History of Ghevar: घेवर के बिना अधूरा है तीज और राखी का त्योहार, क्या लखनऊ से जयपुर पहुंची थी यह मिठाई?

मान्यता है कि घेवर राजस्थानी मिठाई है, लेकिन बहुत से लोगों का मानना है कि इसकी उत्पत्ति राजस्थान या भारत नहीं बल्कि ईरान में हुई थी. हालांकि, इस संबंध में कोई खास प्रमाण नहीं है. आज के 'दस्तरखान' में जानिए घेवर की कहानी.

History of Ghevar (Photo: Pinterest)
निशा डागर तंवर
  • नई दिल्ली ,
  • 26 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 3:40 PM IST
  • तीज और रक्षाबंधन से जुड़ा हुआ है घेवर
  • सावन के महीने की प्रसिद्ध मिठाई

सावन का महीना अपने साथ कई तीज-त्योहार लेकर आता है. इस महीने में हरियाली तीज और राखी का त्योहार मनाया जाता है. और ये दोनों त्योहार एक खास मिठाई के बिना अधूरे माने जाते हैं. यह मिठाई है घेवर.

घेवर पारंपरिक रूप से राजस्थान के साथ-साथ हरियाणा, दिल्ली, गुजरात, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे अन्य राज्यों में तीज और रक्षाबंधन से जुड़ा हुआ है. हरियाली तीज और राखी पर नई शादीशुदा बेटी के ससुराल में घेवर पहुंचाया जाता है. इसके अलावा, सावन में आस-पड़ोस और रिश्तेदारों के घर भी घेवर ले जाने का चलन है. 

लोगों को घेवर के लिए भी बेसब्री से सावन का इंतजार रहता है. आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं कहानी घेवर की.

वैसे तो ज्यादातर लोगों का यही मानना है कि घेवर की उत्पत्ति राजस्थान में हुई क्योंकि जयपुर का घेवर देश-दुनिया में मशहूर है. लेकिन बहुत कम लोग यह जानते हैं कि घेवर राजस्थान से पहले लखनऊ में बनाया जाता रहा और यहीं से जयपुर पहुंचा. 

क्या है घेवर का इतिहास 
घेवर देसी घी, आटे और चीनी की चाशनी से बनाया जाता है और इसकी शहद के छत्ते जैसी बनावट होती है. यह मशहूर मानसून व्यंजन है और आयुर्वेद में भी इसका उल्लेख है. वैदिक विशेषज्ञों के अनुसार, मानसून के महीनों में वात और पित्त प्रबल होते हैं, और घी और चीनी की चाशनी से बना घेवर इन्हें शांत करता है.

हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग 2500 साल पहले घेवर को हयापन्ना कहा जाता था. और मान्यता है कि घेवर भी बहुत सी दूसरी डिशेज की तरह ईरान से भारत पहुंचा है. 

टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, लखनऊ की 140 साल पुरानी मिठाई की दुकान, राम आसरे के मालिक सुमन बिहारी का सुझाव है कि इस मिठाई की उत्पत्ति ईरान से हुई है. जबकि जयपुर के प्रसिद्ध लक्ष्मी मिष्ठान भंडार के अजय अग्रवाल का कहना है कि गोधावत परिवार 250 साल से घेवर तैयार कर रहा है लेकिन उन्होंने कभी ऐसा कोई दस्तावेज़ नहीं मिला है जो मिठाई के ईरानी मूल की गवाही दे सके. 

लखनऊ से पहुंचा जयपुर तक 
घेवर की उत्पत्ति को लेकर अक्सर विवाद रहा है. लेकिन विवादों ने इस व्यंजन को पॉपुलर होने से नहीं रोका, जिससे यह न सिर्फ राजस्थान बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी खाया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि वाजिद अली शाह के समय में इसे जयपुर से लखनऊ लाया गया था, इस व्यंजन के प्रति उनके शौक के कारण, घेवर आज भी लखनऊ में मिठाई की दुकानों की शोभा बढ़ाता है. हालांकि, आज घेवर की ज्यादा पहचान एक राजस्थानी मिठाई के तौर पर है. 

आज घेवर की कई किस्में हैं, जिनमें सादा घेवर या मावा घेवर और मलाई घेवर शामिल हैं. आमतौर पर, बिना चीनी वाले घेवर को गर्म मौसम में लगभग एक महीने तक स्टोर किया जा सकता है. जरूरत पड़ने पर चाशनी कभी भी बनाई जा सकती है. वहीं, पनीर घेवर की बहुत ज्यादा मांग रहती है, जिसका आविष्कार जयपुर के लक्ष्मी मिष्ठान भंडार ने 1961 में कई किलो मैदा और कई क्विंटल दूध के साथ प्रयोग करने के बाद किया था. 

 

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