बिहार के गया जिले में बरगांव से ताल्लुक रखने वाले प्रभात कुमार ने कुछ ऐसा कर दिखाया, जिसकी कल्पना शायद ही कोई कर सकता था. अपने गांव से सालों तक दूर रहने के बावजूद प्रभात ने यहां की कायपलट कर दी. आज उनके प्रयासों से न सिर्फ गांवों की तस्वीर बदली है बल्कि हजारों किसानों को खेती में मदद मिल रही है.
इलेक्ट्रिकल इंजीनियर, प्रभात कुमार ने साल 2015 में एक एनजीओ, SumArth की स्थापना की, जो किसानों की मदद करके उनकी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए प्रयासरत है. उनकी यात्रा अपने गांव से शुरू हुआ थी लेकिन आज भारत के सात जिलों और 600 गांवों में हजारों लोगों तक पहुंच चुकी है. बड़गांव में 11 किसानों के साथ शुरू हुए, SumArth ने 10,000 से अधिक किसानों को उनकी कृषि में - खेती से लेकर मार्केटिंग तक - हर पहलू पर मदद की है.
कैसे चुनी यह राह
पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी के एक सरकारी कॉलेज से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में अपनी डिग्री पूरी करने के बाद, प्रभात कुमार एक सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम में काम करके अच्छी आय कमा रहे थे. लेकिन तब उन्हें जागृति यात्रा के लिए चुना गया, जिससे उनकी समाज में बदलाव लाने और अपना कोई उद्यम करने में रुचि बढ़ी. बाद में, उन्हें ICICI फ़ेलोशिप प्रोग्राम के लिए चुना गया और उन्होंने वाटर शेड ऑर्गनाइज़ेशन ट्रस्ट (WOTR) के साथ काम किया, जो पुणे स्थित एक गैर-सरकारी संगठन है. वह महाराष्ट्र में किसान-उत्पादक संगठनों (FPO) के साथ भी जुड़े रहे.
प्रभात कुमार ने 2013 में भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर में स्थापित बायोटेक स्टार्टअप माइक्रोएक्स लैब्स की सह-स्थापना भी की. लेकिन इसके अगले साल ही उनके पिता के निधन के कारण उन्हें गाव जाना पड़ा ताकि वे जमीन से जुड़े मामले संभाल करें. गांव लौटने पर प्रभात को किसानों की हालत देखकर बहुत दुख हुआ. खेती को देखने और करने के तरीके को बदलने और इसे फायदेमंद बनाने की इच्छा से प्रभात ने गांव में रहने का फैसला किया. और तब उन्होंने अपने एक साथी, मंयक जैन के साथ मिलकर SumArth शुरू किया.
समस्या को जड़ से हल किया
प्रभात ने बिहार में किसानों के सामने आने वाली विभिन्न चुनौतियों को पहचाना. उनका कहना है कि किसान मुख्य रूप से धान या चावल उगाते थे. इससे बागवानी करना उनके लिए मुश्किल था. धान का बाजार में मूल्य भी उन्हें कम मिलता था. इससे किसानों का खर्च बढ़ता और आय कम होती. ऐसे में, SumArth का प्राथमिक उद्देश्य किसानों को बागवानी फसलों से जोड़ना था. साथ ही, बिहार में किसानों के बीच सामाजिक एकता की कमी है. जिस वजह से बिहार में एफपीओ कम थे. यहां स्टोरेज सुविधआएं भी नहीं थीं.
SumArth ने मार्केटिंग सिस्टम पर काम किया और ट्रेनिंग कार्यक्रमों के माध्यम से किसानों को 360-डिग्री मदद देने की कोशिश की. SumArth ने 11 किसानों के साथ प्याज का प्रोजेक्ट शुरू किया और उन्हें नियमित फसलों की बजाय प्याज की ओर बढ़ने के लिए राजी किया. प्याज की फसल और स्टोरेज से किसानों को फायदा हुआ. इसके बाद उन्होंने कम लागत वाली मशरूम खेती का मॉडल पेश किया, जो हर दिन की आय और सिर्फ 45 दिनों के भीतर दोगुना रिटर्न की गारंटी देता है.
किसानों की बढ़ी है आय
भूमिहीन परिवारों की आजीविका बढ़ाने के लिए उन्होंने साल 2017 में हनी प्रोजेक्ट शुरू किया. 2019-2020 में, SumArth के प्रयासों से 52 किसानों ने कम लागत वाले शहद उत्पादन को अपनाकर लगभग 15 लाख रुपये की आय अर्जित की. आज SumArth से अब 10,000 से अधिक किसान जुड़े हुए हैं. संगठन को अब अर्चना और अमित चंद्रा की एटीई चंद्रा फाउंडेशन, नालंदा चैरिटेबल फाउंडेशन, नाबार्ड, आईसीआईसीआई फाउंडेशन आदि से सपोर्ट मिल रहा है.
SumArth ने बिहार में टेकरी एग्रो प्रोड्यूसर लिमिटेड नामक एक एफपीओ भी स्थापित किया है, जिसमें स्थानीय किसान शेयरहोल्डर हैं. प्रभात कुमार की पहल ने न केवल बिहार में खेती की लेटेस्ट तकनीकों को बढ़ाया बल्कि किसानों में आशा और विश्वास भी जगाया है. अब उनका लक्ष्य पूरे भारत में किसानों की मदद करना है.