Exclusive: हीरोज जिन्होंने बदल दीं कई जिंदगियां, खोला Acid Attack सर्वाइवर्स के लिए शीरोज हैंगऑउट कैफे, पढ़ें हौसलों की कहानी

Sheroes Hangout Cafe: हर साल देशभर में एसिड अटैक के कई मामले दर्ज किए जाते हैं. इन्हीं एसिड अटैक सर्वाइवर्स को नई जिंदगी देने के लिए आलोक दीक्षित (Alok Dixit) और आशीष शुक्ला (Ashish Shukla) ने शीरोज हैंगऑउट कैफे की नींव रखी. आज देश के तीन शहरों में शीरोज हैंगऑउट कैफे खोला जा चुका है. इन कैफे में एसिड अटैक सर्वाइवर्स काम करती हैं. अभी तक ये कैफे कई महिलाओं को नई जिंदगी दे चुका है.

एक कैफे जिसने बदल दी एसिड अटैक सर्वाइवर्स जिंदगियां
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 19 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 10:46 AM IST
  • 2013 में चलाया था स्टॉप एसिड अटैक अभियान
  • अभी तक तीन शहरों में खोला जा चुका है शीरोज हैंगऑउट कैफे

छिंदवाड़ा में युवती पर एसिड अटैक, लव अफेयर से जुड़ा था मामला… जयपुर में दो छात्राओं पर फेंका तेजाब, पड़ोस में रहता था लड़का… जबलपुर में मां-बेटी पर एसिड अटैक, दुर्गा पूजा की दौरान हुई वारदात… परिचित युवक ने दी युवती पर एसिड अटैक की धमकी… ऐसी दर्जनों खबरें हम रोज पढ़ते हैं. उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर की रहने वाली रूपा भी इन्हीं में एक हैं. 2008 में उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई जब उनकी सौतेली मां ने सोते समय उनके चेहरे पर तेजाब डाल दिया था. हालांकि, छांव फाउंडेशन (Chhanv Foundation) ने रूपा को रोजगार समेत चिकित्सा और कानूनी सहायता प्रदान की. छांव फाउंडेशन रूपा जैसी कई एसिड अटैक सर्वाइवर्स (Acid Attack Survivors) को एक नई पहचान और जिंदगी दे चुका है. छांव फाउंडेशन को शुरू करने वाले आलोक दीक्षित (Alok Dixit) और आशीष शुक्ला (Ashish Shukla) ने शीरोज हैंगऑउट कैफे (Sheroes Hangout Cafe) की नींव 2014 में रखी थी. ये एक जैसा कैफे है जिसे एसिड अटैक सर्वाइवर्स चलाती हैं. बता दें, तब से लेकर 2022 तक आलोक और आशीष ये स्टॉप एसिड अटैक को लेकर कई अभियान चलाने और जागरूकता फैलाने का काम कर रहे हैं. 2014 में सबसे पहले शीरोज कैफे आगरा और लखनऊ में और फिर इसी साल 2022 में नोएडा में इसकी शुरुआत हुई. 

शीरोज हैंगऑउट कैफे को लेकर GNT डिजिटल ने इसके को-फाउंडर आशीष शुक्ला से बात की. वे बताते हैं कि 2014 में 10 दिसंबर को लखनऊ में शीरोज हैंगआउट कैफे की शुरुआत की गई थी. ये शुरुआत 5 लड़कियों के साथ की गई थी. शुरुआत में ये एक तरह का प्रयोग था. जिससे लड़कियां सशक्त हो सकें. 

कैसे हुई कैफे की शुरुआत?

शीरोज हैंगऑउट कैफे की शुरुआत कैसे हुई इसे लेकर आशीष शुक्ला कहते हैं, “पहले हमारा विचार था कि हम एसिड अटैक सर्वाइवर (Acid Attack Survivor) के लिए घर के आसपास लखनऊ में दुकान खोल देते हैं. मगर फिर जब टीम में बातचीत हुई तो हमने सोचा कि क्यों ना हम एक ऐसी जगह बनाएं जहां पर हम संवाद को भी आगे बढ़ाया जा सके, हम उन्हें कुछ सिखा सकें. तब हमने 2014 में 10 दिसंबर को लखनऊ में शीरोज हैंगआउट कैफे की शुरुआत की. ये शुरुआत हमने 5 लड़कियों के साथ की. ये तरह का प्रयोग था. हमें भी नहीं पता था कि ये कितना आगे जाएगा या लोग इसे कितना पसन्द करेंगे. हां, दिमाग में ये बात जरूर थी कि इन सबको अपने पैरों के बल खड़ा करना है. जिससे ये लोग अपनी जिंदगी जी सकें. हमें नहीं पता था कि ये कितना आगे जाएगा लेकिन इसने हमारे पूरे कैंपेन की दिशा ही बदल दी. आज हम आगरा, लखनऊ, नोएडा इन तीन जगहों पर कैफे शुरू कर चुके हैं. करीब 35-37 लोग इस प्रोजेक्ट का हिस्सा हैं. मुझे लगता है ये बदलाव शीरोज से ही सफल हो पाया है.”

