गुजरात में दो आदिवासी युवकों ने एक ऐसी कलाई घड़ी बनाई है जो सामान्य घड़ी की विपरीत दिशा में चलती है. मंगलवार को कांग्रेस विधायक अनंत पटेल ने नवसारी स्थित सर्किट हाउस में इस घड़ी का शुभारंभ किया. यह घड़ी 13 से 15 जनवरी तक छोटा उदेपुर के कावंत में आयोजित होने वाले आदिवासियों के तीन दिवसीय कार्यक्रम आदिवासी एकता परिषद में बिक्री के लिए उपलब्ध होगी.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस "आदिवासी घड़ी" को सामाजिक कार्यकर्ता प्रदीप पटेल उर्फ पिंटू (32), तापी के डोलवन तालुका के निवासी और उसके दोस्त भरत पटेल (30) ने बनाया है.
पुरानी घड़ी से ली प्रेरणा
बताया जा रहा है कि दो साल पहले, पिंटू को अपने एक दोस्त के घर जाने के बाद एंटीक्लॉकवाइज चलने वाली घड़ी बनाने का विचार आया. पिंटू ने मीडिया को बताया कि उनके दोस्त विजयभाई चौधरी के घर पर, उन्होंने एक पुरानी घड़ी देखी, जो एंटीक्लॉकवाइज चलती है. जब उन्होंने इसके बारे में पूछा तो उनके दोस्त ने बताया कि प्रकृति का चक्र और इसकी गति दाएं से बाएं की ओर चलती है.
इससे प्रेरित होकर पिंटू ने भरत पटेल के साथ काम करना शुरू किया, जो एक कलाई घड़ी की दुकान में काम करते हैं. महीनों के शोध और कड़ी मेहनत के बाद, उन्होंने दिसंबर में कलाई घड़ी का निर्माण किया, जिसमें घंटे, मिनट और सेकंड की सुइयां एंटीक्लॉकवाइज़ दिशा में चलती हैं. तब से, पिंटू और भारत ने लगभग 1,000 कलाई घड़ियों का निर्माण किया है.
उन्होंने नए मॉडल्स में एक आदिवासी आदमी की तस्वीर बनाई है और कैप्शन रखा है 'जय आदिवासी.' इस घड़ी का नाम 'आदिवासी घड़ी' रखा गया है. यह प्रकृति के साथ तालमेल से चलती है. सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर दाएं से बाएं दिशा (एंटीक्लॉकवाइज) में घूमते हैं. यहां तक कि आदिवासियों के ग्रुप डांस में भी मुवमेंट दाएं से बाएं होते हैं.
गुजरात में उल्टी घड़ी की परंपरा
गुजरात में रिवर्स घड़ियों का चलन नया नहीं है, क्योंकि यह आदिवासी संस्कृतियों में विभिन्न मान्यताओं पर आधारित है. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मध्य और दक्षिण गुजरात में आदिवासी घर एंटीक्लॉकवाइज घड़ियों को अपना रहे हैं. एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, दाहोद, पंचमहल और तापी में कई आदिवासियों के पास घड़ियां हैं जहां सभी सुइयां उल्टी दिशा में चलती हैं.
इस अपरंपरागत घड़ी को लेकर अलग-अलग लोगों की अलग-अलग मान्यताएं हैं. जहां कुछ लोग कहते हैं कि यह घड़ी प्रकृति के नियम का प्रतीक है क्योंकि आदिवासी इसकी पूजा करते हैं. तो कुछ कहते हैं कि यह पृथ्वी के विनाश की गारंटी है और जैसे-जैसे घड़ी की ये सुइयां पीछे की ओर बढ़ती हैं तो इसका मतलब है कि वह क्षण भी निकट आ रहा है.