Heeng Cultivation: हिमाचल प्रदेश में 11 हजार फीट की ऊंचाई पर पहली बार हो रही हींग की खेती, किसानों की होगी लाखों में कमाई

आज भारत के व्यंजनों में हींग एक जरूरी मसाला है. हींग को अफगानिस्तान और इरान से आयात करना पड़ता है. ऐसे में पिछले कुछ सालों से कृषि वैज्ञानिक इसपर रिसर्च कर रहे थे, जिसमें हिमालय जैव प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर के वैज्ञानिकों ने अफगानिस्तान और इरान से हींग के बीजों को भारत लाया और करीब 3 सालों की मेहनत के बाद हींग के पौधे तैयार किए गए.

Heeng
gnttv.com
  • चंडीगढ़,
  • 04 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 12:22 PM IST

भारत के ज़्यादातर घरों की थाली में परोसे जाने वाले व्यंजनों में हींग एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है. तेज गंध और छोटे कंकड़ की तरह दिखने वाला हींग बहुत थोड़ी सी मात्रा में भी खाने का स्वाद बढ़ा देता है. आज भारत के व्यंजनों में हींग एक जरूरी मसाला है. हींग को अफगानिस्तान और इरान से आयात करना पड़ता है. ऐसे में पिछले कुछ सालों से कृषि वैज्ञानिक इसपर रिसर्च कर रहे थे, जिसमें हिमालय जैव प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर के वैज्ञानिकों ने अफगानिस्तान और इरान से हींग के बीजों को भारत लाया और करीब 3 सालों की मेहनत के बाद हींग के पौधे तैयार किए गए. देश में सबसे पहले हिमाचल प्रदेश के कुछ किसानों को ही हींग की खेती का प्रशिक्षण दिया गया है. 2020 में करीब 11 हजार फीट की ऊंचाई पर भारत में सबसे पहले हिंग की खेती की शुरुआत की गई. आज करीब 3 साल बीत जाने के बाद किसानों को इसमें सफलता मिली है. अब हींग के पौधे काफी बड़े हो चुके हैं और अगले 2 सालों में इन पौधों से हींग मिलने भी लगेगा.

हींग की खपत भारत में सबसे ज्यादा
भारत हींग का दुनिया में सबसे ज्यादा खपत करने वाला देश है. देश में सालाना हींग की खपत करीब 1500 टन है. जिसकी कीमत 940 करोड़ रूपए से ज्यादा है. भारत अफगानिस्तान से 90, उज्बेकिस्तान से 8 और ईरान से 2 फीसदी हींग का हर साल आयात करता है. 2 सालों की रिसर्च के बाद आईएचबीटी ने लाहौल घाटी को हींग उत्पादन के लिए अनुकूल पाया है. इसके अलावा उत्तराखंड के पहाड़ी इलाके, लद्दाख, हिमाचल का किन्नौर, मंडी जिले में जनझेली का पहाड़ी क्षेत्र भी हींग के लिए उपयुक्त माना गया है. लाहौल के बाद अब इन इलाकों में भी हींग के पौधे रोपे गए हैं. हींग की खेती के लिए 20 से 30 डिग्री तापमान होना जरूरी है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में हींग की कीमत 35 से 40  हजार रुपये प्रति किलो है. एक पौधे से करीब आधा किलो हींग निकलता है. इसमें चार से पांच साल का समय लगता है. हिमालय क्षेत्रों में हींग उत्पादन होने के बाद किसानों को इसकी अच्छी कीमत मिलेगी.

30 से 40 हजार रुपए प्रति किलो है हींग की कीमत
हिमालय जैव प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर के प्रधान वैज्ञानिक डॉ अशोक यादव  के अनुसार भारत हर साल 1500 टन हींग आयात करता है. करीब 2 सालों तक प्रयोगशाला में आयात किए बीज से हींग के पौधे तैयार किये गये थे. हींग के पौधों को कम नमी वाला और अत्याधिक ठंडा क्षेत्र चाहिए, इसलिए सबसे पहले इसकी खेती के लिए लाहौल स्पीती को चुना गया था. अब हिमाचल में किन्नौर ,मंदी ,कुल्लू ,चंबा ,पांगी  के उपरी इलाकों में हींग की खेती का परीक्षण किया जा रहा है. बीते सालों से अब तक कुल 7 हेक्टेयर जमीन पर 47 हजार हींग के पौधे रोपे गए हैं, जिनमें अधिकतर पौधे कामयाब हुए हैं. हींग के पौधे से 5 साल बाद बीज और हींग प्राप्त किया जा सकता है. हींग की कीमत बाजार में 30 से 40 हजार रुपए प्रति किलो होती है. अगर हींग की खेती में कामयाबी मिलती है तो प्रदेश के किसानों को इससे अच्छी आय होगी.

11 हजार फीट की ऊंचाई पर हो रही है हींग की खेती
लाहौल के क्वारिंग गांव में सबसे पहले हींग की खेती की शुरुआत करने वाले किसान रिन्हागजिंग हांयरप्पा ने बताया कि उन्होंने इरानी और अफगानी दोनों तरह की वैराइटी के पौधे लगाए हुए हैं, जोकि सफल हुए हैं. इस पौधे में हींग की खुशबू आनी शुरू हो गई है. 5वें साल में इससे हींग मिलना शुरू हो जाएगा. 2020 में उन्होंने इस पौधे को 12 हज़ार फीट की ऊंचाई पर रोपा था लेकिन उस समय पौधा वहां टिक नहीं पाया था. उसके बाद उन्होंने इस पौधे को 11 हज़ार फीट की ऊंचाई पर लगाया  और तब जाकक यह परीक्षण कामयाब हुआ. शुरूआती दौर में लाहौल के 7 किसानों को हींग की दोनों किस्मों के 100 पौधे दिए गए थे. उन्होंने बताया कि हींग की खेती के सफलता का अनुपात 30 से 40 फीसदी ही है. किसी समय में लाहौल उन्नत किसम के आलू की फसल के लिए जाना जाता था. अब  हम चाहते है कि लाहौल को हींग की खेती की उन्नत किस्म के लिए जाना जाए. लाहौल के हर किसान ने इस ओर कदम बढ़ाते हुए हींग की खेती करना शुरू का दिया है. लाहौल में हींग की खेती करने वाले एक अन्य किसान तेनजिन नोर्वु ने बताया कि 2020 में उन्हें भी हींग के करीब 100 पौधे दिए गए थे. शुरुआत में उन्होंने अक्तूबर के महीने में इन पौधों को समतल जगह पर लगाया था. समतल जगह पर पानी टिकने से कई पौधे सड़ गए. दूसरे साल उन्होंने नए पौधों को ढलान वाली जगह पर लगाया. अब जाकर इसमें कामयाबी मिली है.

अगर भविष्य में किसान व वैज्ञानिक इन क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में हींग की खेती करने में कामयाब होते हैं तो अन्य नकदी फसलों के मुकाबले हींग की खेती कहीं ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकती है.

(मनमिंदर अरोड़ा की रिपोर्ट)

 

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