राजस्थान को अपनी शुष्क जलवायु और सीमित जल संसाधनों के लिए जाना जाता है जिस कारण यहां पर खेती करना बहुत आसान नहीं है. इन बाधाओं के बावजूद जयपुर में कालख गांव के रहने वाले गंगा राम सेपट जैसे प्रगतिशील किसान ने जैविक खेती को अपनाया है और अब हर साल 40 लाख रुपये की इनकम कर रहे हैं. सबसे दिलचस्प बात है कि गंगाराम पढ़े-लिखे हैं, उन्होंने मास्टर्स की हुई है और उन्होंने अपना प्राइवेट स्कूल भी चलाया है. लेकिन खेती के प्रति उनकी रुचि ने आज उन्हें इस मुकाम पर पहुंचा दिया.
जैविक खेती की ओर पहला कदम
साल 2012 में, गंगाराम ने जैविक खेती शुरू की. इस निर्णय ने उनके जीवन को बदल दिया. इससे पहले वह एक निजी स्कूल चला रहे थे और यहां पर अलग-अलग पत्रिकाओं और समाचार पत्रों के पढ़ते रहते थे. इस दौरान उन्हें कैंसर की बढ़ती घटनाओं की चिंताजनक रिपोर्टें मिलीं और इसका मूल कारण पारंपरिक फसलों में रसायनों का भारी उपयोग था. तब उन्होंने जैविक खेती की ओर रुख किया और एक मिसाल कायम करने की ठानी.
अपनायी अलग-अलग खेती की तकनीकें
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, गंगाराम के पास लगभग 4 हेक्टेयर जमीन है, जहां वह कम से कम रसायनों का उपयोग करके पॉलीहाउस के भीतर खीरे की खेती करते हैं. खीरे को बीमारी से बचाने के लिए वह स्यूडोमोनास और ट्राइकोडर्मा जैसे बायोरेशनल रसायनों और बायोकल्चर के साथ-साथ ब्यूवेरिया बेसियाना और मेटारिज़ियम एनिसोप्ली जैसे बायोएजेंट का इस्तेमाल करते हैं. इसके अतिरिक्त, वह ब्रोकोली, लेट्यूस, चाइना पत्तागोभी और लाल पत्तागोभी जैसी विदेशी सब्जियों की खेती करके अपनी फसलों में विविधता लाते हैं.
इसके अलावा, गंगाराम ने अपने गांव में जल संरक्षण के महत्व पर जोर देते हैं, जहां पानी की कमी है. इस चुनौती से निपटने के लिए, उन्होंने 1 करोड़ लीटर पानी रखने में सक्षम एक खेत तालाब का निर्माण किया. सिंचाई के लिए, उन्होंने स्प्रिंकलर सिस्टम का उपयोग कम रखते हुए, ड्रिप सिंचाई प्रणाली का विकल्प चुना है.
FPO में है भागीदारी
गंगाराम कलाखाग्रो नवफेड फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड नामक एफपीओ का एक सक्रिय सदस्य है, जिसमें लगभग 350 किसान शामिल हैं. साथ में, उन्होंने एफपीओ के माध्यम से फसल सुरक्षा समाधान और जैव-संस्कृति और बीज जैसे इनपुट उपलब्ध कराने वाली एक दुकान की स्थापना की है. गंगाराम का कहना है कि उन्होंने फार्म तालाब और पॉलीहाउस दोनों के लिए सरकारी सब्सिडी का लाभ उठाया है.
पारंपरिक कृषि पद्धतियों के अलावा, गंगाराम इंटीग्रेटेड फार्मिंग पर जोर दे रहे हैं. वह मछली पालन भी करते हैं. मछली से निकलने वाला अपशिष्ट प्राकृतिक उर्वरक के रूप में काम करता है, मिट्टी को समृद्ध करता है और फसल के उत्पादन को बढ़ाता है. इसके अलावा, मछली की उपस्थिति शैवाल या काई को कम करने और पानी को शुद्ध करने में मदद करती है. वह गाय, बकरी और अन्य पशुधन भी रखते हैं.
गांव को बनाया 'मिनी इजयारल'
कृषि जागरण के अनुसार, गंगाराम ने अपने साथी किसानों को अपने साथ जोड़कर सस्टेनेबल खेती को बढ़ावा दिया है. गांव में उन्होंने दूसरे किसानों के साथ मिलकर लगभग 1500 पॉली हाउस लगाए हुए हैं और इस कारण उनके गांव को "मिनी इज़राइल" के रूप में जाना जाने लगा है. इन इनोवेटिव सेटअप्स में न केवल पॉली हाउस हैं बल्कि इसमें सोलर प्लांट, ड्रिप सिंचाई प्रणाली और अन्य आधुनिक प्रौद्योगिकियां भी शामिल हैं. गंगाराम का कहना है कि फसलों में विविधता लाना महत्वपूर्ण है, क्योंकि मोनोक्रॉपिंग से आपको स्थिर इनकम नहीं मिल पाती है. इसके अतिरिक्त, वह मुनाफा बढ़ाने के लिए मुर्गीपालन, पशुधन और अन्य सहायक उद्यमों को शामिल करने का सुझाव देते हैं.