ऑफिस में अक्सर लोगों को बोरियत महसूस होती है. आपके साथ-साथ हो सकता है आपके सहकर्मी और बॉस भी बोर हो रहे हों. अगली बार जब आप बोर हों तो एक नजर अपने साथ काम कर रहें कुलीग पर डालें. हो सकता है उनकी निगाहें कहीं किसी दरवाजे पर टिकी होगी या फोन में कुछ स्क्रॉल कर रहे होंगे.
गैलप ने 19,800 से अधिक युवाओं पर किए सर्वे में पाया कि 2015 के बाद से 51% कर्मचारी ऐसे हैं जो नई नौकरी की तलाश में ही रहते हैं. कइयों को तो लगता है उनके सपनों को पूरा करने में सबसे बड़ी बाधा मार्केट में होने वाले बेवजह के कंपटीशन और किसी नए जॉब के लिए अप्लाई करने का लंबा चौड़ा प्रोसेस है.
आज के युवाओं को लगता है कि वे ऐसी नौकरी में लगे हैं. जिसमें वो अपना 100% नहीं दे पा रहे हैं. हालांकि कंपनी के मैनेजर को कंपनियों और एम्प्लॉई के बीच की कड़ी माना जाता है. लेकिन कंपनी के मैनेजर भी कहीं न कहीं इसी दलदल में फंसे हैं.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि एम्प्लॉई का अपने काम के प्रति कम होते लगाव और कंपनी से उनकी एक्सपेक्टेशन ने आज के दौर में एम्प्लॉई को फ्रस्टेटेड एम्प्लॉई बना दिया है. इसका मतलब यह हुआ कि जिन लोगों ने कुछ साल पहले ग्रेट-रिजाइनेशन के दौरान अपनी नौकरी से रिजाइन नहीं दिया था. वो अब अपनी नौकरी से बोर हो गए हैं. हालांकि अपने काम से थके-हारे एम्प्लॉई मार्केट की स्थिति को देखते हुए अपने जॉब में तो बने हुए हैं लेकिन खुद को कंपनी का हिस्सा नहीं मानते हैं. ये लोग "ग्रेट डिटैचमेंट" के दौर से गुजर रहे हैं. यानी कि इन्हें अब कंपनी पर पहले की तरह भरोसा नहीं रह गया है.
कोविड-19, के बाद AI की वजह से छंटनी, सैलरी में हाइक न मिलने के कारण अब एम्प्लॉई का कंपनी पर पहले की तरह भरोसा नहीं रह गया. अब उन्हें समझ आ गया है कि संकट के समय कंपनी कभी भी उन्हें बाहर का रास्ता दिखा सकती है.
पेंडेमिक के बाद बेहतर जॉब या अच्छे मौके की तलाश में लोगों ने नौकरियां छोड़ी हैं और जो नहीं छोड़ पाए वो किसी न किसी मजबूरी में काम कर रहे हैं. आज के दौर में चुपचाप नौकरी छोड़ने का वालों की संख्या बढ़ रही है. इसमें कहीं न कहीं कंपनी जिम्मेदार है. नौकरी छोड़ने और ऊब चुके एम्प्लॉई की यह भावना को टाली जा सकती है. पिछले साल नौकरी छोड़ने वालों में से 42% ने कहा कि उनके मैनेजर या कंपनी उन्हें नौकरी छोड़ने से रोकने के लिए कुछ कर सकती थी लेकिन नहीं किया.
रिपोर्ट में पाया गया कि मैनेजर और कंपनी के कर्मचारियों के बीच इसको लेकर कोई बात नहीं होती. सर्वे में ये भी पाया गया कि लगभग आधे (45%) लोगों ने नौकरी छोड़ने से तीन महीने पहले तक अपने बॉस के साथ अपनी संतुष्टि या नौकरी में भविष्य के बारे में कोई "रचनात्मक बातचीत" नहीं की थी.