार तो वह खुद बोल उठा कि उसे गोली मार दी जाए. जब पूरा पुलिस स्टेशन अमित को पीटते-पीटते थक गया तो चार नवंबर 2011 को उसे पहली बार कोर्ट में पेश किया गया. इसके बाद पुलिस हिरासत भी खत्म हो चुकी थी सो पुलिस ने उसे मुजफ्फरनगर जेल छोड़ा.
अमित बताते हैं कि मुजफ्फरनगर कारावास के जेलर ने उन्हें जेल के हॉस्पिटल में भर्ती करवाया. ठीक होने के बाद अमित ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और वकील बनने का फैसला किया. उसने सेना की वर्दी के सपने को त्यागकर काला कोट धारण करने का फैसला कर लिया था. जेलर ने भी अमित को पढ़ाई करने के लिए प्रेरित किया.
फिर अमित ने लड़ी कानूनी लड़ाई
मुजफ्फरनगर जेल में 30 महीने गुज़ारने के बाद आखिरकार इलाहबाद हाई कोर्ट ने उसे ज़मानत दे दी. जब वह गांव लौटा तो एक आरोप की वजह से वह गांववालों के बीच अपनी इज़्ज़त खो चुका था. उसे गांववाले हीन भावना से देखने लगे. ऐसे में उसने गांव छोड़ मेरठ की चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने का फैसला किया.
उसने अपनी ग्रैजुएशन पूरी करने के बाद इस यूनिवर्सिटी से एलएलबी और एलएलएम की पढ़ाई की. उसने खुद का मुकदमा लड़ने का फैसला किया और पुलिस के खिलाफ कोर्ट में अपनी पैरवी की. अमित ने फैसला कर लिया था कि वह उसपर ज़ुल्म करने वाले पुलिसवालों को इंसाफ की दहलीज़ पर ला खड़ा करेगा.
अमित ने पूरे मन के साथ अपना मुकदमा लड़ा. अदालत में जब मामले की गिरहें खुलीं तो मालूम हुआ कि उसके खिलाफ एक भी सबूत नहीं था. यहां तक कि एनकाउंटर में घायल हुए दूसरे पुलिसवाले का बयान भी घटना के एक महीने बाद लिया गया था. जबकि अमित को अगले दिन ही आरोपी बना दिया गया था. यह बात पुलिस के गले की फांस बन गई.
आखिर 12 साल के लंबे इंतज़ार के बाद 27 सितंबर 2023 को अदालत ने अमित को पुलिसवाले के कत्ल के इलज़ाम से बाइज्जत बरी कर दिया. यह फैसला अमित के लिए न्याय और साहस की जीत थी. अमित चौधरी ने साबित किया है कि इंसाफ के लिए संघर्ष करने वालों को इंतज़ार ज़रूर करना पड़ सकता है, लेकिन यह लड़ाई व्यर्थ नहीं होती.