शादी से दो दिन पहले पिता की मौत, समाज ने थामा हाथ, मंदिर में पूरे रीति-रिवाज से की बेटी की शादी

करीना के हाथों में मेहंदी रचाई गई, पैरों को महावर से सजाया गया, और वर-कन्या ने अग्नि के सामने फेरे लिए. चूंकि पिता अब इस दुनिया में नहीं थे, ऐसे में एक अजनबी दंपति ने कन्यादान की रस्म अदा की. यह क्षण जितना भावुक था, उतना ही प्रेरणादायक भी. सैकड़ों लोग उपस्थित रहे, जिन्होंने वर-वधू को आशीर्वाद दिया और उन्हें भावभीनी विदाई दी.

Father died two days before marriage
gnttv.com
  • मुजफ्फरपुर,
  • 22 अप्रैल 2025,
  • अपडेटेड 3:58 PM IST
  • शादी से दो दिन पहले पिता की मौत
  • समाज बना सहारा

मुजफ्फरपुर के रामबाग से एक ऐसी घटना सामने आई है, जो न सिर्फ भावुक करती है बल्कि समाज में उम्मीद की किरण भी जगाती है. यहां एक बेटी की शादी से ठीक दो दिन पहले उसके पिता का निधन हो गया. जिस घर में शहनाई बजनी थी, वहां मातम छा गया. लेकिन इसी दुख की घड़ी में मोहल्लेवालों और समाज के लोगों ने ऐसा साथ निभाया कि बेटी का हाथ पीला करने की रस्म तय तारीख पर ही पूरी की गई  वो भी मंदिर में पूरे रीति-रिवाज के साथ.

जब मातम को समाज ने बदल दिया मंगल में
बेला धीरन पत्ती निवासी भिखारी शर्मा की बेटी करीना की शादी 20 अप्रैल को तय थी. लेकिन 19 अप्रैल को करीना के पिता का अचानक हार्ट अटैक से निधन हो गया. घर में जहां हल्दी और मेहंदी की खुशबू होनी थी, वहां सन्नाटा पसर गया. करीना की मां और परिवार टूट चुके थे. ऐसे में समाज के लोगों ने एकजुट होकर निर्णय लिया कि शादी की तारीख को बदले बिना, बेटी की शादी संपन्न करवाई जाएगी.

मंदिर बना मंडप, समाज बना सहारा
रामबाग चौड़ी मोहल्ले के महादेव मंदिर को विवाह स्थल बनाया गया. मंदिर समिति ने न केवल स्थान की अनुमति दी, बल्कि किसी भी तरह का शुल्क भी नहीं लिया. मंदिर को सजाया गया, वैवाहिक मंडप बनाया गया, और स्थानीय महिलाओं ने विवाह गीतों से माहौल को जीवंत किया.

सबसे खास बात यह रही कि वर पक्ष सर्वदीपुर, बोचहा निवासी कन्हाई कुमार ने भी इस पूरे निर्णय में न सिर्फ सहमति जताई, बल्कि पूरी तत्परता से विवाह में सहयोग किया. कोई तर्क-वितर्क नहीं, कोई शर्त नहीं  बस बेटी को सम्मान से विदा करने की भावना.

हर रस्म निभाई गई, हर आंख नम हुई
करीना के हाथों में मेहंदी रचाई गई, पैरों को महावर से सजाया गया, और वर-कन्या ने अग्नि के सामने फेरे लिए. चूंकि पिता अब इस दुनिया में नहीं थे, ऐसे में एक अजनबी दंपति ने कन्यादान की रस्म अदा की. यह क्षण जितना भावुक था, उतना ही प्रेरणादायक भी. सैकड़ों लोग उपस्थित रहे, जिन्होंने वर-वधू को आशीर्वाद दिया और उन्हें भावभीनी विदाई दी.

समाज ने निभाई ज़िम्मेदारी, दिया सशक्त संदेश
यह शादी सिर्फ एक वैवाहिक आयोजन नहीं थी, बल्कि सामाजिक समरसता और सहयोग की मिसाल थी. आज जब रिश्ते स्वार्थ में उलझ जाते हैं, तब एक मोहल्ला एक बेटी के लिए परिवार बनकर खड़ा हो गया. किसी ने भोजन की व्यवस्था की, किसी ने कपड़ों का इंतजाम किया, किसी ने सजावट में हाथ बंटाया और सबसे बड़ी बात, किसी ने भी इसे ‘दया’ या ‘कृपा’ नहीं समझा, बल्कि ‘जिम्मेदारी’ माना.

“बेटी बोझ नहीं है, समाज उसका भी सहारा है”
आज भी भारत के कई हिस्सों में बेटी को बोझ समझा जाता है, खासकर तब जब पिता नहीं रहे हों. लेकिन इस घटना ने एक नया दृष्टिकोण सामने रखा  कि जब परिवार टूट जाए, तब समाज परिवार बन सकता है. करीना की शादी ने यह भी साबित कर दिया कि बेटियों की खुशियों के लिए समाज का भी दायित्व है.

एक स्थानीय निवासी ने कहा, “आज का दिन हमारे मोहल्ले के लिए एक ऐतिहासिक दिन है. किसी का किसी से खून का रिश्ता नहीं था, लेकिन इंसानियत का रिश्ता ही काफी था. जो जैसे सक्षम था, उसने वैसे सहयोग किया  और हम सबने मिलकर एक बेटी को सम्मान से विदा किया.”

(मणिभूषण शर्मा की रिपोर्ट)

 

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