अब वाईफाई के जरिए ऑफिस में बैठकर भी दे सकेंगे पेड़ों को पानी...जानिए कैसे तैयार होता है ऑटोमेटिक वाटर सिस्टम

आजकल बहुत से लोग जगह की समस्या के कारण रूफ गार्डनिंग कर रहे हैं. यह देखने में भी बहुत अच्छा लगता है, लेकिन बाहर काम करने वालों के लिए एक बड़ी समस्या है समय-समय पर पानी देना. मान लीजिए आप घर पर नहीं हैं, घर के लोग दूसरे कामों में व्यस्त हैं और आप सोचेंगे कि पेड़ पौधों को पानी कौन देगा, यह एक बड़ी समस्या बन जाती है.

Roof garden (Representative Image, Unsplash)
gnttv.com
  • देवघर,
  • 28 जनवरी 2022,
  • अपडेटेड 8:07 PM IST
  • पेड़ों को रोज पानी देने में आती थी समस्या
  • गार्डन को बचाने के लिए किए कई उपाय

आजकल बहुत से लोग जगह की समस्या के कारण रूफ गार्डनिंग कर रहे हैं. यह देखने में भी बहुत अच्छा लगता है, लेकिन बाहर काम करने वालों के लिए एक बड़ी समस्या है समय-समय पर पानी देना. मान लीजिए आप घर पर नहीं हैं, घर के लोग दूसरे कामों में व्यस्त हैं और आप सोचेंगे कि पेड़ पौधों को पानी कौन देगा, यह एक बड़ी समस्या बन जाती है. लेकिन पूर्व बर्दवान जिले के शहर बर्दवान के झापानतला इलाके के सनत कुमार सिंह ने आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर इस समस्या का समाधान निकाल लिया है.

पेड़ों को रोज पानी देने में आती थी समस्या
सनत सिंह बिधानचंद्र कृषि विश्वविद्यालय के कृषि कॉलेज के बर्दवान शाखा के कर्मचारी हैं. वह दिन का ज्यादातर समय ऑफिस के काम में बिताते हैं. घर के अन्य लोग भी व्यस्त रहते हैं. ऐसे में रूफ गार्डनिंग की देखभाल करना एक समस्या बन जाती है, खासकर हर दिन समय पर पानी देना. इस समस्या का समाधान निकाला सनत सिंह के एक परिचित शोभराज मल्लिक ने जो इलेक्ट्रॉनिक्स और आईओटी का काम करते हैं. उन्होंने ही मोबाइल, राउटर, सीसीटीवी कैमरा और कुछ सामानों से ऑटोमेटिक वाटर सिस्टम तैयार किया.

कैसे बनाया ऑटोमेटिक वाटर सिस्टम
सनत ने एक दोस्त के साथ वाई-फाई तकनीक और राउटर का उपयोग करके पेड़ को सींचा. राउटर की चक्रबात  मोटर, पानी का छिड़काव करता है. सनत ने बताया कि वो अगर सैकड़ों किलोमीटर दूर भी होते हैं तो मोबाइल के एक क्लिक से पानी छिड़क दिया जाता है. इसमें निगरानी के लिए सीसीटीवी भी है. जगह के हिसाब से इन सब का खर्चा करीब 25 हजार आया. 

शुरुआत से था पेड़ों से प्यार
सनत बाबू को पेड़ों और हरियाली से पहले ही प्यार था, लेकिन घर में बगीचा बनाने के लिए जगह नहीं थी. बिधानचंद्र कृषि विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय की बर्दवान शाखा के तत्कालीन एसोसिएट डीन प्रोफेसर तपन कुमार माइती ने उन्हें रास्ता दिखाया. सनत सिंह ने कहा कि उनके कहने के अनुसार उन्होंने अपने घर की दो मंजिला छतों को एक सुंदर बगीचे में बदल दिया और सीढ़ियों पर भी पेड़-पौधे लगाए हैं. गार्डन में आलू, प्याज, अदरक, मिर्च, लहसुन के साथ मौसमी बीन्स, बैंगन, मूली, मटरशुंठी, टमाटर और बगीचे में फूलों की सजावट है.

गार्डन को बचाने के लिए किए कई उपाय
सनत ने कहा आपके खुद की खेत की सब्जियों का स्वाद ही अलग होता है. उन्होंने आगे कहा कि इस उद्यान को सुंदर बनाने के लिए कृषि महाविद्यालय के सभी शिक्षकों ने उन्हें बहुमूल्य सुझाव दिए. मिट्टी कैसे बनाएं, क्या सार डालें, पेड़ों को कीड़ों और मकड़ियों से कैसे बचाएं आदि. सब्जी के बगीचे को कीट से बचाने के लिए पूरा बगीचा भी लोहे के जाल से घेरा बन्दी किया गया है. रूफ गार्डन से पानी और मिट्टी जमा होने से छत को नुकसान होने की संभावना रहती है. इसके लिए उपाय भी अपनाया गया है. 

नहीं करते केमिकल का उपयोग
सनत सिंह ने बताया कि सबसे पहले छत को वाटर प्रोटेक्ट (जल छत) बनाया गया. फिर पेड़ के टब रखने के लिए लोहे की स्टेप बनाईं गई. इसके लिए नीचे फर्श पर गैप (अंतर छोड़) रखा गया है ताकि पानी जम न जाए. बगीचे की विशेषता यह है कि बिना किसी व्यक्ति के सामने आए पेड़ की देखभाल के लिए आधुनिक तकनीक का उपयोग किया गया है. सनत बाबू ने कहा कि वह बगीचे के पेड़ों में किसी भी रासायनिक उर्वरक या दवाओं का उपयोग नहीं करते हैं. इसके लिए वो कृमि खाद (bharmi composed),अंडे का खोल, गोबर का इस्तेमाल करते हैं. वहीं नीम के तेल का इस्तेमाल कीटनाशकों के तौर पर किया जाता है. 

(देवघर से शैलेन्द्र मिश्रा की रिपोर्ट)

 

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