Dark Reality Of Human Trafficking: मॉर्डन स्लेवरी से लेकर सेक्स रैकेट तक, एक्टिविस्ट पल्लवी घोष ने बताई मानव तस्करी की काली सच्चाई

मानव तस्करी आज के समाज की कड़वी सचाई है, गरीब राज्यों से लोगों को बहला फुसला कर काम का लालच देकर, प्यार का झांसा देकर, जबरन उठाकर लाया जाता है फिर उनसे भीख मंगवाई जाती है. घरों में जबरदस्ती काम करवाया जाता है. औरतों को देह व्यापार में धकेला जाता है.

Anti-trafficking activist
अनामिका गौड़
  • नई दिल्ली,
  • 17 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 8:38 PM IST

एनसीआरबी यानी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक मानव तस्करी देश में दूसरे नंबर का अपराध है. बीते 10 सालों में यह अपराध 25 गुना बढ़ा है. पेश है मानव तस्करी के खिलाफ जंग लड़ एंटी ट्रैफिकिंग एक्टिविस्ट पल्लवी घोष से बातचीत के कुछ अंश. पल्लवी असम से ताल्लुक रखती हैं और फिलहाल कुछ सालों से दिल्ली में रहकर मानव तस्करी में फंसे लोगों को बचाने का काम कर रही हैं.

क्या है मानव तस्करी ?
मानव तस्करी आज के समाज की कड़वी सचाई है. गरीब राज्यों से लोगों को बहला फुसला कर काम का लालच देकर, प्यार का झांसा देकर, जबरन उठाकर लाया जाता है फिर उनसे भीख मंगवाई जाती है. घरों में जबरदस्ती काम करवाया जाता है. औरतों को देह व्यापार में धकेला जाता है.

उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश ये तीन राज्य ऐसे हैं जहां सबसे ज्यादा मानव तस्करी की जाती है.
अभी तक मैंने जितने रेस्क्यू किए हैं उनमें ज्यादा संख्या बंगाल और असम की है, इन राज्यों में गरीबी ज्यादा है. भाषा का फर्क है. ऐसी जगह से लोगों को लाना, उन्हें दबाना आसान रहता है.

हम जो सिग्नल्स पर बच्चे देखते हैं क्या वो झुग्गी झोपड़ी के बच्चे होते हैं या उनसे किसी रैकेट के तहत भीख मंगवाई जाती है?
अकसर ये बच्चे उठाए हुए होते हैं. इनसे भीख मंगवाई जाती है. सिखाया जाता है. ये एक बहुत बड़ा नेटवर्क है, इन बच्चों को नशा कराया जाता है, बुरे हाल में रखा जाता है.

मॉडर्न स्लेवरी क्या है?
बड़ी बड़ी सोसाइटी में काम के लिए लोग बच्चों को अपने घरों में रखते हैं, उनसे काम कराते हैं, उन्हें जानवर से भी बदतर हालात में रखते हैं, मैंने ऐसे कई घर देखे हैं, लोग बहुत अमीर हैं. पांच मंजिला घर है पर काम करने वाले बच्चे को गोदाम में सुलाते हैं, उसे मारते हैं, उसके बाल नोचते हैं. ये हमारे समाज का एक क्रूर चेहरा दिखाता है. इनके खुद के बच्चे भी हैं लेकिन काम करने वाले बच्चे को ये इंसान तक नहीं समझते.

क्या राज्यों के हिसाब से तस्करी में काम बांटे जाते हैं?
हां, बिलकुल मैंने कभी छत्तीसगढ़ की लड़कियों को देह व्यापार में नहीं देखा. बंगाल, असम, नॉर्थ ईस्ट की लड़कियों को देह व्यापार में धकेला जाता है और बिहार और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों की लड़कियां क्योंकि वह थोड़ी काली होती हैं उनकी स्किन टाइट होती है. इसलिए उन्हें मजदूरी के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

अभी तक कितने लोगों को रेस्क्यू कर चुकी हैं?
मैंने कभी गिना नहीं पर नंबर ज्यादा है. मैं अब फैक्ट्री से बच्चों को रेस्क्यू करती हूं. वहां से ग्रुप में बच्चे निकलते हैं. सबसे कम उम्र का 2 महीने का बच्चा था जिसे मैंने रेस्क्यू किया और सबसे बड़ी एक 65 साल की बुजुर्ग थी.

इस काम में जोखिम बहुत है, क्या कभी डर नहीं लगता?
डर तो नहीं मगर हैं मेंटल हेल्थ बहुत खराब होती है. लेकिन वो बच्चियां मेरी हिम्मत हैं, जिन्हे मजबूर किया जाता है सेक्स वर्क करने के लिए उनके लिए मेरा दिल मजबूत हो जाता है.

क्या सेक्स वर्क को लीगल कर देना चहिए?
मैं नहीं जानती कि इसे लीगल करना चाहिए या नहीं. मगर मैंने जितनी महिलाओ से बात की है उनमें से किसी ने भी इस काम को खुद की मर्जी से शुरू नहीं किया था. कोई भी सेक्स वर्क मर्जी से नहीं करना चाहता.

बिहार में अब तस्करी वाली लड़कियों को नचाया जा रहा है
उसे ऑर्केस्ट्रा डांस कहा जाता है. बिहार में इसकी बहुत डिमांड है, लड़कियों को काम का झांसा दिया जाता है और फिर उनसे ये सब कराया जाता है. ये लड़कियां 12- 12 घंटे नाचती हैं और जो इन्हें रखता है वो भी इनका शोषण करते हैं.

रेलवे स्टेशन से सबसे ज्यादा बच्चे अगवा होते हैं, आपने याचिका भी दायर की है
रेलवे स्टेशन तस्करी का सबसे बड़ा सोर्स है, अगर हम पुलिस और रेलवे पुलिस के साथ मिलकर काम करें तो इसे कम किया जा सकता है.

 

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