Farmer Success Story: डॉक्टर पति को हुआ कैंसर तो पत्नी ने शुरू की जैविक खेती, शुद्ध खाने के साथ अब सालाना कमाई लाखों में

हिमाचल प्रदेश की रीवा सूद कृषि क्षेत्र मे नई पहचान बना रही हैं. 65 साल की उम्र पार कर चुकी रीवा को उनकी Intergrated Farming के लिए जाना जाता है.

Reeva Sood (Photo: Instagram/@soodreeva)
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 27 मई 2024,
  • अपडेटेड 6:37 PM IST

हिमाचल प्रदेश के ऊना की रीवा सूद अपने क्षेत्र की पहली महिला कृषि-उद्यमी हैं. उन्हें ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए स्टेट मिलेनियर हॉर्टिकल्चर फार्मर अवॉर्ड 2023 मिल चुका है. ड्रैगन फ्रूट के अलावा, रीवा कई औषधीय और सुगंधित फसलों जैसे मोरिंगा, वेटिवर, स्टीविया और हल्दी की खेती भी करती हैं. बंजर भूमि को एक जैविक फार्म में बदलने का उनका सफर आसान नहीं था लेकिन आज यह हर किसी के लिए प्रेरणा है. 

कैसे शुरू हुई जैविक खेती 
सोशियोलॉजी में पोस्ट-ग्रेजुएट रीवा ने अपने जीवन के 32 साल महिलाओं के अधिकारों की वकालत करने वाले NGOs के साथ काम करने में बिताए. लेकिन उनकी जिंदगी में अचानक से एक मोड़ आया जब उन्हें पता चला कि उनके पति डॉ. राजीव सूद को कैंसर है. इसके बाद उन्होंने अपने परिवार के साथ मिलकर जब चर्चा कि तो उन्हें समझ आया कि यह पारंपरिक फसलों में यूरिया और रसायनों के कारण है जो आज बहुत से लोग इस तरह की गंभीर बीमारियों का शिकार हो रहे हैं. तब उन्होंने कुछ बदलाव लाने का निर्णय लिया और जैविक खेती की तरफ अपना कदम बढ़ाया. 

रीवा ने एक बंजर जमीन से अपन यात्रा शुरू की. दरअसल, इस जमीन की मिट्टी सालों से कटाव के कारण खत्म हो गई थी. लेकिन उन्होंने जैविक खाद और नई तकनीकों का उपयोग करके इसे उपजाऊ बनाया. वह गाय के गोबर और मूत्र का उपयोग वर्मीकम्पोस्ट के लिए करती हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है.  इसके बाद, पॉली हाउस स्थापित करके, उन्होंने साल भर खेती को सक्षम बनाया. लेकिन फसलों का चयन स्थानीय जलवायु के आधार पर किया. 

इंटीग्रेटेड खेती से मिला ज्यादा फायदा 
अपने इलाके में कैक्टस की खेती की उपयुक्तता को पहचानते हुए, रीवा ने कैक्टस की खेती को ड्रैगन फ्रूट के साथ जोड़कर इंटीग्रेटेड खेती शुरू की. उनके प्रयासों को ग्लोबल बैंक और हिमाचल प्रदेश के बागवानी विभाग से मान्यता मिली और इन संगठनों से उन्हें अनुदान मिला. इसके अलावा, अश्वगंधा जैसी औषधीय फसलें उगाने के लिए आयुष विभाग ने उनकी मदद की. रीवा ने फसलों के पोषक तत्वों पर ध्यान केंद्रित करते हुए बाबा फरीद यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज के साथ अनुसंधान और विकास सहयोग शुरू किया है. इसके अतिरिक्त, उन्होंने जोगिंदरनगर में गवर्नमेंट इंस्टीट्यूट ऑफ इंडियन सिस्टम ऑफ मेडिसिन एंड रिसर्च जैसे संस्थानों को पौधे उपलब्ध कराए हैं. 

रीवा के मुताबिक, खेती सिर्फ खेती नहीं है; यह वैल्यू-एडेड प्रोडक्ट्स उपलब्ध कराने के बारे में है. उन्होंने खुद को सिर्फ खेती तक सीमित नहीं रखा बल्कि फसल का प्रोसेसिंग पर फोकस किया. रीवा ने हिम 2 हम फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड नामक एक एफपीओ की स्थापना की, जहां लगभग 230 महिलाएं सक्रिय रूप से सुगंधित और औषधीय पौधों की खेती में लगी हुई हैं. रीवा ने साझा किया कि संगठन न केवल इन महिलाओं को पौधे देता है बल्कि खेती की पूरी प्रक्रिया में सहायता भी प्रदान करता है. 

अश्वगंधा, मोरिंगा और हल्दी जैसी फसलों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, वे खेती और मार्केटिंग दोनों में सहायता करते हैं. उन्होंने अन्य किसानों को भी मोरिंगा की खेती के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराकर उनकी सहायता की है. अपने काम में रीवा को सरकार का समर्थन लगातार मिला है. रीवा कहती हैं कि किसानों को सफलता के लिए प्राकृतिक खाद, सटीक तकनीक और स्मार्ट खेती के महत्व के बारे में पता होना चाहिए. फिलहाल, उनका परिवार न सिर्फ शुद्ध खाना खा रहा है बल्कि खेती से वह लाखों की कमाई भी कर रही हैं. 

 

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