गाय के गोबर, मिट्टी और बांस से बनने वाले रंग-बिरंगे मुखौटे होंगे अब असम के Majuli की पहचान, मिला GI टैग

मुखा जिल्पो, या मुखौटा-निर्माण की बात करें, तो इसकी उत्पत्ति 1500 के दशक में हुई. माजुली की सांस्कृतिक टेपेस्ट्री में इसका गहरा महत्व है. असम में मध्ययुगीन काल के दौरान संत शंकरदेव ने इसे प्रस्तुत किया था.

Mask-making
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 05 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 12:02 PM IST
  • माजुली की सांस्कृतिक विरासत है ये 
  • पर्यटकों के लिए बेहतरीन जगह है माजुली

गाय के गोबर, मिट्टी और बांस से बनने वाले रंग-बिरंगे मुखौटों को अब पहचान मिल गई है. असम के माजुली के मुखौटों को GI टैग मिल चुका है.  ब्रह्मपुत्र क्षेत्र में बसे नदी द्वीप माजुली (River Island Majuli) को मुखा जिल्पो (mask-making) और पांडुलिपि पेंटिंग (Manuscript Paintings) की पारंपरिक कलाओं के लिए प्रतिष्ठित ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (GI) टैग से सम्मानित किया गया है. केंद्र सरकार ने अब इस सदियों  पुरानी लोक शिल्प को उसकी पहचान दे दी है.

माजुली की सांस्कृतिक विरासत है ये 

मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भी इस जीआई टैग को लेकर खुशी जताई है. राज्य के कारीगरों की समृद्ध कला की सुरक्षा के लिए ये जीआई टैग दिया गया है. उन्होंने क्षेत्र के मुखौटे और पांडुलिपि पेंटिंग को जीआई टैग देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार व्यक्त किया है. उन्होंने इसे लेकर सोशल मीडिया का सहारा लिया है. उन्होंने भी बताया कि कैसे यह कदम स्थानीय कलाकारों के अमूल्य कौशल की रक्षा करेगा. 

मुखा जिल्पो की विरासत

मुखा जिल्पो, या मुखौटा-निर्माण की बात करें, तो इसकी उत्पत्ति 1500 के दशक में हुई. माजुली की सांस्कृतिक टेपेस्ट्री में इसका गहरा महत्व है. असम में मध्ययुगीन काल के दौरान संत शंकरदेव ने इसे प्रस्तुत किया था. जिसके बाद ही इस पारंपरिक कला को सांस्कृतिक पहचान मिली, और इसने तेजी से लोकप्रियता हासिल की. कुशल कारीगर ही इन मुखौटों को तैयार करते हैं. ये रंग-बिरंगे मुखौटे न केवल अलग-अलग पात्रों और भावनाओं को दर्शाते हैं बल्कि वैष्णववाद विषयों के आध्यात्मिक सार को भी दर्शाते हैं. इन्हें गाय के गोबर, मिट्टी और बांस से बनाया जाता है. 

पांडुलिपि पेंटिंग की पौराणिक कहानी 

वहीं पांडुलिपि पेंटिंग की बात करें, तो हिंदू महाकाव्यों के जीवंत रंगों को दिखाते हुए माजुली की पांडुलिपि पेंटिंग भगवान कृष्ण की भागवत पुराण कथाओं की कहानियों में जान फूंक देती हैं. सांस्कृतिक विरासत और कलात्मक सुंदरता से भरपूर इन कलाकृतियों में प्राचीन धर्मग्रंथों के चित्रों को खूबसूरती के साथ दिखाया जाता है. जो बात माजुली की पांडुलिपि पेंटिंग को अलग करती है, वह न केवल दर्शाई गई कथाएं हैं, बल्कि गार्गायन लिपि, कैथल और बामुनिया सहित कई दूसरी पांडुलिपि लेखन शैलियों का भी उपयोग किया जाता है. इसमें ब्रश का प्रयोग बड़ी ही कुशलता से किया जाता है. 

पर्यटकों के लिए बेहतरीन जगह है माजुली

अपनी कलात्मकता से परे, माजुली अपने प्राकृतिक वैभव और जीवंत सांस्कृतिक दृश्य से पर्यटकों के दिल जीत लेता है. दुनिया के सबसे बड़े नदी द्वीप के रूप में, माजुली में चावल के खेतों के साथ हरे-भरे जंगल भी हैं. प्रकृति प्रेमियों के लिए ये एक शांत जगह है. इसके अलावा, यहां का पारंपरिक संगीत, नृत्य और कला लोगों को काफी लुभाता है. 


 

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