क्रिसमस हो, नया साल हो, आपका जन्मदिन या कोई भी सेलिब्रेशन, बिना केक के पूरा नहीं होता है. केक लगभग हर एक छोटे-बड़े सेलिब्रेशन का हिस्सा बन गया है. फ्रूट केक से लेकर चॉकलेट केक तक, देश-दुनिया में आपको सैकड़ों तरह के केक मिल जाएंगे. केक बेकिंग अब लोगों का शौक नहीं पैशन बनने लगा है. हालांकि, आपको जानकर हैरानी होगी कि केक का कॉन्सेप्ट चंद साल पुराना नहीं है बल्कि हजारों साल पुराना है. भले ही तब केक कुछ अलग होता था लेकिन मॉडर्न केक के सबसे करीब रेसिपी का रेफ्रेंस 18वीं सदी में मिलता है.
वहीं, भारत में केक बनाने-खाने की शुरुआत ब्रिटिशर्स के आने के बाद हुई. हालांकि, भारत में भी केक का इतिहास 140 साल पुराना है. आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं केक की कहानी.
2000 साल पहले बहुत अलग था केक
केक की सरल परिभाषा देना मुश्किल है. उदाहरण के लिए, डच में इसका वर्णन करने के लिए विभिन्न परिभाषाएं दी जा सकती हैं. 'केक' शब्द की उत्पत्ति स्पष्ट नहीं है. कुछ लोग कहते हैं कि यह वाइकिंग शब्द 'काका' से लिया गया है. काका शब्द का इस्तेमाल ब्रेड जैसे केक के लिए किया जाता था. 2000 साल पहले यूनानी और रोमन लोग पार्टियों में टोर्टा खाते थे और ये विशेष रूप से ब्रेड जैसे केक भी होते थे. टोर्टा से फ्रांसीसी 'टार्ट', जर्मन 'टोर्ट' और डच 'टार्ट' का जन्म हुआ.
हालांकि, 18वीं सदी के दौरान पहली केक रेसिपी ईजाद हुई जो आज की रेसिपी से मिलती-जुलती थी और इसके बाद भी 19वीं सदी के मध्य से ही सही मायनों में 'आधुनिक केक' अस्तित्व में आया. केक को हल्का बनाने के लिए यीस्ट की जगह बेकिंग पाउडर और बेकिंग सोडा का प्रयोग किया गया, जिसके बाद केक और ब्रेड के बीच का अंतर स्पस्ट हो गया. उन्नीसवीं सदी के अंत तक, शुगर, चॉकलेट और देशी और विदेशी फल जैसी चीजें महंगी थीं और इसलिए केक बेक करना लक्जरी बात होती थी.
सिर्फ हाई क्लास के लोग विशेष अवसरों या उत्सवों के लिए केक खरीद सकते थे. लेकिन समय के साथ केक सामान्य लोगों की जिंदगी का भी हिस्सा बनने लगा. मिडिल-क्लास लोग खास मौकों पर केक बनाने या खरीदने लगे. भारत में भी केक पश्चिम से आया और यहां पर लोगों ने इसे अपने स्टाइल में बनाना शुरू कर दिया. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो भारत में सबसे पहले केक केरल में बनना शुरू हुआ था.
क्रिसमस पर बनाया गया था केक
यह साल था 1880, जब केरल के एक व्यापारी मामबली बापू ने टेलिचेरी (अब थालास्सेरी) में एक 'बोर्मा' (ईंटों वाले ओवन की बेकरी) की स्थापना की. इससे पहले, बापू ने बर्मा में बिस्किट बनाने की कला सीखी थी. जल्द ही 'बोर्मा' बेहद लोकप्रिय हो गया. बापू ने 40 विभिन्न प्रकार के बिस्कुट, रस्क, ब्रेड और बन बनाए. आज Mambally's Royal Biscuit Factory देश की सबसे पुरानी फंक्शनल बेकरी है. साल 1883 में, क्रिसमस से कुछ दिन पहले, मर्डोक ब्राउन, (एक ब्रिटिश बागान मालिक, जो अंजाराकांडी में दालचीनी के बागान का मालिक था) एक शानदार प्लम केक के साथ बेकरी में गया, जो वह इंग्लैंड से लाया था. उन्होंने बापू से केक चखने और उसके जैसा केक बनाने को कहा.
ब्राउन ने बापू को केक बनाने की बुनियादी बातों के बारे में 10 मिनट का डेमो दिया. फिर उन्होंने कुछ इंग्रेडिएंट्स जैसे खजूर, किशमिश और अन्य सूखे फल उन्हें दिए और क्रिसमस केक के लिए मायाज़ी (अब माहे) से एक फ्रांसीसी ब्रांडी का सुझाव दिया. लेकिन बापू ने केक को अपना 'देसी' ट्विस्ट देने का फैसला किया. उन्होंने धर्मदाम में एक लोहार से सांचा खरीदा, और दालचीनी, जायफल और लौंग जैसे मसाले लिए. उन्होंने अरक, काजू, सेब और केले की एक किस्म कदलीपाज़म का इस्तेमाल करके केक में एक लोकल टच दिया. यहां से भारत के पाक इतिहास में एक नया अध्याय खुला.
अलग-अलग जगह खोली गईं बेकरी
20 दिसंबर, 1883 को, बापू ने ब्राउन को केक दिया और उन्होंने कहा कि ऐसा केक उन्होंने आज तक नहीं खाया. इसके बाद, बापू का स्वीट बिजनेस और सफल हो गया. टेलिचेरी केक बनाने के लिए मक्का बन गया और यह 3C- केक, सर्कस और क्रिकेट के लिए जाना जाता था! बापू के वंशजों ने भारत के विभिन्न हिस्सों में सफल बेकरी चेन स्थापित कीं जैसे कि त्रिवेन्द्रम में शांता बेकरी, तिरुवल्ला में बेस्ट बेकरी, कन्नूर में ब्राउनीज़ बेकरी और कई अन्य.
उनकी बेकरी के बिस्किट फील्ड मार्शल केएम करियप्पा को बहुत पसंद थे. जब करियप्पा कूर्ग लौटे, तो वह उनकी बेकरी के बिस्किट लेने के लिए लोगों को भेजते रहे. आज भी केरल में क्रिसमस के मौके पर बनने वाले प्लम केक दुनियाभर में मशहूर हैं. इन केक्स की सबसे अच्छी बात यह है कि इन्हें कई दिनों तक स्टोर किया जा सकता है.