पिछले कुछ समय में फ्लाइट में महिलाओं के साथ हुए सेक्शुअल हैरेसमेंट की खबरें सामने आई हैं. इसी को देखते हुए भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन, इंडिगो ने महिलाओं की सुरक्षा को लेकर एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया है. प्रोजेक्ट में वीमेन फ्रेंडली सीट्स लॉन्च की गई हैं.
इंडिगो की नई पहल में महिला यात्री वेब चेक-इन के दौरान दूसरी महिलाओं के बगल वाली सीट चुन सकती हैं. गुलाबी रंग की इन सीट्स में महिला यात्री पुरुष यात्रियों के बगल में बैठने से बचने का विकल्प चुन सकती हैं.
कैसे मिलती हैं ये सीट्स?
महिला यात्री कंप्यूटर या स्मार्टफोन से चेक-इन प्रोसेस पूरा कर सकती हैं. डिपार्चर से 48 घंटे पहले ऑनलाइन चेक-इन किया जा सकता है. टेकऑफ से 2 घंटे पहले ये सीट्स बंद हो जाती हैं.
इसके लिए सबसे पहले आपको एयरलाइन की आधिकारिक वेबसाइट पर जाना होगा. इसके बाद आपको पीएनआर या बुकिंग रेफरेंस नंबर और यात्री का लास्ट नेम और ई-मेल दर्ज करना होगा. आपको फिर उन यात्रियों को सिलेक्ट करना होगा जिनका आप वेब चेक-इन करना चाहते हैं. आपके सामने पूरा सेट चार्ट खुल जाएगा. इसमें आप सीट चुनकर प्रोसीड पर क्लिक कर सकते हैं.
हालांकि, इस पॉलिसी का रिस्पांस काफी पॉजिटिव आया है. लेकिन कहीं न कहीं इसने एक बहस भी छेड़ दी है कि क्या पिंक सीट्स से महिलाओं को सच में सुरक्षा दी जा रही है? या ये केवल महिलाओं को पुरुषों से अलग करती है?
महिलाओं के लिए पिंक सीट्स
इंडिगो हर महीने 49,000 से ज्यादा फ्लाइट ऑपरेट करती है. ऐसे में महिलाओं को सुरक्षित महसूस हो इसके लिए ये पिंक सीट्स पहल शुरू की गई है.
वेब चेक-इन प्रक्रिया के दौरान पिंक सीटें दिखाई देती हैं, जिससे महिलाएं अपने बगल वाली सीटों पर महिला ही बैठें, वाला ऑप्शन चुन सकती हैं. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, एयरलाइन में जुलाई और अगस्त 2024 के बीच इन सीटों को चुनने वाली महिलाओं में 60-70% की वृद्धि हुई है. इस पहल को शुरू किए हुए 4 महीने हो गए हैं.
इंडिगो के एक स्पोक्सपर्सन ने कहा, “यह हमारी महिला यात्रियों के लिए ट्रेवल एक्सपीरियंस को बेहतर बनाने के लिए डिजाइन किया गया है. ये पहल अभी पायलट फेज में है.
पब्लिक स्पेस में महिलाएं करती हैं हैरेसमेंट का सामना
दरअसल, ये कोई छिपी हुई बात नहीं है कि दुनिया भर में महिलाओं को यात्रा करते समय किसी न किसी तरह के हैरेसमेंट का सामना करना पड़ता है. ये पब्लिक स्पेस में और भी ज्यादा बढ़ जाता है. वर्ल्ड बैंक और वर्ल्ड रिसोर्स के 2018 समिट में इस पर बात भी हुई थी. इसमें कहा गया था कि लगभग 80% महिलाएं ऐसी हैं जो सेक्शुअल हैरेसमेंट की वजह से पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करने से डरती हैं. यह समस्या विशेष रूप से भारत जैसे विकासशील देशों में ज्यादा गंभीर है. यहां 94% महिलाएं ऐसी हैं जो अपनी यात्रा के दौरान किसी न किसी प्रकार के हैरेसमेंट का सामना करती हैं. इंडिगो की ये पिंक सीट्स वाली पहल रेलवे और मेट्रो सिस्टम के वीमेन कोच से प्रेरित हैं.
बैंड-एड की तरह है ये
जहां कई महिलाओं ने इंडिगो की नई पहल का स्वागत किया है, वहीं कुछ ऐसी भी हैं जिन्होंने इसपर सवाल उठाए हैं. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, इन महिलाओं का तर्क है कि पिंक-सीट पहल हैरेसमेंट के मूल कारणों को संबोधित नहीं करती है. ये एक तरह से टेम्पररी बैंड-एड के रूप में काम कर सकती है.
पत्रकार और जेंडर पर लिखने वाली नमिता भंडारे ने इस कदम पर संदेह जताया है. उन्होंने इंडिया टुडे डिजिटल को बताया, ''मैं इस तरह के कदम के पीछे की चिंताओं को समझती हूं, लेकिन हमें महिलाओं को मिलाना है, अलग नहीं करना है. इस तरह की पहल भविष्य में मदद नहीं करेंगी. इससे महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं होती हैं.
नमिता ने एक सवाल भी उठाया है, “उन महिलाओं का क्या जो ये सीटें बुक नहीं करतीं? क्या वे किसी तरह के हैरेसमेंट को इनविटेशन दे रही हैं? यह चिंता पिंक-सीट पॉलिसी से जुड़े कई मुद्दों को उठाती है.”
(इनपुट: प्रियांजलि नारायण)