एसिड अटैक सर्वाइवर्स

2013 में चलाया था स्टॉप एसिड अटैक अभियान  

शुरुआत में आशीष और आलोक ने कैफे शुरू करने का नहीं सोचा था. ये एक तरह का अभियान था ताकि लोगों के बीच एसिड अटैक को लेकर जागरूकता फैलाई जा सके. इसे लेकर आशीष बताते हैं, “ये हमने कभी नहीं सोचा कि हम एसिड अटैक सर्वाइवर्स के लिए कैफे शुरू करेंगे. हम लोगों ने 8 मार्च, 2013 को एक कैंपेन शुरू किया था. जिसका उद्देश्य देश में हो रहे एसिड अटैक के प्रति जागरूकता फैलाना था. उस वक्त इसके बारे में मीडिया में भी ज्यादा बातें नहीं होती थीं, ये एक तरह का कैटेगेराइज्ड क्राइम (Categorized Crime) नहीं था, न कोई योजना थी या न कोई भत्ते को लेकर नियम था. 8 मार्च को हमने 'स्टॉप एसिड अटैक' (Stop Acid Attack Campaign) नाम के अभियान की शुरुआत की. हम लोगों ने उस अभियान के माध्यम से देशभर में ये कैंपेन किया. इसमें हमने एसिड अटैक को बेचने (Acid Attack Sale) को लेकर बहुत बातचीत की थी. उसी दौरान 2013 में ही जुलाई में लक्ष्मी वर्सिज यूनियन इंडिया (Laxmi v. Union Of India And Others) का एक मामला था जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कंपनसेशन 3 लाख रुपये और रिटेल मार्किट में एसिड को रेगुलेट (Acid attack Regulation) करने का डायरेक्शन दिया. साथ ही मेडिकल ट्रीटमेंट फ्री करने के लिए कहा. ये बड़ी उपलब्धि थी उस वक्त कि एसिड अटैक सर्वाइवर्स को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के इस डायरेक्शन ने काफी राहत दी.” 

स्टॉप एसिड अटैक अभियान

आगे आशीष कहते हैं, “हालांकि, इसमें चैलेंज ये था को 2013 से पहले के जो एसिड अटैक सर्वाइवर थे उन्हें कैसे न्याय दिलाया जाए? ये एक तरह की अपनी लड़ाई है. ये देखते हुए हम लोगों ने इसपर बातचीत की. जब भी ऐसा केस आता था हम उसपर काम करते थे. हमने एसिड अटैक सरवाइवर को लेकर कई अभियान चलाए. इस पूरे समय में हम जिन भी एसिड अटैक सरवाइवर से मिलते थे उनके परिवार वाले मना करने लगे थे. उनका सवाल होता था कि जागरूकता एक जगह है लेकिन इस अभियान से उन एसिड अटैक सर्वाइवर्स की जिंदगी कैसे बदलेगी. 2014 में हमारी मुलाकात एक एसिड अटैक सर्वाइवर गीता-नीतू, मां बेटी हैं, से हुई. उन्होंने तब हमसे कहा कि हमारे लिए कुछ कर दीजिए. तब हमारे मन में एसिड अटैक सर्वाइवर्स को उनके पैरों पर खड़ा करने का ख्याल आया. बस तभी से इस सफर की शुरुआत हो गई.”

क्या हैं एसिड अटैक के कारण?

एक अध्ययन से पता चला है कि एसिड अटैक के 78 फीसदी मामले शादी के प्रस्ताव को अस्वीकार करने या रोमांटिक रिश्ते में प्रवेश करने से इनकार करने के होते हैं. दहेज के भी कई मामले सामने आते हैं. इसके अलावा, द लॉजिकल इंडियन की रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 40% हमले असंबंधित लोगों द्वारा, व्यापार प्रतिद्वंद्विता, बिक्री विवाद, भूमि विवाद, या परिवारों के बीच प्रतिशोध के कारण होते हैं. वहीं एसिड हमलों में, 36% पीड़ित ऐसी होती हैं जिन्होंने किसी के शादी के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया हो. 

