History of Chhappan Bhog: कैसे शुरू हुई भगवान श्रीकृष्ण को छप्पन भोग लगाने की परंपरा, गोवर्धन पर्वत से जुड़ा है किस्सा

History of Chhappan Bhog: आज हम दस्तरखान में आपको बता रहे हैं छप्पन भोग के बारे में. छप्पन भोग की प्रथा की शुरुआत कैसे हुई और क्यों इसका इतना महत्व है?

छप्पन भोग की थाली
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 07 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 7:00 AM IST

अक्सर जब कोई खास मेहमान आ रहा होता है तो हम घर में तरह-तरह के व्यंजन बनाते हैं. बहुत से लोग को छप्पन भोग की थाली सजाते हैं. हमारी संस्कृति में छप्पन भोग का बहुत महत्व है क्योंकि छप्पन भोग का संबंध श्रीकृष्ण से है. भगवान कृष्ण को छप्पन भोग लगाने का रिवाज है. खासकर कि जन्माष्टमी पर, लड्डूगोपाल के श्रृंगार के साथ-साथ उनके भोग का भी बहुत ज्यादा महत्व है.

भगवान कृष्ण को छप्पन भोग लगाने की प्रथा है. यह प्रथा सदियों से चली आ रही है. अब छप्पन भोग की थाली का प्रचलन इतना हो गया है कि लोग विशेष आयोजनों में छप्पन भोग बनवाते हैं. शादी-ब्याह में भी छप्पन व्यंजन बनाने पर जोर दिया जाता है. आपको जगह-जगह छप्पन भोग की थाली मिल जाएगी.  

छप्पन भोग की कहानी
छप्पन भोग से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार ब्रज के लोग स्वर्ग के राजा इंद्र की पूजा के लिए एक बड़ा आयोजन कर रहे थे. छोटे कृष्ण ने नंद बाबा से पूछा कि यह आयोजन क्यों किया जा रहा है? तब नंद बाबा ने कहा कि इस पूजा से देवराज इंद्र प्रसन्न होंगे और उत्तम वर्षा करेंगे. नन्हें कृष्ण ने कहा कि वर्षा करना तो इंद्र का काम है, उनकी पूजा क्यों करें? अगर पूजा करनी है तो गोवर्धन पर्वत की पूजा करें क्योंकि इससे फल और सब्जियां प्राप्त होती हैं और जानवरों को चारा मिलता है. तब छोटे कृष्ण की बात सभी को पसंद आई और सभी लोग इंद्र की जगह गोवर्धन की पूजा करने लगे.

इंद्र देव ने इसे अपना अपमान समझा और क्रोधित हो गए. क्रोधित इंद्र देव ने ब्रज में कहर बरपाया और भारी बारिश कराई और हर तरफ पानी ही पानी नजर आने लगा. ऐसा दृश्य देखकर ब्रजवासी भयभीत हो गए, तब छोटे कृष्ण ने कहा कि गोवर्धन की शरण में जाओ, वही हमें इंद्र के प्रकोप से बचाएंगे. कृष्णजी ने अपने बाएं हाथ की उंगली से पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सभी से कहा कि वे अपनी-अपनी लाठियों का सहारा लें और पूरे ब्रज की रक्षा करें.

भगवान श्रीकृष्ण 7 दिनों तक बिना कुछ खाए गोवर्धन पर्वत को उठाए रहे. कुछ देर बाद इंद्र देव शांत हुए. जब आठवें दिन बारिश रुकी और सभी ब्रजवासी पर्वत से बाहर आ गए. सब समझ गए कि कान्हा ने सात दिन से कुछ नहीं खाया है. तब सभी ने मां यशोदा से पूछा कि वह अपने लल्ला को कैसे खाना खिलाती हैं और उन्होंने सभी को बताया कि वह अपने कान्हा को दिन में आठ बार (आठ पहर में) खाना खिलाती हैं. 

इस प्रकार, गोकुल निवासियों ने कुल छप्पन प्रकार के भोजन (प्रत्येक दिन के लिए 8 व्यंजन) तैयार किए जो कृष्णजी को पसंद थे और इस तरह छप्पन भोग का कॉन्सेप्ट शुरू हुआ. मान्यता है कि जन्माष्टमी के दिन भगवान कृष्ण को 56 भोग लगाने से वे प्रसन्न होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. 

क्या-क्या शामिल है छप्पन भोग में 
आपको बता दें कि छप्पन भोग में शामिल व्यंजनों में हर तरह के स्वाद शामिल हैं. कड़वे, तीखे, कसैले से लेकर खट्टे, नमकीन और मीठे तक. इस छप्पन भोग थाली के लिए 56 प्रकार के खाद्य व्यंजन तैयार किए जाते हैं. 

छप्पन भोग में शामिल व्यंजन हैं पंजीरी, माखन मिश्री, खीर, रसगुल्ला, जीरा लड्डू, जलेबी, रबड़ी, मालपुआ, मोहनभोग, मूंग दाल का हलवा, घेवर, पेड़ा, काजू, बादाम, पिस्ता, इलायची, पंचामृत, शक्कर पारा, मठरी, चटनी, मुरब्बा, आम, केला, अंगूर, सेब, आलूबुखारा, किशमिश, पकोड़े, साग, दही, चावल, कढ़ी, चीला, पापड़, खिचड़ी, बैंगन की सब्जी, दूधी की सब्जी, पूरी, टिक्की, दलिया, घी, शहद, सफेद मक्खन, ताजी क्रीम, कचौरी, रोटी, नारियल पानी, बादाम का दूध, छाछ, शिकंजी, चना, मीठे चावल, भुजिया, सुपारी, सौंफ, पान और मेवे. 

हालांकि, बदलते जमाने के साथ-साथ 56 भोग की थाली का स्वरूप बदलने लगा है. अलग-अलग जगहों पर स्थानीय व्यंजनों के हिसाब से छप्पन भोग की थाली सजाई जाती है. लेकिन यह परंपरा हम भारतीयों के भोजन के प्रति अगाध प्रेम और सौंदर्य को दर्शाती है. 

 

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