दुर्घटना में हाथ की 5 हड्डियां टूटी लेकिन हौसला नहीं! एक हाथ से टाइपिंग कर कुमाऊंनी भाषा में लिख दिया वेद पुराण

मोहन जोशी अब तक 20 से भी ज्यादा धार्मिक ग्रंथों और पुराणों का कुमाऊंनी भाषा में भावार्थ लिख चुके हैं. इसमें रामायण, रामचरितमानस, ऋग्वेद भाग १, ऋग्वेद भाग २ और अन्य रचनाओं का कुमाऊंनी में भावार्थ के साथ संस्करण निकाल चुके हैं.

मोहन चंद्र जोशी
तेजश्री पुरंदरे
  • बागेश्वर,
  • 22 अगस्त 2022,
  • अपडेटेड 4:33 PM IST
  • कुमाऊंनी भाषा पढ़ाने पर दिया जोर
  • खोल चुके हैं 8 स्कूल

अनुमान के मुताबिक दुनिया में हर साढ़े तीन महीने में किसी न किसी भाषा की गुमनाम मृत्यु हो रही है. भाषा के साथ-साथ उससे जुड़ी संस्कृति और संस्कार भी धुंधले पड़ रहे हैं लेकिन उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के गरुड़ क्षेत्र में मोहन चंद्र जोशी पिछले 30 से भी ज़्यादा वर्षों से कुमाऊनी भाषा को पुनर्जीवित करने का कार्य कर रहे हैं. खास बात यह है कि वे पौराणिक धर्म ग्रंथों को कुमाऊंनी भाषा में भावार्थ के साथ लिख रहे हैं.

खोल चुके हैं 8 स्कूल
इसके साथ ही वे आदर्श ज्ञानार्जन विद्यालय के संस्थापक और प्रधानाचार्य हैं. शुरुआत एक ही विद्यालय के साथ हुई लेकिन आज बागेश्वर जिले के अलग अलग हिस्सो में 8 विद्यालय खोल चुके हैं. इस विद्यालय में वे बच्चों को कुमाऊंनी भाषा भी पढ़ाते हैं. उनका मानना है कि व्यक्ति की पहचान उसके पहनावे से नहीं बल्कि उसके भाषा और संस्कृति से होती है. इसलिए वे चाहते हैं कि उनके विद्यायल के बच्चे अपनी भू भाषा अर्थात मातृ भाषा को सीखें और उसका सम्मान भी करें. यहां पर वो उन बच्चों को पढ़ाते हैं जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं और दिव्यांग हैं.

कई ग्रंथों का किया भावार्थ
मोहन जोशी ने इस कार्य की शुरुआत सन 1989 से की थी. तब से लेकर अब तक वे 20 से भी ज्यादा धार्मिक ग्रंथों और पुराणों का कुमाऊंनी भाषा में भावार्थ लिख चुके हैं. इसमें रामायण, रामचरितमानस, ऋग्वेद भाग १, ऋग्वेद भाग २ और अन्य रचनाओं का कुमाऊंनी में भावार्थ के साथ संस्करण निकाल चुके हैं. लेकिन मोहन चंद्रा का यह सफर काफी संघर्ष भरा रहा. मोहन बताते हैं कि शुरुआती दौर में उन्होंने अपने बड़े भाई के साथ मिलकर पोलट्री फार्मिंग का व्यवसाय शुरू किया था. शुरुआत बहुत छोटे स्तर पर की लेकिन अनुभव के साथ साथ व्यवसाय भी विस्तृत होता गया. लेकिन एक दिन अचानक उन्हें लंग्स से जुड़ी गंभीर बीमारी हो गई. फिर धीरे धीरे व्यवसाय में भी नुकसान होता चला गया.

एक हाथ से की टाइपिंग
लेकिन उनके संघर्ष की कहानी यहीं नहीं रुकी. साल 2003 उनके लिए बहुत चुनौतीपूर्ण था. वो जब अपने घर की ओर लौट रहे थे उसी दौरान उनका एक्सिडेंट हो गया. इस एक्सिडेंट में वे 42 % विकलांग हो चुके थे. बाएं हाथ की पांच हड्डियां टूट चुकी थी. जगह-जगह फ्रैक्चर्स थे. वे अंदर से भी पूर्ण रूप से टूट चुके थे. करीब एक साल तक वे अस्पताल में रहे. अस्पताल में ही टाइपिंग का काम किया. दोनों हाथ से काम नहीं हो पाता तो सिर्फ एक ही ही हाथ का इस्तेमाल किया.

कुमाऊंनी भाषा पढ़ाने पर दिया जोर
घर की आर्थिक परिस्थिति भी ठीक नहीं थी. इस दौरान उन्होंने हर वो काम किया जिससे उनके घर का गुज़ारा हो सके. मोहन बताते हैं कि उन्होंने उस दौर में उन्होंने बेकरी खोली. वो भी नहीं चल पाई. उसके बाद उन्होंने चक्की चलाई, नमकीन बेची यानी हर हो काम किया जिससे कमाई हो सके. फिर उसके बाद उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र ने कुछ करने की ठानी और विद्यालय की नींव रखी. विद्यालय में उन्होंने बच्चों को कुमाऊंनी भाषा पढ़ाने पर ज़ोर दिया. आज उनके यहां बच्चे रामचरित मानस और रामायण भी अपने पाठ्यक्रम के साथ पढ़ रहे हैं. उनका सपना है कि वे ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को अपने इस भाषा के कार्य से जोड़ें और लोगों को जागरूक करें.

 

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