इसके पीछे के कारणों पर बात करते हुए आशीष कहते हैं, “ एसिड अटैक लड़की के चेहरे पर होता है. वो इसलिए किया जाता है ताकि वो कहीं किसी को चेहरा ना दिखा पाए. वो अपने चेहरे से ही डरने लगे या वो जब आईना देखे तो उसे वो घटना याद आए. तो हम चाहते तो अचार, पापड़ या ऐसा कुछ जो आर्थिक तौर पर मजबूती दे, शुरू कर सकते थे. मगर जो अटैकर था, जिस उद्देश्य से उसने लड़की पर एसिड से हमला किया वो उसमें सफल हो जाता. तो यहां पर लड़कियों को एक नई पहचान देने का काम शीरोज ने किया. और जो हमला करने वाले कि मंशा थी उसे हमने पूरा नहीं होने दिया. आज मुझे लगता है जो लड़कियां पहले अपना चेहरा ढककर चलती थी शीरोज आने से पहले आज वे सब चेहरा खोलकर चलती हैं. वे आज बड़ी सहजता से अपनी बात रखती हैं. आज यही लड़कियां जो पहले बोझ मानी जाती थीं आज ये सब अपने घरों में आर्थिक मदद कर रही हैं, फैसलों में अपना भी योगदान दे रही हैं. सबसे जरूरी है कि किसी महिला को मजबूत करना है तो उन्हें आर्थिक तौर पर सशक्त करना होगा.”

आलोक दीक्षित और आशीष शुक्ला

किसके ऊपर होते हैं ज्यादा एसिड अटैक? 

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 से 2021 के बीच में एसिड अटैक (Acid Attack In India) के 607 मामले दर्ज किए गए हैं. 2018 से 2020 में कुल 62 आरोपी ही दोषी पाए गए. रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 में 228, 2019 में 249, 2020 में 182 मामले, 2021 में 176 मामले दर्ज किए गए हैं. वहीं, दोषी ठहराने की बात करें तो 2018 में 28, 2019 में 16 और 2020 में कुल 18 व्यक्तियों को ही दोषी ठहराया गया. यानी कुल 386 मामलों में से केवल 62 लोग ही मुजरिम करार दिए गए.

एसिड अटैक किन पर ज्यादा होता है इसे लेकर शीरोज कैफे के को-फाउंडर आशीष कहते हैं, “आकड़ों की मानें तो जो लोग थोड़े निचले तबके के हैं, ज्यादातर एसिड अटैक के केस वहां पाए जाते हैं. हालांकि, ऐसा भी नहीं है कि जो लोग पढ़े लिखे हैं वहां ऐसे केस नहीं मिलते लेकिन वे लोग संपन्न होते हैं तो वे अपना इलाज का खर्चे से लेकर उनकी आर्थिक स्वतंत्रता उनकी मदद कर देती है. अगर आप राज्य के हिसाब से देखें तो यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा एसिड अटैक के मामले मिलते हैं. दिल्ली में भी इनकी संख्या कम नहीं है.”

आज खुलकर जी रही हैं ये अपनी जिंदगी

कहां काम करने की जरूरत है? 

एसिड अटैक में जिन एसिड का इस्तेमाल किया जाता है उनमें सामान्य प्रकार के एसिड में सल्फ्यूरिक, नाइट्रिक और हाइड्रोक्लोरिक एसिड शामिल होते हैं. हमले में, पीड़ित के चेहरे या शरीर पर तेजाब फेंका जाता है ताकि वह जल जाए या खराब हो जाए और ज्यादातर पीड़ित लड़कियां होती हैं, और कई लड़कियां इसमें 18 वर्ष से कम उम्र की होती हैं. जाहिर सी बात है कि इस अटैक को करने वाले आसपास के लोग ही होते हैं.

इस बारे में आशीष कहते हैं, “मुझे लगता है कि परवरिश पर बहुत ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है. क्योंकि जो अटैक करने वाले लोग हैं वो कोई अपराधी प्रवृति के लोग नहीं हैं, वे या तो आपके पड़ोसी हैं या साथ वाले हैं या स्कूल-कॉलेज के हैं आदि. ये आपके जानने वाले आसपास के लोग हैं. तो इसलिए घरों में बच्चों को जो परवरिश दी जाती है उसमें बहुत कुछ बदलाव करने की जरूरत है. कानून बनाना ही काफी नहीं है. प्रिवेंशन पर काम करने की जरूरत है. अगर इसपर काम नहीं किया गया तो ये लगातार होता रहेगा. इसलिए जरूरी है कि हम संवाद बनाएं."

एसिड अटैक को लेकर जागरूकता अभियान

बाजार में एसिड बेचने को लेकर आशीष कहते हैं, "इसके अलावा, मार्किट में जो एसिड बिक रहा है उसे बंद किया जाए. उसकी जगह अगर लगता है कि टॉयलेट क्लीनर के तौर पर इस्तेमाल हो रहा है तो सरकार को इसका कोई समाधान निकालना होगा. उसकी जगह कोई हार्पिक जैसा कुछ निकालना चाहिए जो सस्ते में मार्किट में उपलब्ध करवाया जाए. इसको लेकर स्कूल कॉलेज में वर्कशॉप होनी चाहिए ताकि सभी के दिमाग में ये बात बैठ जाए कि किसी भी प्रकार का महिलाओं के प्रति दुर्व्यवहार अच्छा नहीं है. 10-20 रुपए की एसिड की बोतल किसी की जिंदगी तबाह कर सकती है.”

यहां देखें को-फाउंडर आशीष शुक्ला के साथ पूरा इंटरव्यू-

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