अवैध तरीके से हो रहे बालू खनन से हर साल पंजाब और देश को करोड़ों रुपए का चूना लगता है. अवैध बालू खनन को रोकने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार भरसक प्रयास करती रहती हैं लेकिन बालू माफिया को जब रोकने का प्रयास किया जाता है तो बड़े हादसे हो जाते हैं और अवैध रूप से बालू खनन का कारोबार जारी रहता है. लेकिन अब चंडीगढ़ स्थित पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज (PEC) ने GIS और रिमोट सेंसिंग के जरिए दफ्तर में बैठकर आसानी से किसी भी जगह पर हो रही अवैध बालू खनन का पता लगाने की तकनीक खोज ली है.
अवैध तरीके से हो रहे बालू खनन का पता लगाने के लिए अब नई तकनीक और तरीके आ गए हैं जिससे आप एक्यूरेसी के साथ पता कर सकते है कि कहां पर कितनी अवैध बालू खनन हुआ है. PEC के सहायक प्रोफेसर हरअमृत सिंह संधू ने गुड न्यूज़ टुडे को बताया कि हमने लेटेस्ट टेक्नोलॉजी में जीआईएस यानी कि ज्योग्राफिकल इनफॉरशन सिस्टम और रिमोट सेंसिंग का प्रयोग किया है.
कैसे पता चलता है कि यहां पर अवैध तरीके से सैंड माइनिंग हो रही है...इस सवाल पर अमृत सिंह संधू ने बताया कि उसके 3 तरीके हैं सबसे पहले सरकार द्वारा जो चिन्हित जगह है क्या वहीं पर माइनिंग की जा रही है...? दूसरा क्या जो समय दिया गया है उसी तय समय में माइनिंग की गई है या उसके बाद भी या उससे पहले भी वहां पर माइनिंग हुई है और तीसरा कितनी गहराई तक वह माइनिंग की गई है. इन तीनों चीजों को ढूंढने के लिए ही जीआईएस यानी कि ज्योग्राफिकल इन्फॉर्मेशन सिस्टम और रिमोट सेंसिंग का प्रयोग किया जाता है.
साधारण भाषा में बात की जाए तो एक तरह के डिजिटल मैप्स इस तकनीक के जरिए तैयार किए जाते हैं और गूगल मैप्स के जरिए कुछ इमेजेस यानी की तस्वीरें हैं वहां की आसानी से ली जा सकती हैं. आज से 10 साल पहले वहां पर क्या स्थिति थी आज क्या स्थिति है और आज से 10 साल बाद क्या स्थिति है उन तमाम चीजों को आसानी से स्टडी और एनालाइज किया जा सकता है...
हरअमृत सिंह संधू ने बताया कि जैसे कि आज नई तकनीक ड्रोन के जरिए आप तस्वीरें ले सकते हैं लेकिन उसमें सिर्फ आपके पास आज की तस्वीर है और आप सिर्फ आज पता लगा सकते हैं कि वहां पर माइनिंग हो रही है या नहीं लेकिन जीआईएस के जरिए आप आज से 20 साल 25 साल पहले हो रही माइनिंग का भी पता लगा सकते हैं...
अवैध बालू खनन जब भी होता है और उसे बंद करने के लिए अधिकारी वहां पर पहुंचते हैं, तो वहाँ अमूमन बड़े हादसे हो जाते हैं. इन हादसों को रोकने में रिमोट सेंसिंग और जीआईएस अपने आप में बहुत कारगर साबित हो जाएगी क्योंकि कई किलोमीटर दूर आराम से दफ्तर में बैठकर पता लगा सकते हैं कि किस जगह पर इलीगल सैंड माइनिंग की जा रही है. हर अमृत सिंह संधू ने बताया कि वेरिफिकेशन के लिए जरूर उस साइट पर विजिट करना पड़ता है, अन्यथा आप दफ्तर में बैठकर आराम से पता लगा सकते हैं कि कितनी अवैध तरीके से सैंड माइनिंग की गई है.
Research Scholar सोनल जुटला ने बताया कि सबसे पहले गूगल मैप्स के जरिए जहां पर इलीगल सैंड माइनिंग हो रही है उस एरिया को आईडेंटिफाई किया जाता है. उसके बाद GIS aur Remote Sensing के जरिए तस्वीरें और डिजिटल मैप्स तैयार किए जाते हैं और लोकेट किया जाता है कि किस जगह पर इलीगल सैंड माइनिंग की जा रही है.