किसी ने सच ही कहा है कौन कहता है कि आसमां में सुराग नहीं होते, यारों एक पत्थर तो तबीयत से उछालो! यह कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है संत कबीर नगर के एक कारोबारी श्री नारायण पर. यह मिट्टी को सोना बना कर बेचते हैं. यह कहानी नहीं हकीकत है आप खुद ही देख कर दंग रह जाएंगे. श्री नारायण की जो मिट्टी को भेजकर लाखों कमाते हैं और दर्जनों मजदूरों को अपने पास काम भी देते हैं.
शुरू किया जैविक खाद बनाने का काम
ख्वाहिशें कुछ इस कदर है कि हर व्यक्ति स्वावलंबी हो और उसके पास खुद का कारोबार हो. इसी सोच को लो लेकर आज वो उस बुलंदी पर है की 25000 रुपये से शुरू किया हुआ कारोबार करोड़ों की संपत्ति बन चुका है. जी हां, यूपी बिहार बंगाल और अन्य कई प्रांतों में उनकी बिक्री होती है. श्री नरायन एम एस सी कृषि पशुपालन एवम दुग्ध विज्ञान से पूर्ण करने के बाद एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी प्रारम्भ किया लेकिन मन मे कुछ बड़ा करने का संकल्प था. उसके बाद व्यापार शुरू किया. साल 2004 में प्राकृतिक बिना रसायन के खेतों के लिए उर्वरक बनाने का काम शुरू करने के लिए अपने एक मित्र से 25000 रुपये हजार उधार लिया और इस व्यापार में लगभग 6 लाख रुपया दो माह में कमाया.
आज दे रहे लाखों लोगों को नौकरी
इस व्यापार के कारण 2009 में उधोगपति कोटे से नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय में कार्य परिषद का सदस्य बने. श्री नरायण सबसे कम उम्र के व्यक्ति हैं जो 32 साल की आयु में इसके लिए नामित हुए. साल 2009 से 2012 तक कार्यपरिषद का सदस्य रहे और 2021 में संतकबीर नगर में युवा उधमी का सम्मान मिला. कोरोना काल में अपने मजदूरो को रोजगार देने के साथ-साथ कई घरों का चूल्हा भी जलवाने का कार्य किया. इस रोजगार के माध्यम से कई युवाओ को प्रशिक्षण दे कर स्वावलंबी बनाया और एक रोजगार सृजन से सैकड़ों परिवार का भरण पोषण हो रहा है.
इस फैक्ट्री का नाम उन्होंने अपने पिता के नाम पर गोपाल एग्रो इन्डस्ट्री रखा है. श्री नारायण एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने एग्रीकल्चर डिग्री हासिल करने के बाद एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी की लेकिन मन नहीं लगा और नौकरी छोड़ दी. साल 2004 से लोगों को नौकरी देने के लिए अपना खुद का देशी खाद का कारखाना तैयार कर दिया. आज इसी की बदौलत वो बड़े कारोबारियों में गिने जाते हैं.
नौकरी से इच्छा पूरी नहीं हो सकती
श्री नारायण सिंह कृषि में परास्नातक हैं. उनके घर में पांच भाई और तीन बहने हैं. पिता एक इंटर कॉलेज के अध्यापक थे. श्री नारायण अपने घर में भाइयों में सबसे छोटे हैं. मैं जो नौकरी कर रहा था मुझे नहीं लगा था कि मैं नौकरी से अपनी इच्छा की पूर्ति कर सकता हूं क्योंकि नौकरी एक ऐसा माध्यम था कि जिससे अपना जीवन चल सकता था लेकिन परिवार में अन्य लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं की जा सकती थी.
(संत कबीर नगर से आलमगीर की रिपोर्ट)