भारत एक बहुभाषी राष्ट्र है. यहां सैकड़ों क्षेत्रीय भाषाएं हैं और भारत की संस्कृति और भाषा का हजारों साल पुराना इतिहास है. ऐसे में बहुभाषी साहित्य को एक मंच पर लाकर बैंक ऑफ बड़ौदा ने एक नया कदम उठाया है. बैंक ऑफ बड़ौदा ने "बैंक ऑफ बड़ौदा राष्ट्रभाषा का सम्मान 2023" प्रतियोगिता आयोजित किया, जिसमें भारत के अलग-अलग भाषाओं में लिखे गए किताबों को हिंदी में अनुवाद किया गया. इनमें से सबसे अच्छे उपन्यास को प्रथम पुरस्कार के तौर पर 21 लाख रुपए लेखक के लिए जबकि 15 लाख अनुवादकर्ता को इनामी राशि दी गई. वही दर्जनों किताब से शॉर्टलिस्टेड पांच किताबों में से चार के लेखक और ट्रांसलेटर को तीन लाख और दो लाख रुपए की पुरस्कार राशि प्रदान की गई.
साहित्य जगत में निजी संस्थान की तरफ से दी जाने वाली ये अबतक की सबसे बड़ी पुरस्कार राशि है. इस प्रतियोगिता में पुरस्कार के तौर पर बैंक ऑफ बड़ौदा ने कुल 61 लाख रुपये विजेताओं को दिए हैं.
बैंक ने क्यों किया इतना बड़ा आयोजन
बैंक अमूमन मुनाफे वाले कार्यक्रमों पर जयादा ध्यान देते हैं फिर क्या वजह रही कि बैंक ऑफ बड़ौदा ने भाषा साहित्य के क्षेत्र में इतने बड़े कार्यक्रम का आयोजन किया. इस पर बात करते हुए बैंक ऑफ बड़ौदा के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यपालक अधिकारी संजीव चड्ढा ने बताया, बैंक ऑफ बड़ौदा की विरासत, महाराजा सयाजीराव गायकवाड से मिली है और उन्हें कला और साहित्य का पारखी माना जाता था. बैंक ऑफ बड़ौदा ने उसी विरासत को आगे बढ़ाते हुए इस सराहनीय कार्य का आयोजन किया है. बैंक ऑफ बड़ौदा के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अजय के. खुराना ने कहा कि यह बैंक के लिए एक ऐतिहासिक कदम है.
'अल्लाह मियां का कारखाना' को मिला फर्स्ट प्राइज
उर्दू किताब के लेखक मोहशीन खान को उनकी किताब "अल्लाह मियां का कारखाना" को प्रथम पुरस्कार दिया गया. इस किताब के अनुवादक सईद अहमद को भी पुरस्कार दिया गया. राष्ट्रभाषा का सम्मान एक ऐसा कार्यक्रम था जिसमें आयोजक भी थे और प्रतियोगी भी थे लेकिन इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए जो सबसे जरूरी था वह था प्रतियोगिता में आए किताबों के चयन करने वाले जूरी मेंबर. इसके लिए बैंक ऑफ बड़ौदा ने देश के कई नामी लेखकों को निर्णायक कमिटी में रखा गया था. इनकी अध्यक्षता बुकर पुरस्कार विजेता गीतांजलि श्री ने की.
ऐसे कार्यक्रम में किताबों का चयन कितना कठिन होता है इसपर बात करते हुए अनुवादक अमृता बेरा कहती हैं, कागज पर लिखे शब्दों को, या लेखों को, उसकी पहली पहचान एक पब्लिशर ही देता है. चाहे वह किताब के जरिए हो या उपन्यास के जरिए और जब किसी पब्लिशर द्वारा प्रकाशित किए गए किताब को इतनी बड़ी सफलता मिलती है, तो वह बहुत खुश होते हैं.
अगले साल और भी भव्य होगा आयोजन
महीनों से कड़ी मशक्कत के बाद आखिरकार इस आयोजन का सफल समापन देश की राजधानी दिल्ली में हो गया. पहली बार में ही यह आयोजन इतना लोकप्रिय हो गया कि अब इसमें हिस्सा लेने वाले लेखकों की डिमांड अभी से ही लाखों में हो गई है. ऐसे में बैंक ऑफ बड़ौदा में भी आने वाले दिनों की पूरी तैयारी पहले ही शुरू कर दी है और ऐसा माना जा रहा है कि अगले साल बैंक ऑफ बड़ौदा द्वारा राष्ट्र की भाषा का सम्मान कार्यक्रम आयोजन 2024 का और भी बड़ा और भव्य होगा.
(अमरदीप कुमार की रिपोर्ट)