कई बार एक छोटी सी घटना भी हमारी जिंदगी पर बड़ी छाप छोड़ती है और हमारे जीवन की दिशा बदल जाती है. यूपी में हरदोई के विक्रम पांडे के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. सात साल पहले लखनऊ रेलवे स्टेशन के बाहर एक बूढ़ी भूखी महिला से मुलाकात ने उन्हें 'इंडियन रोटी बैंक' (आईआरबी) शुरू करने के लिए प्रेरित किया.
इंडियन रोटी बैंक अब 14 राज्यों में फैल गया है और यहां तक कि नेपाल और नाइजीरिया जैसे देशों में अंतरराष्ट्रीय सीमा पार कर गया है. इस पहल को शुरू करने वाले, हरदोई के विक्रम पांडे ने कहा कि उनका नारा स्पष्ट है- 'भूखा ना सोए कोई -रोटी बैंक हरदोई.' उन्होंने 5 फरवरी को ही आईआरबी का सातवां स्थापना दिवस मनाया है.
एक घटना ने बदली जिंदगी
पीटीआई से बातचीत में पांडेय ने याद करते हुए कहा, 'करीब सात साल पहले एक महिला लखनऊ रेलवे स्टेशन के बाहर भीख मांग रही थी. शुरुआत में मैंने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया, लेकिन वह यह कहकर रोने लगी कि उसे भूख लगी है. इसलिए मैं उसे खाने पर ले गया.'
ठेले पर उस महिला ने छह-सात पूरियां खाईं. उसे सचमुच बहुत भूख लगी थी. उस दिन पांडे दिल्ली जा रहे थे और रास्ते में वह उस औरत के बारे में सोचते रहे. दिल्ली से लौटने पर मैंने किसी की मदद से भूखों को खाना खिलाना शुरू किया. इसके बाद, अपने कुछ दोस्तों के साथ उन्होंने 6 फरवरी, 2016 को इंडियन रोटी बैंक की स्थापना की.
अभियान से जुड़ते रहे लोग
पांडे ने कहा कि शुरुआत में कुछ स्थानीय अधिकारियों ने उन्हें प्रोत्साहित किया और फिर अपने दोस्तों की मदद से भूखों को रोटियां बांटना शुरू किया. उन्होंने कहा कि लोग इस अभियान से जुड़ते रहे और कुछ समय बाद रोटी बैंक फर्रुखाबाद 'खाओ पियो, रहो आबाद-रोटी बैंक फर्रुखाबाद' के नारे के साथ शुरू हुआ. फिर यह अभियान और बढ़ने लगा.
पांडे ने कहा कि इस रोटी बैंक की अब 14 राज्यों के 100 से अधिक जिलों में शाखाएं हैं और लगभग 12 लाख लोगों को भोजन उपलब्ध कराने में सफल रही हैं. उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान, आईआरबी के स्वयंसेवकों ने लोगों को भोजन उपलब्ध कराने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दिखाई और इसकी बहुत सराहना की गई.
हर जिले में हो रोटी बैंक
पांडे ने कहा कि उनका सपना भारत के हर जिले में रोटी बैंक की एक यूनिट खोलने का है. देश में अभी उनकी 100 से ज्यादा यूनिट्स काम कर रही हैं. आईआरबी कैसे काम करता है, इस बारे में बात करते हुए, उन्होंने कहा कि स्वयंसेवक परिवारों से रोटियां इकट्ठा करते हैं और सब्जियां तैयार करते हैं, और सब्जियों, अचार और मिर्च के एक हिस्से के साथ चार रोटियां पैक करते हैं.
पांडे ने कहा कि इन पैकेटों को रेलवे स्टेशनों, बस स्टेशनों और सार्वजनिक स्थानों पर भिखारियों और भूखे और जरूरतमंदों को वितरित किया जाता है. स्वयंसेवक इन रोटी के पैकेट्स को साइकिल, मोटरसाइकिल और वाहनों पर बांटते हैं. जियामऊ निवासी व इंडियन रोटी बैंक लखनऊ के समन्वयक मोहित शर्मा ने पीटीआई-भाषा को बताया कि स्वयंसेवक यहां औसतन 50-60 परिवारों से 300 रोटियां एकत्र करके पैकेट बनाकर बांटते हैं. पांडे ने कहा कि देश भर में काम कर रही आईआरबी टीमों को हर हफ्ते औसतन 50,000 से अधिक रोटियां मिलती हैं.
शादी-ब्याह में बचा हुआ खाना नहीं होता बर्बाद
पांडे ने आगे कहा कि लोग चावल और अन्य खाद्य सामग्री भी देते हैं. लखनऊ में आईआरबी की महिला कार्यकर्ताओं का समन्वय करने वाली गरिमा रस्तोगी ने कहा कि स्वयंसेवक इस बात का भी ध्यान रखते हैं कि वे जो भोजन इकट्ठा करते हैं वह ताजा हो और खाने के लायक हो. वे समारोहों से बचा हुआ अतिरिक्त भोजन भी इकट्ठा करके जरूरतमंदों को बांटते हैं.
आपको बता दें कि विक्रम पांडे के पिता शैलेश पांडेय हरदोई में अधिवक्ता हैं और उनकी माता गृहणी हैं. उन्होंने कहा कि जन सहयोग से ही संस्था चलती है. इंडियन रोटी बैंक व्हाट्सएप के जरिए अपना नेटवर्क संचालित करता है और समूह ने नाइजीरिया और नेपाल में भी आंदोलन शुरू कर दिया है.