कहते हैं कि अगर मन में कुछ करने की इच्छा हो, तो कोई भी काम अंसभव नहीं होता. ऐसा ही काम उत्तराखंड के एक किसान केसर सिंह ने करके दिखाया है. उन्होंने अपने दृढ़ संकल्प से ऐसा काम किया है जिससे लोग उन्हें वर्षों तक याद रखेंगे. करीब 12 सालो की मेहनत से केसर सिंह ने एक नदीं का रुख बदल दिया. केसर सिंह अकेले ही इतने सालों से छोटे-बड़े पत्थरों को इकट्ठा नदीं का रास्ता बदलने का काम कर रहे थे. इस काम में वह अपने पैर की अंगुली भी तुड़वा चुके हैं.
उत्तराखंड के विधानसभा क्षेत्र चंपावत के बनबसा के निवासी केसर सिंह ने 12 सालों की मेहनत के बाद नदी का रुख मोड दिया. अपनी मेहनत से केसर सिंह ने नदी को रुख मोडकर कई गांवों को बाढ़ के खतरे से बचाया है. उन्होंने जगबुडा नदी पर पत्थरों को इकट्ठा करके ऐसा काम किया है. बता दें कि हर साल बाढ़ के आने से कई गांव बाढ़ से तबाह हो जाते थे.
अकेले ही केसर सिंह ने बदल दिया नदी का रास्ता
पहाड़ में एक ऐसी रीत है कि हर घर से एक छोटा सा पत्थर उठा कर मंदिर में चढ़ाया जाता है. बकोल केसर बचपन में पहाड़ के मंदिर में इन पत्थरों को देखकर उसे जवानी में याद आया, कि अगर छोटे छोटे पत्थरों का इकट्ठा किया जाए, तो मैं नदी का रुख भी तो मोड़ सकता हूँ. बस क्या था उन्होंने इस काम को करना शुरू किया. केसर सिंह ने लोगों का साथ भी मांगा, लेकिन जब कोई राजी नहीं हुआ तो उन्होंने अकेले ही इस मुश्किल राह पर निकलने का फैसला किया. केसर सिंह बताते हैं कि 1857 की क्रांति में अंग्रेजों ने उनके परदादा बिशन सिंह को फांसी पर चढ़ाया था. उनका मानता है कि कही ना कही वो खून ही क्रांति के लिए उकसाता ही होगी, जो इसलिए यह जुनून उनपर भारी हो गया.
केसर सिंह को आदर्श मानते है लोग
गाव का प्रधान हो या कोई शिक्षक या कोई भी बुजुर्ग हर कोई केसर का दीवाना है. बनबसा के चंदनी नाम के गाव या उसके आस पास आप किसी भी बड़े या बुजुर्ग से इस किसान केसर सिंह का पता तो पूछ कर देखो तो वो केसर सिंह का पता तो बाद में बताता है बल्कि केसर सिंह की तारीफ के पुल पहले बांधता है. चंदनी में शिशु मंदिर स्कूल के शिक्षक भुवन जोशी तो केसर सिंह को अगली पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत ओर वरदान मानते है. सेना से सेवानिवृत्त नायक नब्बे साल के श्याम सिंह कहते हुए नही थकते है कि केसर सिंह नहीं होते, तो कई गाव अब तक बह जाते.
( राजेश छाबड़ा की रिपोर्ट )