Vegetarian मीट के बारे में अभी तक नहीं जानते हैं तो आज जान लीजिए, टेस्ट में भी होगा असली जैसा और पर्यावरण को भी नहीं पहुंचाएगा नुकसान

Vegetarian मीट के बारे में शायद आप अभी तक नहीं जानते होंगे. जी हां, बाजार में ये आ चुका है. सबसे बड़ी बात है कि ये टेस्ट में भी असली जैसा होगा और पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचाएगा.

Meatless Meat
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 09 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 9:12 PM IST
  • अगले कुछ साल में बढ़ सकता है इसका बाजार
  • पर्यावरण के लिए भी है बेहतर 

दुनिया भर में  नॉन-वेजिटेरियन फूड पसंद करने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. अब इसी को देखते वैज्ञानिकों ने वेजिटेबल-बेस्ड मीट बनाया है. सबसे अच्छी बात है कि इसका टेस्ट एकदम मीट जैसा होगा. लोगों की बढ़ती मांग को देखते हुए मीटलेस मीट को बाजार में लाया जा रहा है. 2021 प्यू रिसर्च सेंटर के सर्वे के अनुसार, 61 प्रतिशत भारतीय मांसाहारी हैं. लेकिन लगभग 41 प्रतिशत भारतीय अपने मांस की खपत को किसी तरह से कम कर रहे हैं. इसका मतलब है कि ये लोग आसानी से प्लांट-बेस्ड मीट की तरफ मुड़ सकते हैं. 

अगले कुछ साल में बढ़ सकता है इसका बाजार

रिटेल ब्रोकिंग कंपनी निर्मल बंग द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार, भारतीय बाजार में ये प्लांट बेस्ड मीट के 2021 में $30–$40 मिलियन से अगले तीन वर्षों में $500 मिलियन तक बढ़ने की भविष्यवाणी की गई है. हालांकि, ये प्लांट-बेस्ड मीट केवल शाकाहारियों के लिए नहीं हैं. इंडस्ट्री के दो बड़े नाम इम्पॉसिबल फूड्स और बियॉन्ड मीट- के 10 में से नौ से अधिक उपभोक्ता भी मांस खाते हैं.

लेकिन इस मीट को खरीदने से पहले लोग ध्यान रखें कि इसमें बड़ी मात्रा में सोडियम होता है, साथ ही इसमें उतना ही फैट और कैलोरी होती है जितनी असली मीट में. 

पर्यावरण के लिए भी है बेहतर 

कई रिसर्च के मुताबिक, मीटलेस मीट पर्यावरण के लिहाज से भी मीट से बेहतर है. कई मीटलेस मैन्युफैक्चरर  इस बात का खुलासा नहीं करते हैं लेकिन शोध से पता चलता है कि मीट की तुलना में ये मीटलेस मीट कम ग्रीनहाउस गैस उत्पन्न करते हैं. एक अध्ययन में पाया गया है कि बियॉन्ड बर्गर बनाने में 99 प्रतिशत कम पानी, 93 प्रतिशत कम लैंड और लगभग 50 प्रतिशत कम ऊर्जा का उपयोग होता है, जो कि एक चौथाई पाउंड बीफ बर्गर करता है.

फिर इसे मीट क्यों नहीं कहा जाता है? 

अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर इसे मीट का नाम क्यों नहीं दिया गया? दरअसल, इसे ‘मीट’ कहा जा सकता है या नहीं यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे कहां बेचे जा रहे हैं. अमेरिकी ने प्लांट-आधारित कंपनियों को अपने प्रोडक्ट लेबल पर ‘मीट’ शब्द का उपयोग करने से प्रतिबंधित कर दिया है. उनका कहना है कि वे नहीं चाहते कि गलती से भी उपभोक्ताओं को नकली मांस खरीदने के लिए बरगलाया जाए.

भारत में बेचा जा रहा है

बता दें, भारत में सबसे बड़े एफएमसीजी ब्रांड जैसे कि आईटीसी और टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट अब पूरी तरह से प्लांट-बेस्ड मीट बेचते हैं. इतना ही नहीं बल्कि 2020 में इसकी बिक्री 7 बिलियन डॉलर तक बढ़ गई, और ब्लूमबर्ग की भविष्यवाणी के मुताबिक 2030 तक बाजार 74 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा. यानि इसमें  957 प्रतिशत की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है.

 

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